रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग में नारायणपुर की तीन आदिवासी युवतियों – कमलेश्वरी प्रधान, ललिता उसेंडी, और सुमति मंडावी की शिकायत पर सुनवाई हुई। इन युवतियों ने बजरंग दल की कार्यकर्ता ज्योति शर्मा और उनके कुछ साथियों पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे। लेकिन सुनवाई के दौरान आयोग के कुछ सदस्यों ने ऐसी टिप्पणियां और सवाल किए, जो पीड़ितों के लिए अपमानजनक थे। इस मामले ने महिला आयोग की कार्यप्रणाली और महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का है, जो कथित धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोपों के कारण चर्चा आया। तीन आदिवासी युवतियां – कमलेश्वरी, ललिता, और सुमति – ने बजरंग दल की कार्यकर्ता ज्योति शर्मा और उनके साथियों पर उत्पीड़न और गैंगरेप की धमकी देने का आरोप लगाया। इन युवतियों ने सबसे पहले दुर्ग के पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत दर्ज करने की कोशिश की, लेकिन उनकी FIR दर्ज नहीं हुई। निराश होकर उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया, उम्मीद थी कि वहां उनकी आवाज सुनी जाएगी और उन्हें न्याय मिलेगा।
सुनवाई में क्या हुआ?
तीन सितंबर को हुई सुनवाई में तीनों युवतियां आयोग के सामने पेश हुईं, लेकिन आरोपी पक्ष, यानी ज्योति शर्मा और उनके साथी, तथा संबंधित थाने के पुलिस अधिकारी सुनवाई में शामिल नहीं हुए। आयोग की दो सदस्यों, सरला कोसरिया और दीपिका सोरी, ने पीड़ित युवतियों से उत्पीड़न के बारे में सवाल पूछने के बजाय धर्मांतरण से संबंधित सवाल शुरू कर दिए।
एक सदस्य ने कहा, “तुम एक धर्म से दूसरे धर्म में जा रही हो, इस पर पुलिस की कार्रवाई सही है।” यह सवाल संविधान के उस प्रावधान के खिलाफ है, जो हर नागरिक को अपनी पसंद का धर्म चुनने, उसका पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है (अनुच्छेद 25 से 28 के तहत )। युवतियों ने बताया कि वे नौकरी की तलाश में अपने घर से बाहर गई थीं, तो उनसे पूछा गया, “नारायणपुर में भी तो नौकरी मिल सकती थी, तुम्हें बाहर जाने की क्या जरूरत थी?” एक अन्य सवाल था, “क्या तुमने पुलिस को लिखित में सूचित किया था कि तुम एक शहर से दूसरे शहर जा रही हो?”
आयोग की एक अन्य सदस्य, लक्ष्मी वर्मा, ने युवतियों की लिखित शिकायत को देखकर कहा, “यह आवेदन तुमने खुद नहीं लिखा, लगता है किसी और से लिखवाया है।” यह टिप्पणी इस बात को नजरअंदाज करती है कि भारत में आज भी लाखों लोग निरक्षर हैं और सरकारी कामकाज के लिए दूसरों की मदद लेते हैं। ये तीनों युवतियां 10वीं तक पढ़ी हैं, उन्हें पता ही रहा होगा कि उनके आवेदन में क्या लिखा है, फिर भी उनकी शिकायत पर सवाल उठाए गए।
आयोग की सलाह और टिप्पणियां
आयोग की सदस्य दीपिका सोरी ने एक अजीब सलाह दी, “मैंने उस दिन भी कहा था और आज भी कह रही हूं, अगर तुम मंदिर और चर्च जाती हो, तो मस्जिद भी जाओ।” यह सलाह उस समय दी गई, जब युवतियां न्याय की उम्मीद में आयोग के पास आई थीं। ऐसी टिप्पणियां न केवल असंवेदनशील थीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी करती हैं।
पीड़ितों और परिवार का दर्द
सुनवाई के बाद पीड़ित युवतियों और उनके परिवार ने निराशा जताई। उन्होंने कहा कि आयोग की टिप्पणियां अनुचित थीं और ऐसा लगा जैसे उन्हें ही अपराधी ठहराया जा रहा हो। एक परिजन ने कहा, “हम आदिवासी समुदाय से हैं और हमारी बेटियों को ज्योति शर्मा और उनके साथियों ने पीटा, गैंगरेप की धमकी दी। हमने इसके खिलाफ शिकायत दी, लेकिन आयोग इसे धर्मांतरण के मुद्दे की ओर मोड़ रहा है। हमें नहीं लगता कि हमें यहां से न्याय मिलेगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि आयोग की एक सदस्य ने भीड़ जुटाने का आरोप लगाया, जबकि किसी भी नागरिक को अदालती कार्यवाही में शामिल होने का अधिकार है। परिवार ने मांग की कि उनकी शिकायत को गंभीरता से लिया जाए और ज्योति शर्मा व उनके साथियों के खिलाफ कार्रवाई हो।
आयोग की अध्यक्ष का बयान
महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक ने बताया कि सुनवाई में आवेदक पक्ष (यानी तीनों युवतियां) मौजूद थीं, लेकिन गैर-आवेदक पक्ष (ज्योति शर्मा और उनके साथी) और जीआरपी पुलिस स्टेशन का थाना प्रभारी मौजूद नहीं था। आयोग को जीआरपी पुलिस स्टेशन का सीसीटीवी फुटेज, जो इस मामले का महत्वपूर्ण सबूत है, अभी तक नहीं मिला है। इसके लिए रेलवे डीआरएम को अलग से आवेदन किया जाएगा। अध्यक्ष ने कहा कि अगली सुनवाई में सभी पक्षों को उपस्थित होने के लिए कहा गया है, अन्यथा उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा। अगली सुनवाई की तारीख अभी तय नहीं हुई है, लेकिन यह संभवतः अक्टूबर में होगी।