15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश शासन से आजादी हासिल की, जो देश के इतिहास में एक ऐतिहासिक पल था। यह दिन न केवल आजादी की खुशी का प्रतीक था, बल्कि यह भी दर्शाता था कि भारत अब एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपने भविष्य को खुद तय करेगा। हालांकि, जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि देश के बंटवारे के कारण यह खुशी उतनी उमंग भरी नहीं थी, जितनी एक अखंड भारत में होती। फिर भी, ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति एक ऐसी उपलब्धि थी, जिसे पूरे देश ने गरिमा और उत्साह के साथ मनाने का फैसला किया।  

उत्सव की पृष्ठभूमि

भारत का स्वतंत्रता दिवस केवल एक समारोह नहीं था, बल्कि यह उन लाखों लोगों के बलिदान और एकजुटता का प्रतीक था, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष किया। सेंट्रल प्रोविंसेज एंड बरार सरकार ने इस दिन को ऐतिहासिक और गरिमामय तरीके से मनाने का निर्देश दिया। पत्र में कहा गया कि बंटवारे के दुख के बावजूद, यह दिन भारत की एकता और ताकत को दर्शाने का अवसर है। सरकार ने सभी जिलों, तहसीलों और स्थानीय निकायों को इस उत्सव में हिस्सा लेने और इसे भव्य बनाने का निर्देश दिया।

उत्सव का कार्यक्रम

सरकार ने 15 अगस्त 1947 के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की थी, जिसे सभी सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ समन्वय में लागू करना था। इस योजना के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे:

1. इमारतों की सजावट और रोशनी

  • सजावट: सभी सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक इमारतों को राष्ट्रीय ध्वज (केसरिया, सफेद और हरा) और कपड़े या कागज की झंडियों से सजाया जाना था।
  • रोशनी: जहां बिजली उपलब्ध थी, वहां बल्बों से और जहां नहीं थी, वहां तेल के दीयों (चिरागों) से इमारतों को रात में रोशन करने का निर्देश था।
  • राष्ट्रीय ध्वज: सभी सार्वजनिक इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज दिन और रात फहराया जाना था, और रात में इसे रोशनी से जगमगाने की व्यवस्था की गई।
  • ऐतिहासिक इमारतें: कामनिया जवाहर गेट (जबलपुर), फतेह दरवाजा (मंडला) जैसी ऐतिहासिक इमारतों पर भी राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाना था। यह सुनिश्चित किया गया कि कोई अनधिकृत ध्वज राष्ट्रीय ध्वज के साथ न फहराया जाए।

2. पुलिस परेड

  • स्थान: प्रत्येक जिला मुख्यालय, तहसील मुख्यालय और पुलिस स्टेशन पर पुलिस परेड आयोजित की जानी थी।
  • सलामी: जिला मुख्यालयों पर कोई सम्माननीय मंत्री, स्पीकर या संसदीय सचिव सलामी लेने वाले थे। यदि ये उपलब्ध न हों, तो वहां मौजूद वरिष्ठ अधिकारी यह जिम्मेदारी निभाते।
  • समय: नागपुर को छोड़कर सभी जगह परेड सुबह 8:30 बजे होनी थी। नागपुर में यह सुबह 8 बजे कस्तूरचंद पार्क में आयोजित की गई, जहां गवर्नर और प्रधानमंत्री सलामी लेने वाले थे।
  • रूट मार्च: परेड के बाद जिला मुख्यालयों पर पुलिस रूट मार्च करती।
  • विशेष आयोजन: नागपुर में परेड के दौरान एक हवाई जहाज से कागज की पन्नियां बिखेरी जानी थीं।
  • संदेश: परेड में प्रधानमंत्री का सरकारी कर्मचारियों के लिए संदेश पढ़ा जाना था।

3. स्मृति स्तंभ (जयस्तंभ)

  • सभी जिला और तहसील मुख्यालयों पर एक स्मृति स्तंभ (जयस्तंभ) स्थापित करने की योजना थी।
  • इस पर हिंदी में साधारण शिलालेख लिखा जाना था: “जयस्तंभ, 15 अगस्त 1947”।
  • 15 अगस्त को इस स्तंभ की नींव रखी जानी थी, जिसे वहां मौजूद वरिष्ठ अधिकारी द्वारा किया जाना था।
  • यह कार्य लोक निर्माण विभाग (PWD) के जिम्मे था, और डिप्टी कमिश्नरों को निर्देश दिया गया कि वे इसकी व्यवस्था में कोई कमी न रहने दें।

4. स्मृति वृक्ष

  • प्रत्येक स्मृति स्तंभ के पास एक स्मृति वृक्ष लगाया जाना था।
  • वन विभाग को इस कार्य के लिए बरगद जैसे पेड़ों की आपूर्ति का जिम्मा सौंपा गया था।
  • डिप्टी कमिश्नरों को स्थानीय वन विभाग के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया गया।

5. स्कूली बच्चों के लिए मिठाइयां

  • खाद्य सामग्री की कमी के कारण गरीबों को भोजन वितरण संभव नहीं था, जैसा कि आमतौर पर इस तरह के अवसरों पर होता था।
  • हालांकि, मिडिल स्कूल तक के बच्चों को मिठाइयां बांटने की व्यवस्था गैर-सरकारी संगठनों और निजी दान के जरिए की जानी थी।
  • खाद्य विभाग को चीनी और चावल (गेहूं उपलब्ध नहीं था) की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया।

6. शस्त्र पूजा और अन्य आयोजन

  • विजयादशमी की तरह शस्त्र पूजा को कार्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया गया, अगर इसे व्यवस्थित करना संभव हो।
  • सुबह के समय नगाड़ा और शहनाई बजाकर उत्सव की शुरुआत करने का निर्देश था।
  • लोगों को इन आयोजनों में शामिल होने के लिए न्योता देने के लिए ढोल पीटकर प्रचार करने का सुझाव था।

7. नागपुर में विशेष आयोजन

नागपुर, जो प्रांतीय मुख्यालय था, वहां अधिक भव्य कार्यक्रम की योजना थी:

  • परेड: कस्तूरचंद पार्क में सुबह 8 बजे सैन्य बलों की भागीदारी के साथ परेड आयोजित की गई।
  • ध्वज फहराना: प्रधानमंत्री द्वारा सिताबुलदी किले, सचिवालय और काउंसिल हॉल पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाना था।
  • स्मृति स्तंभ और वृक्ष: मॉरिस कॉलेज मैदान में प्रधानमंत्री द्वारा स्मृति स्तंभ की नींव रखी जानी थी और स्मृति वृक्ष लगाया जाना था।
  • सार्वजनिक सभाएं: सभी सार्वजनिक समारोहों में लाउडस्पीकर की व्यवस्था करने और प्रधानमंत्री के संदेश को पढ़ने का निर्देश था।

सरकारी और गैर-सरकारी समन्वय

  • सरकार ने जिला कांग्रेस कमेटियों और अन्य स्थानीय समितियों को उत्सव की योजना की जानकारी दी, ताकि सरकारी और गैर-सरकारी कार्यक्रमों में कोई टकराव न हो।
  • इन समितियों को हर संभव सहायता देने का निर्देश था।
  • सरकारी उत्सवों का खर्च कार्यालय के आकस्मिक फंड से वहन किया जाना था। जहां फंड उपलब्ध नहीं थे, वहां डिप्टी कमिश्नरों को खर्च करने और बाद में फंड मांगने की अनुमति दी गई।
  • स्थानीय निकायों को भी इसी तरह के आयोजन करने और खर्च वहन करने की छूट दी गई।

भारत के लिए एक नई शुरुआत

यह सर्कुलर सेंट्रल प्रॉविंसेस एंड बेरार सरकार के पॉलिटिकल एंड मिलिट्री डिपार्टमेंट द्वारा जारी किया गया था। इसे चीफ सेक्रेटरी पी. एस. राव ने 2 अगस्त 1947 को नागपुर से लिखा और हस्ताक्षर किया। पत्र में यह स्पष्ट है कि यह डिप्टी कमिश्नरों, पुलिस महानिरीक्षक, और अन्य विभागों को भेजा गया था ताकि 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के जश्न की तैयारियां सुनिश्चित की जा सकें।

15 अगस्त 1947 का स्वतंत्रता दिवस भारत के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक था। सेंट्रल प्रोविंसेज एंड बरार सरकार का यह पत्र दर्शाता है कि उस समय की सरकार ने इस दिन को गरिमामय और एकजुट तरीके से मनाने की पूरी कोशिश की। राष्ट्रीय ध्वज, स्मृति स्तंभ, और स्मृति वृक्ष जैसे प्रतीकों के जरिए देश की आजादी को अमर करने का प्रयास किया गया। यह उत्सव न केवल आजादी की खुशी मनाने का अवसर था, बल्कि यह भी दिखाता था कि भारत एक स्वतंत्र और एकजुट राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ने के लिए तैयार है।

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