बिलासपुर। एसईसीएल में कार्यरत कर्मचारी की मृत्यु के 11 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए किए गए आवेदन को नकारते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने यह स्पष्ट किया कि पुनर्विचार याचिका का दायरा सीमित होता है और इसके माध्यम से पूरी बहस दोबारा नहीं की जा सकती।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रजनी दुबे की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इतनी लंबी अवधि के बाद मांगी गई अनुकंपा नियुक्ति, इस योजना के मूल उद्देश्य के अनुरूप नहीं है।


2008 में हुई थी एसईसीएल कर्मी की मृत्यु

एसईसीएल के मुख्य अस्पताल, कोरबा में कार्यरत जोगीराम का निधन 12 अगस्त 2008 को इलाज के दौरान अपोलो अस्पताल, बिलासपुर में हुआ था। उस समय उनकी पत्नी भी एसईसीएल में कार्यरत थीं। पिता की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महेश कुमार ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया, लेकिन 8 अगस्त 2013 को एसईसीएल ने यह कहते हुए आवेदन निरस्त कर दिया कि उनकी मां पहले से ही सेवा में हैं।

महेश कुमार ने 1 सितंबर 2013 को पुनः आवेदन किया और एक अन्य मामले का हवाला दिया, जिसमें समान परिस्थिति में अमिता सिंह को अनुकंपा नियुक्ति दी गई थी, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।


मां के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद छोटे बेटे ने किया प्रयास

2016 में महेश की मां ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, जिसके बाद महेश को उनकी जगह नौकरी मिल गई। इसके बाद परिवार ने दूसरे बेटे उमेश कुमार के लिए अनुकंपा नियुक्ति पाने का प्रयास शुरू किया। उमेश ने 22 मार्च 2018 को आवेदन किया, लेकिन उसे रिकॉर्ड न होने का जवाब मिला। इसके बाद 23 जून 2018 को दोबारा आवेदन और 19 नवंबर 2018 को रिमाइंडर भेजा गया।

जब कहीं से भी सुनवाई नहीं हुई, तो 11 जनवरी 2019 को हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसे एकलपीठ ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल राहत देना होता है, न कि वर्षों बाद लाभ देने के लिए।


सामाजिक स्थिति का हवाला भी नहीं बना सहारा

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि 2016 तक बड़े भाई द्वारा प्रयास किए जाने के कारण वह स्वयं आवेदन नहीं कर सका। साथ ही, उसने यह भी कहा कि उसके माता-पिता सफाईकर्मी थे, इसलिए उसकी सामाजिक स्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने सभी दलीलों को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि इतने वर्षों तक परिवार सामान्य रूप से जीवनयापन करता रहा, इसलिए यह मान लेना कि उन्हें तत्काल सहायता की आवश्यकता थी, तर्कसंगत नहीं है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here