राष्ट्रीय दैनिक सहारा समय के पूर्व सम्पादक व वरिष्ठ पत्रकार हरीश पाठक ने कहा है आंचलिक अख़बारों की पत्रकारिता से ही राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता को ताकत मिलती है। राष्ट्रीय माने जाने वाले अख़बार उन ख़बरों तक नहीं पहुंच पाते जो क्षेत्रीय अख़बारों के आंचलिक पत्रकार अपनी जान जोखि में डालकर निकाल लाते हैं। 

पाठक गुरुवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में आमंत्रित थे। वे पांच अक्टूबर को बिलासपुर में होने वाले पत्रकारों के एक सम्मेलन में शामिल होने के लिए यहां पहुंचे हैं। बिलासपुर प्रेस क्लब में उनके साथ नवभारत के सम्पादक नीलकंठ पारटकर, कथाकार और राष्ट्रीय सहारा के एसोसिएट एडिटर धीरेन्द्र अस्थाना तथा वरिष्ठ पत्रकार आसिफ इक़बाल भी उपस्थित थे। पत्रकारिता के 40 वर्षों से भी अधिक समय देश के अनेक राष्ट्रीय अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं में काम कर चुके तथा साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हरीश पाठक की एक किताब आंचलिक अख़बारों की राष्ट्रीय पत्रकारिता का अगले माह विमोचन हो रहा है। राज्यसभा के उप-सभापति हरिबंश इसमें शामिल होंगे। उन्होंने इस किताब पर चर्चा की। उनकी इस किताब में 33 ऐसी रिपोर्ट्स और उसके पीछे की कहानी चार खंडों में संकलित की गई है, जो आंचलिक पत्रकारों के साहस और खोजी रिपोर्ट्स पर केन्द्रित है। इन रिपोर्ट्स के जरिये पत्रकारिता में बड़ा बदलाव देखने को मिला। एक फैलोशिप के तहत उन्होंने ऐसी रिपोर्ट्स को कई राज्यों में भ्रमण कर एकत्र किया। इनमें छत्तीसगढ़ की भी कहानियां हैं। पत्रकार कौशल मिश्र ने देशबन्धु में सरगुजा के रिबई पंडो के परिवार के तीन लोगों की भूख से हुई मौत की ख़बर कवर की थी, जो जिसने न केवल मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार को बल्कि केन्द्र को भी हिला कर रख दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव को वाड्रफनगर का दौरा करना पड़ा। तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा केन्द्र और राज्य के कई मंत्रियों को उस जगह पर पहुंचना पड़ा। उन्होंने राजस्थान की एक घटना का जिक्र किया, जिसमें 80 के दशक में वहां के मुख्य सचिव ने अपनी शादी की 25वीं वर्षगांठ को सरकारी खर्चे से मनाया और उस पर उस जमाने में 23 लाख रुपए खर्च किए। इस ख़बर को राजस्थान पत्रिका ने कव्हर किया। परिणिति यह हुई कि उस शीर्ष अधिकारी को राजस्थान सरकार ने बर्खास्त कर दिया। उन्होंने बिहार के चारा घोटाले के सामने आने के बारे में दिलचस्प जानकारी दी। प्रभात ख़बर के सम्पादक हरिबंश को एक फोटोग्राफर ने इसके दस्तावेज लाकर दिए थे। हरिबंश ने फोटोग्राफर के नाम के साथ वह समाचार प्रकाशित किया। उन्होंने मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव के पत्रकार की चर्चा की जिसने सरपंच के भ्रष्टाचार की ख़बरों को अख़बार में छपने भेजा। सम्पादक ने ख़बर छापी पर कहा कि क्यों इतनी दुश्मनी मोल ले रहे हो। कुछ दिन बाद उस पत्रकार की लाश मिली।

मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और देश के दूसरे राज्यों की ऐसी ही बेहतरीन कई रिपोर्टिंग पर पाठक ने चर्चा करते हुए कहा कि पत्रकारिता की असली ताकत आंचलिक पत्रकारों में टिकी हुई है।

इसके पहले कार्यक्रम का संचालन करते हुए पत्रकार राजेश दुआ ने पाठक की पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में मिली उपलब्धियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। नवभारत के सम्पादक नीलकंठ पारटकर ने कहा कि यह किताब आज के आंचलिक पत्रकारिता के चेहरे को नहीं बताती, वह अलग है, लेकिन वह बताती है कि पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए। उन्होंने कई रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए कहा कि आंचलिक पत्रकारों की ख़बरों ने राष्ट्रीय स्तर पर ख़लबली मचा दी और सामाजिक जीवन में भूचाल ला दिया। आज के आंचलिक पत्रकार साधन सम्पन्न हैं पर कुछ दशक पहले के पत्रकार जोखिम और साधनहीन होकर भी बड़ा काम करते थे। यह किताब इसलिए जरूरी है ताकि आने वाली पत्रकारों की पीढ़ी को यह पता चले कि किस प्रकार रिपोर्ट लिखी जाती है और असली पत्रकारिता होती क्या है। आज के अखबार ब्राण्ड बन चुके हैं, लेकिन इन अखबारों से असली रिर्पोटिंग गायब है।

बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष तिलकराज सलूजा सहित अतिथियों का वरिष्ठ पत्रकारों ने स्वागत किया। इस गरिमामय आयोजन में वरिष्ठ पत्रकार सतीश जायसवाल, सुधीर सक्सेना, बजरंग केडिया आदि भी मौजूद थे।

 

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