बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने औद्योगिक भांग की नियंत्रित और शोध के लिए खेती की अनुमति मांगने वाली पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभुदत्त गुरु की खंडपीठ ने कहा कि यह मामला जनहित याचिका के दायरे में नहीं आता और पहले दिए गए आदेश में कोई गलती नहीं है जिसे सुधारा जाए।
याचिकाकर्ता का तर्क
तिलकनगर, बिलासपुर के निवासी डॉ. सचिन ए. काले ने कोर्ट में कहा कि वह अपने खेत में नहीं, बल्कि सरकार द्वारा तय जगहों—जैसे कृषि कॉलेज की जमीन या दूर-दराज के वन क्षेत्रों—में रिसर्च के लिए भांग की खेती करना चाहते हैं। उनका कहना था कि इसका उद्देश्य भांग का सेवन या धूम्रपान वैध करना नहीं है, बल्कि इसके औद्योगिक और औषधीय उपयोगों की संभावनाएं खोजनी हैं। उनका दावा था कि अगर रिसर्च सफल हुई तो यह किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता है।
राज्य का जवाब
राज्य की ओर से सरकारी वकील ने बताया कि इससे पहले भी यह मामला जनहित याचिका के रूप में पेश किया गया था, लेकिन पूरी सुनवाई के बाद कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था। मौजूदा मांग व्यक्तिगत हित की लगती है, इसलिए इसे जनहित का मुद्दा नहीं माना जा सकता।
कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि पुनर्विचार याचिका तभी स्वीकार की जाती है जब पहले के आदेश में कोई साफ-सुथरी गलती हो। यहां ऐसा कुछ नहीं है। याचिकाकर्ता वही बातें फिर से उठा रहे हैं, जिन पर पहले ही फैसला दिया जा चुका है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पुनर्विचार का दायरा सीमित होता है और इस प्रक्रिया के तहत कोर्ट अपने ही आदेश की दोबारा सुनवाई नहीं कर सकता। अगर फैसले से असहमति है तो इसके लिए कानून में अलग रास्ता मौजूद है।