बिलासपुर। अंबिकापुर के 9 साल पुराने आपराधिक मामले में जांच लटकाए रखने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग को कड़ी फटकार लगाई थी। इसके बाद डीजीपी अरुण देव गौतम ने तेज़ कार्रवाई करते हुए मामले को साक्ष्य के अभाव में बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

हाईकोर्ट में डीजीपी के व्यक्तिगत हलफनामे के 24 घंटे के अंदर ही फाइल आगे बढ़ी और लापरवाही के लिए जिम्मेदार अफसरों पर विभागीय दंड लागू कर दिया गया।

6 सब इंस्पेक्टरों की एक साल की इंक्रीमेंट रोकी, DSP पर ‘निराशा’ का दंड

मामले की देरी के लिए जिम्मेदार पाए गए-

  • 6 उपनिरीक्षकों (SI) की एक साल की असंचयी वेतन वृद्धि रोक दी गई है।
  • तत्कालीन DSP मणिशंकर चंद्रा के खिलाफ जारी ‘निराशा’ का दंड यथावत रखा गया है।

जिन SIs पर कार्रवाई हुई है उनमें नरेश चौहान, विनय सिंह, मनीष सिंह परिहार, प्रियेश जॉन, नरेश साहू और वंश नारायण शर्मा शामिल हैं।

2016 का मामला, सह-आरोपी बरी, फिर भी  पेंडिंग

यह मामला लखनलाल वर्मा के खिलाफ 2016 में अंबिकापुर थाने में दर्ज हुआ था।
धारा 384, 502, 504 और 34 भादवि के तहत यह केस वर्षों तक लंबित रहा, जबकि उनके दो सह-आरोपी विचारण न्यायालय से पहले ही बरी हो चुके थे

लखनलाल वर्मा ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर शिकायत की कि पुलिस बिना किसी आधार के जांच को वर्षों से रोककर बैठी है।

हाईकोर्ट ने DGP से हलफनामा और कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी

6 नवंबर 2025 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि DGP स्वयं हलफनामा देकर बताएँ—

  • इतनी लंबी देरी क्यों हुई?
  • दोषी अधिकारियों पर क्या कार्रवाई की गई?

इस पर डीजीपी ने बताया कि आदेश मिलते ही पुलिस मुख्यालय ने तत्काल जांच प्रारंभ कर दी और सभी संबंधित अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।


साक्ष्य नहीं मिला, अब धारा 169 के तहत केस बंद

DGP ने हाईकोर्ट में हलफनामा दिया है कि—

  • कार्रवाई पूरी कर ली गई है,
  • और अब, लखनलाल वर्मा के खिलाफ कोई सबूत न मिलने के कारण
    धारा 169 सीआरपीसी के तहत अंतिम रिपोर्ट (क्लोजर रिपोर्ट) विचारण न्यायालय में पेश की जा रही है।

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