वॉशिंगटन/नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एच-1बी वीजा पर भारी शुल्क वृद्धि की घोषणा की, जिससे कुशल विदेशी श्रमिकों, खासकर भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करना और भी मुश्किल हो गया है। यह कदम अमेरिकी नवाचार और वैश्विक व्यापार पर गहरा असर डाल सकता है, जबकि भारत ने इसे ‘मानवीय संकट’ बताते हुए कड़ा विरोध जताया है।

ट्रंप प्रशासन का नया नियम: 60 गुना अधिक शुल्क

एच-1बी वीजा कार्यक्रम, जो आईटी, स्वास्थ्य सेवा और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में कुशल विदेशी कार्यकर्ताओं को अमेरिका में छह वर्ष तक काम करने की अनुमति देता है, अब नए आवेदकों के लिए 1 लाख डॉलर (लगभग 8.4 करोड़ रुपये) का शुल्क चुकाने का बोझ डालता है। यह मौजूदा शुल्क से 60 गुना अधिक है और रविवार से ही लागू हो गया। व्हाइट हाउस ने इसे ‘दुरुपयोग’ रोकने का कदम बताया, दावा करते हुए कि कंपनियां अमेरिकी मजदूरों को सस्ते विदेशी श्रमिकों से बदल रही हैं, जिससे अमेरिकी वेतन प्रभावित हो रहे हैं। विशेष रूप से भारत से आईटी नौकरियां आउटसोर्स हो रही हैं। 2024 में स्वीकृत एच-1बी वीजाओं का 71 प्रतिशत भारत को मिला, जबकि चीन को 11.7 प्रतिशत।

इस नियम से प्रभावित प्रमुख अमेरिकी कंपनियां जैसे एप्पल, जेपीमॉर्गन चेस, वॉलमार्ट, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, अल्फाबेट की गूगल, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), ईली लिली और अमेजन शामिल हैं। वीजा धारकों को अब अमेरिका में प्रवेश के लिए इस शुल्क का प्रमाण देना होगा, भले ही उनका वीजा वैध हो।

भारत सरकार की तीखी प्रतिक्रिया : ‘टैलेंट से डर’

भारत ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि इससे परिवारों पर ‘मानवीय प्रभाव’ पड़ेगा और कुशल श्रमिकों का आदान-प्रदान, जो दोनों देशों के लिए फायदेमंद रहा है, बाधित होगा। विदेश मंत्रालय ने सप्ताहांत में बयान जारी कर उम्मीद जताई कि अमेरिका इन व्यवधानों को दूर करेगा। रविवार को वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने तंज कसते हुए कहा, “वे हमारे टैलेंट से थोड़े डरे हुए हैं। हमें इससे कोई आपत्ति नहीं।” तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ‘युद्ध स्तर’ पर हस्तक्षेप की मांग की, चेतावनी देते हुए कि अमेरिका में फंसे भारतीय आईटी कार्यकर्ताओं का दर्द ‘अकल्पनीय’ होगा।

उद्योग पर तत्काल असर: शेयरों में गिरावट, घबराहट 

भारतीय आईटी क्षेत्र, जो एच-1बी का सबसे बड़ा लाभार्थी है, पर इस फैसले ने सीधा प्रहार किया। सोमवार को इंफोसिस और टीसीएस जैसे दिग्गज कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई। नास्कॉम, भारत की आईटी व्यापार संस्था, ने चेतावनी दी कि यह कदम अमेरिका की ‘नवाचार प्रणाली’ पर ‘चेन प्रभाव’ डालेगा और वैश्विक व्यवसायों, पेशेवरों तथा छात्रों में ‘उत्पन्न अनिश्चितता’ बढ़ाएगा।

भारत में अप्रवासन वकीलों के पास सप्ताहांत में फोन की बाढ़ आ गई, क्योंकि लोगों को यह स्पष्ट नहीं था कि शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होगा। शुरुआती भ्रम के कारण कंपनियों ने भारतीय और चीनी वीजा धारकों को 21 सितंबर से पहले अमेरिका लौटने की सलाह दी, जिससे कई लोगों ने यात्रा रद्द कर दी। एक अनाम भारतीय कार्यकर्ता ने पीटीआई को बताया, “पूर्ण घबराहट का माहौल है। यह तो यात्रा प्रतिबंध जैसा है।” एक अन्य ने कहा कि ट्रंप प्रशासन की नीतियां अमेरिका में जीवन बनाने की इच्छा को कमजोर कर रही हैं। चीन में भी सोशल मीडिया पर गुस्सा भड़का, जहां उपयोगकर्ताओं ने अमेरिका पर ‘दुर्भावनापूर्ण नीतियां’ बनाने का आरोप लगाया।

भविष्य की आशंकाएं: नवाचार पर खतरा

यह शुल्क वृद्धि न केवल भारतीय पेशेवरों के लिए बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कुशल प्रतिभाओं का प्रवाह रुकेगा, जो अमेरिका की तकनीकी प्रगति के लिए जरूरी है। छात्रों और व्यवसायों में बढ़ती अनिश्चितता वैश्विक सहयोग को प्रभावित करेगी। भारत, जो एच-1बी का 71 प्रतिशत हिस्सा लेता है, इस बदलाव से सबसे अधिक प्रभावित होगा, और यह द्विपक्षीय संबंधों पर सवाल खड़े कर रहा है।

कुल मिलाकर, ट्रंप का यह फैसला अमेरिकी श्रमिकों की रक्षा का दावा करते हुए विदेशी प्रतिभाओं को हतोत्साहित कर रहा है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम दोनों देशों के लिए महंगे साबित हो सकते हैं।

स्रोत: द गार्डियन

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