बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में 683 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ने के दावे को लेकर अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) की ताजा रिपोर्ट का हवाला देते हुए इसे भ्रामक बताया है। श्रीवास्तव का कहना है कि वास्तव में राज्य में वन क्षेत्र घटा है, जबकि गैर-वन क्षेत्र में वृक्षारोपण के आंकड़ों को जोड़कर बढ़ोतरी का दावा किया जा रहा है।

वन क्षेत्र में कमी का दावा

श्रीवास्तव ने कहा कि एफएसआई की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 से 2023 के बीच छत्तीसगढ़ का वन क्षेत्र 19 वर्ग किलोमीटर (1900 हेक्टेयर या लगभग 4800 एकड़) कम हुआ है। इसके विपरीत, कृषि वानिकी, शहरी वृक्षारोपण और अन्य गैर-वन क्षेत्रों में 702 वर्ग किलोमीटर वृक्षारोपित क्षेत्र जोड़ा गया है, जिसे वन क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

वृक्षारोपण और वन की तुलना पर सवाल

श्रीवास्तव ने स्पष्ट किया कि गैर-वन क्षेत्र में वृक्षारोपण की तुलना प्राकृतिक घने वन क्षेत्र से नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा, “वृक्षारोपण वाले क्षेत्रों में पेड़ों की घनत्व और संरचना वन क्षेत्र के समान नहीं होती। ऐसे में इन आंकड़ों को जोड़कर वन क्षेत्र बढ़ने का दावा करना तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना है।”

683 वर्ग किलोमीटर वृद्धि का दावा क्यों भ्रामक?

श्रीवास्तव ने बताया कि 702 वर्ग किलोमीटर वृक्षारोपण क्षेत्र में से केवल 19 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र से घटाया गया, जिसके कारण 683 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि का दावा किया जा रहा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि जंगल का क्षेत्र घटा है, और वृक्षारोपण को शामिल कर बढ़ोतरी दिखाई जा रही है।

राज्य की वन रिपोर्ट में अलग दावा

गौरतलब है कि भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023 के अनुसार, छत्तीसगढ़ ने संयुक्त वन और वृक्ष आवरण वृद्धि में देश में पहला स्थान प्राप्त किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ का कुल वन आवरण 55,812 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 94.75 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है।

मूल्यांकन के लिए पारदर्शिता जरूरी

श्रीवास्तव ने सरकार और संबंधित विभागों से अपील की है कि वन और वृक्ष आवरण के आंकड़ों में स्पष्टता लाई जाए और प्राकृतिक वन क्षेत्रों की हानि को छिपाने के बजाय उस पर ध्यान दिया जाए।

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