बिलासपुर। हाईकोर्ट ने पिछड़े वर्ग को दिये गये 52 प्रतिशत आरक्षण पर अंतरिम रोक लगा दी है। हालांकि तकनीकी कारणों से सवर्ण वर्ग और एसटी, एससी के आरक्षण प्रतिशत पर कोई आदेश नहीं दिया गया है। शासन से इस बारे में चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा गया है।
जांजगीर-चांपा के वेदप्रकाश सिंह ठाकुर ने अधिवक्ता अतुल केशरवानी और अनीश तिवारी के माध्यम से सितम्बर माह में आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर 82 प्रतिशत किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद 16 अलग-अलग याचिकाएं और इसी मुद्दे पर दायर की गईं थीं। इन सभी याचिकाओं को चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और पी.पी.साहू की डबल बेंच में सुना गया था। इस पर शुक्रवार को अंतरिम आदेश जारी किया गया। आदेश में कहा गया है कि नई नियुक्तियों पर पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का नया प्रावधान लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी और नागराज के मामले पर पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि आरक्षण सामान्य परिस्थितियों में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की भी ऐसी ही मंशा रही है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को ध्यान से सुना कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने का उद्देश्य राजनैतिक है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि संविधान के प्रावधानों के साथ मजाक हो रहा है।
शासन की ओर से कहा गया कि महाजन कमेटी, आरबीआई की रिपोर्ट, बीपीएल, एनएसएसओ तथा नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण आरक्षण का लाभ शासन ने विवेक के साथ दिया है। प्रार्थियों ने शासन के इस तर्क का विरोध किया और अदालत ने उनकी बात सुनी। यह भी पक्ष मजबूत रहा कि पिछड़े वर्ग की संख्या को लेकर कोई अधिकारिक आंकड़ा सरकार के पास नहीं है।
कोर्ट ने सिर्फ पिछड़े वर्ग के लिए दिये गये आरक्षण प्रावधान पर रोक लगाई है क्योंकि 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में और पूर्ववर्ती छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिये गये एसटी, एस सी को मिलाकर दिये गये 58 प्रतिशत आरक्षण पर हाईकोर्ट मे निर्णय अभी लम्बित है।
इस अंतरिम आदेश के विरुद्ध शासन को जवाब देने के लिए हाईकोर्ट ने चार सप्ताह का समय दिया है।