बिलासपुर। कांग्रेस नेता स्व. रामाधार कश्यप के साथ यह अनोखा संयोग रहा कि वे एक ही समय पर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, राज्यसभा के सदस्य और विधायक रहे।
सन् 2002 में स्व. रामाधार कश्यप को राज्यसभा टिकट मिलने का वाकया दिलचस्प है। छत्तीसगढ़ की एक सीट पर मोतीलाल वोरा चुने जा चुके थे। दूसरी सीट पर किसे भेजना है इसमें तब के मुख्यमंत्री अजीत जोगी की राय अंतिम थी। बिलासपुर से ही वाणी राव, स्वर्गीय बीआर यादव और मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे विद्याचरण शुक्ल जैसे दिग्गज नेता राज्यसभा पहुंचना चाहते थे। इनमें शुक्ल की हाईकमान के साथ नहीं जम रही थी। जोगी के मुख्यमंत्री बनने के दौरान हुए विवाद से जो खटास पैदा हुई तो उनके बीच दूरी बढ़ती गई। जोगी किसी भी हालत में उन्हें राज्यसभा नहीं जाने देना चाहते थे। जानकार कहते हैं कि यदि उस वक्त शुक्ल के लिए जोगी ने सिफारिश कर दी होती तो वीसी शुक्ल न तो अलग पार्टी बनाते और न ही कांग्रेस की 2003 के चुनाव में पराजय होती। तब प्रदेश में कांग्रेस का दूसरा भविष्य होता क्योंकि इसके बाद लगातार 15 साल तक प्रदेश की सत्ता से वह दूर हो गई।
खैर, राज्यसभा टिकट के लिये बाकी नेता भोपाल और दिल्ली में अपने संपर्कों के जरिए टिकट हासिल करने की कोशिश में लगे हुए थे, मगर स्व. जोगी जमीन से जुड़े किसी पिछड़े वर्ग के नेता की तलाश कर रहे थे। उन्होंने रामाधार कश्यप को चुना। एक सादे कागज पर उन्होंने स्व. कश्यप को लिख कर दिया, आप को राज्यसभा की टिकट दी जाती है। बाकी दावेदार हक्का-बक्का रह गये, क्योंकि कश्यप को वे साधारण कार्यकर्ता ही मानकर चल रहे थे। उनको मौका मिलने की कल्पना ही किसी ने नहीं की थी।
सन् 2003 में जब छत्तीसगढ़ में राज्य बनने के बाद पहले विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा तब वीसी शुक्ला कांग्रेस के खिलाफ कमर कस चुके थे। अब जोगी जी और कांग्रेस के लिए एक-एक सीट पर जीतने वाला प्रत्याशी खड़ा करने की चुनौती थी। ऐसे में स्व. रामाधार कश्यप का नाम फिर सामने आया। जोगी ने राज्यसभा सदस्य रहते हुए उन्हें अकलतरा सीट से चुनाव लड़ाया। वे जीतकर विधायक भी बन गये। पर कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल गई। तब स्व. कश्यप ने राज्यसभा में बने रहना ही उचित समझा और विधानसभा छोड़ दी। इसके बाद यहां उप-चुनाव हुआ, जिसमें कश्यप से पहला चुनाव हार चुके छतराम देवांगन को जीत मिली। यह भी एक अनूठा मामला था, जब किसी ने राज्यसभा सदस्य होते हुए विधायक का चुनाव लड़ा। वे 10 अप्रैल 2002 से 9 अप्रैल 2008 तक राज्यसभा सदस्य रहे।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए जिन लोगों ने लंबे वक्त तक संघर्ष किया है उनमें कश्यप को अलग ही तरह से याद किया जाएगा। सन् 1969 में 4-5 आंदोलनकारियों ने तय किया कि वे सत्र के दौरान भोपाल पहुंचकर विधानसभा में पर्चा फेंकेंगे। पर यह हौसला सिर्फ रामाधार कश्यप दिखा सके। बाकी साथी विधानसभा नहीं पहुंच पाये। कश्यप ने कार्यवाही के दौरान परचा फेंक दिया और छत्तीसगढ़ की मांग पर नारे लगा दिए। विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर मार्शल ने उन्हें पकड़ लिया। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और 24 घंटे की सजा भी दी गई। इस घटना के 31 साल बाद अलग छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हो पाया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अलग प्रदेश बनाने के लिये छत्तीसगढ़ में कितना लम्बा संघर्ष चला है।
26 नवंबर 1936 को अकलतरा इलाके के तरौद में पैदा हुए रामाधार कश्यप सेल्स टैक्स विभाग में नौकरी करते थे। अचानक उन्होंने इस्तीफा दे दिया। ऐसा उन्होंने टिकट का ऑफर मिलने पर नहीं किया था, बल्कि तय कर लिया कि अब समाज सेवा और राजनीति के क्षेत्र में जाना है। उन्होंने पार्षद चुनाव लड़ा और हार गये। इसके बाद उनकी सार्वजनिक गतिविधियां बिलासपुर में शुरू हुई। सन 1972 में उन्होंने रामचंद्र देशमुख के प्रसिद्ध लोकनाट्य चंदैनी गोंदा का मंचन कराया। कार्यक्रम उनके घर के ठीक सामने बृहस्पति बाजार के पास तिलकनगर में हुआ, जिस जगह कार्यक्रम हुआ था वहां तब खेत ही खेत थे। इसे देखने-सुनने के लिए हजारों लोग पहुंचे। कश्यप की पहचान बिलासपुर में बन गई।
वे स्व. खूबचंद बघेल, बीआर तामस्कर, केयूर भूषण, हरि ठाकुर और निर्मला देशपांडे जैसे गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ताओं से जुड़ गए। स्वर्गीय खूबचंद बघेल ने भातृ संघ का गठन किया था जिसके वे संस्थापक सदस्य थे। खूबचंद बघेल के बाद जब परसराम यदु भातृ संघ के अध्यक्ष बने तब वह इसके महामंत्री रहे।
उनके करीबी कहते हैं कि वे खेती-किसानी, राज्य की कला-संस्कृति, पर्यावरण को बचाने के लिए सदैव चिंतित रहे। राजनीति से अलग हटकर जीवन भर काम करते रहे। दर्जनों सामाजिक संस्थाओं में अब तक कार्य करते रहे। उनके साथ कभी कोई विवाद नहीं जुड़ा। सबके लिए सदैव उपलब्ध रहे। अत्यंत विनम्रता से लोगों से मुस्कुराते हुए मिलना और आत्मीय व्यवहार उनके व्यक्तित्व का अंग रहा। उनके निधन से उस पीढ़ी का एक महत्वपूर्ण नेता चला गया जिसने अलग राज्य के गठन के लिए बरसों बरस लड़ाई लड़ी।