बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटी की कस्टडी को लेकर पिता की अपील को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि लड़की की परवरिश और पढ़ाई की व्यवस्था नाना द्वारा बेहतर तरीके से की जा रही है, ऐसे में उसकी कस्टडी में बदलाव का कोई आधार नहीं बनता। हालांकि कोर्ट ने पिता को बेटी से संपर्क बनाए रखने की अनुमति दी है।
मां की मौत के बाद बेटी को नाना ने रखा था अपने पास
रायपुर निवासी एक व्यक्ति ने पारिवारिक न्यायालय में अपनी 16 वर्षीय बेटी की कस्टडी के लिए आवेदन दिया था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। इस फैसले के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की। याचिकाकर्ता पिता ने बताया कि उसकी शादी 18 जुलाई 2008 को हुई थी और 16 मई 2009 को बेटी का जन्म हुआ। 30 अगस्त 2017 को पत्नी की मृत्यु के बाद बेटी नाना के पास रहने लगी।
पिता का कहना था कि वह बेटी की पढ़ाई, इलाज और देखभाल का पूरा खर्च उठा रहा है। वह बेटी के नाम से सुकन्या समृद्धि योजना में हर माह 2000 रुपये जमा कर रहा है। ऐसे में वह चाहता है कि बेटी अब उसके साथ रहे ताकि वह उसका भविष्य बेहतर बना सके।
दोबारा शादी के बाद बेटी को अपनाने से किया था इनकार
दूसरी ओर नाना ने अदालत को बताया कि पत्नी की मौत के बाद याचिकाकर्ता ने बेटी को अपनाने से इनकार कर दिया था और बाद में दूसरी शादी कर ली। दोनों पति-पत्नी सरकारी नौकरी में हैं और बेटी को समय नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से वे और उनकी पत्नी ही बेटी की देखभाल कर रहे हैं। वह रायपुर के एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ रही है और उसका संपूर्ण खर्च वही उठा रहे हैं।
कोर्ट ने बेटी के हित में माना नाना के पास रहना उचित
परिवार न्यायालय द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों और तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने पाया कि बच्ची की पढ़ाई, परवरिश और मानसिक स्थिति को देखते हुए वह जहां है, वहीं उसके लिए बेहतर है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटी बचपन से ही नाना के पास रह रही है और अब वह 16 वर्ष की हो चुकी है, ऐसे में कस्टडी में बदलाव उचित नहीं होगा।
हालांकि, कोर्ट ने पिता को बेटी से संपर्क रखने का अधिकार दिया है। निर्णय के अनुसार—
- हर शनिवार और रविवार को एक-एक घंटे की वीडियो कॉल की अनुमति दी गई है।
- छुट्टियों में 5 से 10 दिन तक बेटी से मिल सकेंगे।
- त्योहारों पर एक दिन मिलना भी मान्य होगा।
- दोनों पक्षों को इसके लिए स्मार्टफोन लेने होंगे।
भविष्य में संपर्क बना रहे, इसलिए पिता को कुछ अधिकार दिए गए: हाईकोर्ट
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि पिता ने लंबे समय तक बेटी से मिलने की कोशिश नहीं की। ऐसा प्रतीत होता है कि वह केवल भरण-पोषण की राशि से बचने के लिए बेटी को अपने पास रखना चाहता है। फिर भी बेटी और पिता के बीच भावनात्मक रिश्ता बना रहे, इसलिए मुलाकात और बातचीत की अनुमति दी गई है।