बिलासपुर। छत्तीसगढ़ और मध्यभारत में पहली बार अनूठा गुर्दा प्रत्यारोपण किया गया है। आम तौर पर गुर्दादान करने वाले और ग्राही का रक्त समूह एक होना जरूरी है, पर अपोलो अस्पताल में पहली बार ऐसा प्रत्योपण किया गया जिसमें दोनों के अलग-अलग रक्त समूह हैं। प्रत्यारोपण के पांच सप्ताह हो चुके हैं और ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के बाद दाता और ग्राही दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं।

अपोलो अस्पताल के सीओओ डॉ. सजल सेन, वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ जिगनेश पंड्या व डॉ जयंत कानस्कर ने एक पत्रकार वार्ता में यह जानकारी दी। डॉ. सेन ने कहा कि किडनी फेल होने की की स्थिति देश में काफी चिंताजनक है। मधुमेह के बढ़ते ग्राफ के कारण अब 45 से 50 वर्ष से घटकर इसकी औसत आयु काफी घट गई है। अस्थायी इलाज तो डायलिसिस है पर स्थायी निदान के लिए किडनी प्रत्यारोपण ही एकमात्र कारगर विकल्प है। अपोलो में बीते कई वर्षों से किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ और सर्जन की टीम कर रही है, पर पहली बार भिन्न-भिन्न रक्त समूह के बीच किडनी प्रत्यारोपण हुआ।  वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. जिग्नेश पंड्या ने बताया कि उचित समय पर इलाज मिलने पर अस्थायी किडनी बीमारी ठीक हो सकती है, पर दूसरी श्रेणी गंभीर समस्या है जिसमें प्रत्यारोपण ही स्थायी समाधान है। यह प्रत्यारोपण निकट रक्त संबंधियों जैसे माता-पिता,  भाई-बहन, पति-पत्नी, पिता-पुत्र-पुत्री, माता-पु़त्र-पुत्री किडनी, जिनका रक्त समूह सामान्य हो- ग्राही एवं दाता बन सकते है। इस प्रकरण में माता का रक्त समूह एबी पॉजिटिव है तथा बेटे का रक्त ए ग्रुप का है। माता की इच्छा थी कि वह बेटे को किडनी दान करे।

वरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. जयंत कानस्कर ने बताया कि हमने अब तक 32 प्रत्यारोपण अब तक किये हैं और सभी दूरबीन पद्धति से किये गए। इस पद्धति से गुर्दा निकालने की प्रक्रिया पूरे मध्यभारत में सिर्फ अपोलो अस्पताल में की जा रही है। दूसरे अस्पतालों में ओपन सर्जरी से यह किया जाता है। दूरबीन से प्रत्यारोपण कठिन लेकिन मरीज के लिए फायदेमंद है।

डॉ. सेन ने कहा कि यह खुशी की बात है कि अब अपोलो हास्पिटल में भिन्न-भिन्न रक्त समूह के बीच प्रत्यारोपण में कोई बाध्यता नहीं है।

अस्पताल प्रबंधन में मरीज व उनकी माता से भी मीडिया को रू-ब-रू कराया, जिन्होंने काफी भावुक होकर डॉक्टरों को धन्यवाद दिया।

 

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