कोल ब्लॉक आबंटन के खिलाफ संघर्ष समिति ने किया आंदोलन का ऐलान, फतेहपुर में गांधी जयंती पर प्रभावितों ने रखी ग्राम सभा
बिलासपुर। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति कोल ब्लॉक आबंटन के फैसले के खिलाफ 2 अक्टूबर को फतेहपुर में ग्राम सभाओँ का एक वृहद सम्मेलन करने जा रही है। इसके बाद 4 अक्टूबर से इसी ग्राम से पदयात्रा शुरू की जायेगी, जो 13 अक्टूबर को राजधानी रायपुर पहुंचेगी।
हसदेव क्षेत्र के प्रभावित ग्रामों के प्रतिनिधियों ने एक अपील जारी कर कहा है कि ग्रामीणों और ग्राम सभाओं के व्यापक विरोध को देखते हुए मोदी सरकार के अधीन कोयला मंत्रालय कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत बिना ग्रामसभा की सहमति के ही जमीन अधिग्रहण कर रही है। परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति भी ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई। प्रशासनिक अधिकारियों ने उदयपुर के रेस्ट हाउस में फर्जी तरीके से जबरन प्रस्ताव बनाया। इस प्रस्ताव को निरस्त करने तथा दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग पर हसदेव अरण्य के ग्रामीणों ने वर्ष 2019 में 75 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया लेकिन राज्य सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया। मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन सौंपा गया लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके विपरीत अडानी कंपनी के मुनाफे के लिये खनन कार्य शुरू कराने के लिये शासन-प्रशासन उसकी मदद कर रहा है।
इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हसदेव अरण्य क्षेत्र की पंचायतों का प्रतिनिधित्व करने वाले उमेश्वर सिंह आर्मो, रामलाल करियाम, जयनंदन सिंह पोर्ते, मुनेश्वर पोर्ते, बालसाय कोर्राम, नरेंद्र आर्मोर, युनूस टोप्पो, शकुंतला एक्का, बसंती दीवान आदि ने एक पर्चा जारी करते हुए कहा है कि जून 2015 में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी उनके गांव मदनपुर आये थे। उन्होंने चौपाल लगाकर आदिवासियों को आश्वस्त किया था कि उनकी पार्टी हमारे संघर्ष में साथ खड़ी है और वह हमारे जंगल, जमीन का विनाश नहीं होने देगी। कांग्रेस पार्टी आज सत्ता में होने के बाद उस वादे से मुकरते हुए मोदी सरकार की सहयोगी बनकर अडानी और बिरला कंपनी के लिये हमारे जंगल जमीन को छीन रही है।
संघर्ष समिति का कहना है कि सन् 2010 में स्वयं केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संपूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित करते हुए पूरे जंगल को नो-गो क्षेत्र घोषित किया था। कार्पोरेट के दबाव में इसी मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति देदी। इसे सन् 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने निरस्त भी कर दिया था। मात्र 750 हेक्टेयर में खनन के लिये सुप्रीम कोर्ट का स्टे लागू है। वर्तमान में इस परियोजना को कानूनन वन स्वीकृति नहीं मिली है। सन् 2015 में ही क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा कि हमारे क्षेत्र में कोई भी कोल ब्लॉक आबंटित न किया जाये। अपने जल जंगल जमीन, आजीविका तथा संस्कृति की रक्षा का अधिकार हमें संविधान की पांचवी अनुसूची के प्रावधान से प्राप्त है। पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006 की धारा (5) हमें इस दायित्व के लिये सक्षम भी बनाती है। इसके बावजूद मोदी सरकार ने गैरकानूनी तरीके से 7 कोल ब्लॉक का आबंटन राज्य सरकार की कंपनियों को कर दिया। राज्य सरकारों ने इन कोल ब्लॉकों को विकसित करने तथा एमडीओ के नाम पर अडानी कंपनी को सौंप दिया। साथ ही नागरिकों के हितों को ताक पर रखकर बाजार मूल्य से अधिक दर पर अडानी से कोयला लेने का अनुबंध कर नया कोयला घोटाला भी किया गया है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले का समृद्ध वन क्षेत्र है जो जैव विविधता से पूरिपूर्ण हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का कैचमेंट है। यह जांजगीर-चांपा, कोरबा तथा बिलासपुर क नागरिकों और खेतों की प्यास बुझाता है। यह हाथियों का रहवास और आवाजाही का वन क्षेत्र भी है। इसके बावजूद सरकारें खनन कंपनियों के साथ मिलकर इसके विनाश के लिये आतुर हैं।
आयोजकों ने बताया है कि 2 अक्टूबर को प्रभावित गांवों की ग्राम सभा में इस संकल्प को दोहराया जा रहा है जो फतेहपुर में आयोजित है। इसी गांव से रायपुर के लिये पदयात्रा 4 अक्टूबर को शुरू होगी। इसमें उन्होंने संवेदनशील नागरिकों से जुड़ने की अपील भी की है।
संघर्ष समिति की मांग है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त की जाये। कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत बिना ग्राम सभा की मंजूरी किये गये भूमि अधिग्रहण को निरस्त किया जाये, 5वीं अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान को लागू किया जाये। परसा कोल ब्लॉक के फर्जी प्रस्ताव को तत्काल निरस्त किया जाये और अधिकारी तथा कंपनी पर एफआईआर की जाये।घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वनाधिकार को बहाल कर सभी गांवों में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत वन अधिकार को मान्यता दी जाये। पेसा कानून 1996 का पालन किया जाये।