कुलपति चक्रवाल ने की अध्यक्षता

बिलासपुर,। गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर के इतिहास विभाग द्वारा गुरुवार को “विक्ट्री ऑफ हिंदवी स्वराज ओवर अटक एंड मुल्तान बाय मई 8, 1758” विषय पर एक ऑनलाइन व्याख्यान आयोजित किया गया। यह आयोजन भारत के स्वाभिमान और इतिहास की गौरवगाथा को पुनर्स्मरण करने के उद्देश्य से किया गया था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल ने की। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के अद्वितीय नेतृत्व, साहस और लोककल्याणकारी नीति ने मराठों को एक संगठित और शक्तिशाली शक्ति के रूप में स्थापित किया। उन्होंने कहा कि मराठों ने इस्लामी साम्राज्य की विभाजनकारी और दमनकारी नीतियों का डटकर विरोध करते हुए हिंदवी स्वराज की स्थापना की। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए इतिहास का पुनर्लेखन जरूरी है।

मुख्य वक्ता प्रो. भगवती प्रसाद शर्मा (पूर्व कुलपति, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, नोएडा) ने 08 मई 1758 को भारत के लिए सबसे गौरवपूर्ण दिन बताया। उन्होंने कहा कि उस समय देश के लगभग 80 फीसदी भूभाग पर हिंदवी स्वराज का प्रभाव था, लेकिन पेशवाओं की शक्ति क्षीण होने से मराठा शासन कमजोर पड़ा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मुगलों और अंग्रेजों की सेनाओं में भी अधिकांश भारतीय सिपाही ही होते थे।

विशिष्ट अतिथि प्रो. रामेन्द्रनाथ मिश्र (पूर्व विभागाध्यक्ष, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर) ने कहा कि मराठों ने अटक से कटक और कश्मीर से तंजावुर तक हिंदवी स्वराज का परचम फहराया। उन्होंने कहा कि इतिहास को अंग्रेजों ने अपने अनुसार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है और अब समय है कि भारतीय इतिहास का पुनर्मूल्यांकन और पुनर्लेखन हो।

इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. ए.एस. रणदिवे, अधिष्ठाता प्रो. आर.के. प्रधान ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन और समन्वय क्रमश: प्रो. सीमा पांडेय, प्रो. प्रवीन मिश्रा और डॉ. घनश्याम दुबे ने किया।

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