जनहित याचिका में आरोप- अपात्रों को जंगल काट कर वन भूमि पर कब्जा दिया जा रहा
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की युगल पीठ ने शुक्रवार को वन अधिकार पट्टों के मामले में एक जनहित याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार द्वारा आगे बांटे जाने वाले वन पट्टों पर दो माह के लिए रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के 12 विभिन्न विभागों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
रायपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर छत्तीसगढ़ में जंगल काट कर अपात्रों को बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टों की जांच, अपात्रों को बांटे गए पट्टे निरस्त करने और बांटने पर रोक लगाने की मांग की थी।
याचिका में यह कहा गया कि ग्रामीणों द्वारा वनों को काट कर तथा अतिक्रमण कर वन अधिकार पट्टा प्राप्त किया जा रहा है और राज्य सरकार इस मामले में निष्क्रिय बनी हुई है। वर्ष 2012 में सीतानदी अभ्यारण्य में वन भैसों के संरक्षण मामले में टी. एन. गोधावर्मन की याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने वनों में से अवैध कब्जे हटाने का आदेश दिया था और यह भी कहा था कि आवश्यक होने पर वन क्षेत्रों में बांटे गए पट्टों को निरस्त किया जाये। उसी प्रकार छत्तीसगढ़ वन विकास निगम ने भी कब्जों के संबंध में एक पत्र लिखा है। इधर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में वनों को हो रहे नुकसान को लेकर शीध्र कार्रवाई करने की अनुशंसा अपनी रिपोर्ट में की है लेकिन सरकार द्वारा इस मामले में कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई।
याचिका में यह भी कहा गया कि वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए 13 दिसंबर 2005 से पूर्व के कब्जाधारियों के लिए तथा 1930 से वन क्षेत्रों में रह रहे अन्य परम्परागत वनवासी ही पट्टा प्राप्त करने के पात्र होंगे। छत्तीसगढ़ में सितम्बर 2018 तक चार लाख, एक हजार 551 पट्टे बांटे गए। निरस्त किये गए पट्टों पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता लेकिन पुनर्विचार के नाम पर अपात्रों को पट्टे बांटे जा रहे हैं। नवम्बर 2015 तक चार लाख 97 हजार 438 पट्टों के आवेदन निरस्त कर दिए गए थे लेकिन मार्च 2018 तक निरस्त पट्टों की संख्यां घटकर चार लाख 55 हजार 131 रह गई। जिन पट्टों के आवेदनों को निरस्त किया गया वे कब्जाधारी अभी भी वन भूमि पर काबिज हैं।
याचिका में गूगल मैप के जरिये भी कवर्धा परियोजना मंडल के वन क्षेत्र और पंडरिया परिक्षेत्र के छायाचित्र भी पेश किये गए हैं, जहां वर्ष 2015 में घने जंगल थे लेकिन अब वहां पट्टे बाँट दिए जाने के बाद अवैध कब्जों और वनों की कटाई के कारण स्थिति बदली हुई है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस पी आर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी पी साहू की युगल पीठ में शुक्रवार को मामले की प्रारंभिक सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार द्वारा आगे बांटे जाने वाले वन पट्टों पर दो माह के लिए रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार सहित 12 विभिन्न विभागों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब माँगा है। मामले में राज्य शासन की ओर से उप महाधिवक्ता सुदीप अग्रवाल, केंद्र सरकार की ओर से असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल और वन विकास निगम की तरफ से अधिवक्ता अनिमेष तिवारी ने पैरवी की।