पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द किया छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति (compassionate appointment) को मृतक की संपत्ति नहीं माना जा सकता, इसलिए बहू से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अपनी तनख्वाह से सास को भरण-पोषण दे। कोर्ट ने बहू की अपील स्वीकार करते हुए मनेन्द्रगढ़ पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें हर महीने 10 हजार रुपये भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
यह फैसला न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने सुनाया।
पति की मौत के बाद SECL ने दी है नौकरी
हसदेव क्षेत्र (SECL) में कार्यरत भगवान दास की वर्ष 2000 में मृत्यु हो गई थी। उनकी मौत के बाद बड़े बेटे ओंकार को दया नियुक्ति मिली। ओंकार की भी मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी (बहू) को दया नियुक्ति मिली। वर्तमान में वह सामान्य श्रमिक के रूप में केंद्रीय अस्पताल, मनेन्द्रगढ़ में कार्यरत है।
नियुक्ति से पहले, बहू ने 10 जून 2020 को एक शपथपत्र देकर सास को दूसरा आश्रित बताया था और नियुक्ति मिलने पर सास का भरण-पोषण करने की बात कही थी। लेकिन नौकरी लगने के बाद उसने सास को छोड़ दिया और मायके जाकर रहने लगी।
सास की ओर से भरण-पोषण की मांग
68 वर्षीय सास ने, जो कई बीमारियों से पीड़ित हैं और केवल 800 रुपये की पेंशन पाती हैं, हर महीने 20 हजार रुपये भरण-पोषण और 50 हजार रुपये मुकदमेबाजी खर्च की मांग की। इस पर मनेन्द्रगढ़ पारिवारिक न्यायालय ने बहू को हर महीने 10 हजार रुपये भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
बहू की दलीलें और हाईकोर्ट का निर्णय
बहू ने हाईकोर्ट में अपील की और बताया कि:
- सास की देखभाल उनके दूसरे बेटे उमेश द्वारा की जा रही है, जिसकी आमदनी हर महीने 50 हजार रुपये है।
- सास को खेती से सालाना 1 लाख रुपये, 3000 रुपये पेंशन, और पति की बीमा राशि से 7 लाख रुपये मिल चुके हैं।
- बहू की खुद की तनख्वाह सिर्फ 26 हजार रुपये है और उसकी एक 6 साल की बेटी भी है, जिसकी जिम्मेदारी उस पर है।
इन तथ्यों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि दया नियुक्ति मृतक की संपत्ति नहीं होती, इसलिए बहू पर सास को वेतन से भरण-पोषण देने का दबाव नहीं डाला जा सकता।
कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द करते हुए यह भी कहा कि सास कानून के तहत किसी अन्य उपाय की तलाश कर सकती हैं।