बिलासपुर। मिशन अस्पताल की 12 एकड़ जमीन पर स्वामित्व का दावा करने वाले क्रिश्चियन वूमन बोर्ड ऑफ मिशन्स (CWBM) को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। डिवीजन बेंच ने सोमवार को सुनवाई के बाद बोर्ड की याचिका को खारिज करते हुए सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराया है। इस निर्णय के बाद जिला प्रशासन को मिशन अस्पताल की जमीन पर कब्जे की दिशा में एक और कानूनी सहारा मिल गया है।
जिला प्रशासन की जीत, बोर्ड का दावा खारिज
मालूम हो कि बीते वर्ष तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने मिशन अस्पताल की लीज अवधि समाप्त होने के बाद जमीन पर कब्जा लेने की कार्रवाई प्रारंभ की थी।
क्रिश्चियन बोर्ड ने इस अधिग्रहण को चुनौती देते हुए पहले कमिश्नर कोर्ट, फिर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच और अंत में डिवीजन बेंच में याचिका दायर की थी।
हालांकि, तीनों स्तरों पर प्रशासन का पक्ष मजबूत रहा। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि बोर्ड के पास इस जमीन पर दावा करने का वैध अधिकार नहीं है और प्रशासन की कार्रवाई नियमों के अनुरूप है।
2014 में खत्म हुई थी लीज, नहीं कराया गया नवीनीकरण
रिकॉर्ड के अनुसार, मिशन अस्पताल की स्थापना साल 1885 में की गई थी।
अस्पताल को दी गई लीज साल 2014 में समाप्त हो गई थी, लेकिन प्रबंधन ने इसका नवीनीकरण नहीं कराया।
नजूल न्यायालय ने 2024 में नवीनीकरण के लिए दिया गया आवेदन खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ अपील भी कमिश्नर कोर्ट में की गई, लेकिन वहां भी याचिका खारिज हो गई।
सिंगल बेंच ने पहले ही कहा था- “याचिकाकर्ता का कोई अधिकार नहीं”
मिशन अस्पताल प्रबंधन की ओर से नितिन लॉरेंस ने याचिका दायर की थी, लेकिन सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन. भारत ने बताया कि उन्होंने हर बार अलग-अलग संस्था की पावर ऑफ अटॉर्नी पेश की और अपने पदों में बदलाव किए, जिससे न्यायालय को भ्रमित किया गया।
इस पर सिंगल बेंच ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया था।
डिवीजन बेंच ने पावर ऑफ अटॉर्नी अमान्य किया
डिवीजन बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा पेश की गई पावर ऑफ अटॉर्नी किसी अन्य संस्था से संबंधित है, इसलिए बोर्ड का दावा कानूनी रूप से अमान्य है।
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि शासन द्वारा की गई अधिग्रहण और तोड़फोड़ की कार्रवाई पूरी तरह वैध थी।
एक मामला सिविल कोर्ट में अब भी लंबित
हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब प्रशासन के सामने सिर्फ एक मामला शेष है, जो बिलासपुर सिविल कोर्ट में लंबित है।
यह याचिका डिसाइपल्स चर्च संस्थान ने दायर की है, जो 1891 से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर जमीन पर मालिकाना हक का दावा कर रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी।
इतिहास से जुड़ा है विवाद
मिशन अस्पताल की जमीन पहले क्रिश्चियन चर्च के नाम पर दर्ज थी और 1925 तक उसके नाम से रिकॉर्ड में रही।
बाद में इसे शासन के नाम पर दर्ज कर लिया गया। इसी परिवर्तन को लेकर दोनों पक्षों में दशकों से विवाद चला आ रहा है।
अस्पताल परिसर के कुछ हिस्सों का व्यावसायिक उपयोग भी किए जाने की बात प्रशासन ने अपने पक्ष में रखी, जिसे कोर्ट ने सही माना।













