केंद्र सरकार ने हाल ही में कर्मचारियों के लिए नई एकीकृत पेंशन योजना (UPS) की घोषणा की है, जो पेंशन के क्षेत्र में एक नया प्रयोग है। हालांकि, छत्तीसगढ़ में यह घोषणा एक जटिल स्थिति पैदा कर सकती है, क्योंकि राज्य पहले ही पुरानी पेंशन योजना (OPS) को पुनः लागू कर चुका है। अब सवाल उठता है कि क्या छत्तीसगढ़ सरकार अपने कर्मचारियों को इस नए विकल्प के लिए राजी कर पाएगी?  धान की कीमत, महतारी वंदन जैसी अनेक भारी-भरकम खर्च वाली लुभावनी चुनावी वायदों के साथ सरकार बनाने वाली भाजपा सरकार के लिए तो यह अच्छा होगा कि वह ओपीएस की जगह यूपीएस लागू कर अपना वित्तीय बोझ कुछ कम कर ले, लेकिन पिछली सरकार ने पेंच फंसा दिया है।

यूपीएस: असंतोष कम करने का कदम

केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के हित में एनपीसी की जगह यूपीएस लागू करते हुए एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है। कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़कर इसे देखा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि एनपीएस के चलते केंद्रीय कर्मचारियों में नाराजगी , जिसके चलते अपेक्षित परिणाम लोकसभा में नहीं मिले। यूपीएस योजना के तहत, कर्मचारियों को बेसिक सैलरी के 50% के बराबर पेंशन मिलेगी। यूपीएस को एक स्थायी और संतुलित योजना के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जो पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के बीच का रास्ता निकालती है। एनपीएस की अस्थिरता और ओपीएस की उच्च लागत के बीच, यूपीएस को एक मध्यमार्गी समाधान के रूप में देखा जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में ओपीएस मजबूत

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 2018 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कर्मचारियों के लिए ओपीएस को फिर से लागू किया। ओपीएस, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा 21 वर्ष पहले समाप्त कर दी गई थी, का कर्मचारियों ने व्यापक रूप से विरोध किया था। तब केंद्र के अनुरूप राज्य ने भी एनपीएस लागू कर दी थी। उस वक्त छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार थी। जब केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार हो तो राज्य केंद्र का तुरंत अनुसरण करती है। तब हुआ था, पर आज ऐसा नहीं है। छत्तीसगढ़ ही नहीं, कई अन्य भाजपा राज्य वाली सरकारों ने भी केंद्र के निर्णय को लागू करने की अब तक घोषणा नहीं की है, महाराष्ट्र को छोड़कर, जहां गठबंधन सरकार है।

दरअसल, ओपीएस के तहत ग्रॉस सैलरी, जो हाथ में के आधार पर पेंशन निर्धारित होती थी, जिससे कर्मचारियों को अधिक आर्थिक सुरक्षा मिलती है। यूपीएस में बेसिक सैलरी को आधार बनाना बड़ा फैक्टर है, जो ग्रॉस सैलरी का करीब आधा है। जब पिछली कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों को एनपीएस या ओपीएस में से चुनने का विकल्प दिया, तो 98% कर्मचारियों ने ओपीएस को चुना। इसका मतलब है कि छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों के बीच ओपीएस का मजबूत समर्थन है और यूपीएस के मुकाबले भी इसे छोड़ने की कोई मंशा नहीं है।

UPS की चुनौतियां और संभावनाएं

यूपीएस, भले ही केंद्र सरकार की एक नई पहल हो, छत्तीसगढ़ के लिए यह एक कठिन विकल्प साबित हो सकती है। यूपीएस के तहत पेंशन का निर्धारण बेसिक सैलरी के आधार पर किया जाएगा, जो कि ग्रॉस सैलरी से काफी कम होती है। महंगाई भत्ते का आंशिक लाभ भी केवल उन कर्मचारियों को मिलेगा जो 25 वर्ष की सेवा दे चुके हैं। इसमें वे सभी बाहर हो जाएंगे जो दिव्यांगता, सैनिक कोटा, महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति के दर्जे में आयु की छूट लेकर देर से सरकारी सेवा में आए हैं। ये 25 वर्ष की सेवा देने से पहले ही रिटायर्ड हो सकते हैं।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने भी कहा है कि वर्तमान में यूपीएस लागू करने पर विचार नहीं किया जा रहा है। उनका कहना है कि ओपीएस को बंद करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है, और जल्दबाजी में कोई भी निर्णय लेना कर्मचारियों के लिए हानिकारक हो सकता है।

कर्मचारी संगठनों का रुख साफ

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार छत्तीसगढ़ में यूपीएस की घोषणा के बाद कई कर्मचारी संगठनों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ओपीएस ही उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प है। चार लाख से अधिक अधिकारी और कर्मचारी, जो पहले से ही ओपीएस का लाभ उठा रहे हैं, यूपीएस के प्रति अनिच्छा जताते हैं।

छत्तीसगढ़ के कर्मचारी संगठनों ने सोशल मीडिया और विभिन्न प्लेटफार्मों पर कहा है कि ओपीएस की तुलना में यूपीएस कमतर है। यह स्थिति सरकार के लिए उल्टे पैर लौटने जैसी हो जाएगी। उसे केवल महिलाओं और किसानों को नहीं, कर्मचारियों को भी खुश रखना है।

छत्तीसगढ़ को फैसला लेना कठिन

छत्तीसगढ़ में ओपीएस, एनपीसी हटाकर लागू की जा चुकी है। यूपीएस ने एक नई बहस छेड़ दी है, लेकिन कर्मचारियों के बीच इसके प्रति अनिच्छा और ओपीएस के प्रति समर्थन के चलते, राज्य सरकार के लिए यह एक कठिन निर्णय साबित हो सकता है।

वित्त मंत्री ओपी चौधरी के बयान के अनुसार, वर्तमान में राज्य सरकार यूपीएस को लागू करने पर विचार नहीं कर रही है, लेकिन भविष्य में इस पर सोचा जा सकता है। यदि छत्तीसगढ़ में यूपीएस लागू होता है, तो राज्य के कर्मचारियों के पास तीन विकल्प होंगे – ओपीएस, एनपीएस, और यूपीएस। हालांकि, वर्तमान स्थिति को देखते हुए, ओपीएस ही छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों की पहली पसंद बनी रहेगी।

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली की पृष्ठभूमि भी जान लें

सन् 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने एक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार के रूप में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) को लागू किया। इसका उद्देश्य पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के तहत होने वाली भारी वित्तीय देनदारियों को कम करना था। ओपीएस में सरकार द्वारा कर्मचारियों को 50% अंतिम वेतन की गारंटी दी जाती थी, जिससे सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा था। एनपीएस के तहत, पेंशन को बाजार-आधारित निवेशों से जोड़ा गया, जहां कर्मचारियों को अपने वेतन का एक हिस्सा जमा करना होता है, और सरकार भी इसमें अपना योगदान करती है।

आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण

वाजपेयी सरकार ने एनपीएस को एक आर्थिक सुधार के रूप में देखा, जो सार्वजनिक वित्त को स्थिर करने के साथ-साथ देश की आर्थिक प्रगति में योगदान दे सकता था। एनपीएस को लागू करने का प्रमुख उद्देश्य था सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन खर्चों को नियंत्रित करना और अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना। राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह कदम कठिन था, क्योंकि इसे कर्मचारियों के बीच असंतोष का कारण बनने की आशंका थी। फिर भी, सरकार ने इसे भविष्य में पेंशन संबंधी वित्तीय दबाव को कम करने के लिए आवश्यक समझा।

कार्पोरेट और शेयर बाजार को लाभ

एनपीएस का एक प्रमुख उद्देश्य शेयर बाजार और कार्पोरेट क्षेत्र को बढ़ावा देना भी था। इसमें योगदान की राशि को शेयर बाजार में निवेश किया जाता है, जिससे कार्पोरेट सेक्टर को पूंजी प्रवाह प्राप्त होता है। इससे बाजार में तरलता बढ़ी, और कई कंपनियों को अपने विस्तार और निवेश के लिए पूंजी प्राप्त हुई। इसके परिणामस्वरूप, शेयर बाजार में दीर्घकालिक वृद्धि और स्थिरता आई।

कर्मचारियों को नुकसान

हालांकि एनपीएस से सरकार को आर्थिक राहत मिली, लेकिन कर्मचारियों को इस नई योजना के तहत पुरानी पेंशन योजना जैसी गारंटी नहीं मिली। एनपीएस के तहत, पेंशन की राशि पूरी तरह से बाजार की स्थिति पर निर्भर होती है, जो कभी-कभी अस्थिर हो सकती है। यह कर्मचारियों के लिए अनिश्चितता और वित्तीय असुरक्षा का कारण बना, खासकर उनके लिए जो बाजार जोखिम को समझने में असमर्थ हैं। इस तरह, एनपीएस ने कर्मचारियों को जोखिम में डाल दिया, जबकि कार्पोरेट और बाजार को लाभ पहुंचाया।

(Blivedigitaldesk)

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here