कोटवार मुनादी कर ग्रामीणों को आगाह कर रहा, इनसे छेड़छाड़ की तो खैर नहीं
बिलासपुर। रतनपुर के पास स्थित खूंटाघाट बांध के बीच बने टापू में हजारों घोंघिल पक्षी डेरा डाल चुके हैं। पर्यटन मंडल इसी जगह पर भारी विरोध के बावजूद शीशे का रिसोर्ट बना रहा है। इसे मंजूरी देते समय दावा किया गया था कि अब यहां प्रवासी पक्षियों का आना कम हो गया है।
बिलासपुर से 35 किमी दूर रतनपुर के करीब अंग्रेजों ने खारंग नदी पर खूंटाघाट जलाशय बनवाया था। यह आज यह एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। बांध के बीच करीब चार एकड़ का टापू है, जो मानसून के साथ लम्बी टांग और खुली चोंच वाले पक्षी ओपन बिल स्टार्क अथवा घोंघिल या पनकौआ की प्रजननस्थली बन जाता है।
इसी साल गर्मी में छतीसगढ़ पर्यटन मंडल अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने इस टापू पर पर्यटकों के लिए शीशे का रिसार्ट बनने लिए शिलान्यास किया था। देसी परिदों के प्रजनन स्थल का विनाश होने की आशंका पर प्रकृति प्रेमियों ने इसका जमकर विरोध किया, पर श्रीवास्तव ने यह तर्क दिया कि अब पक्षियों का आना यहां कम हो चुका है। जो आते हैं वे दूसरा ठिकाना ढूंढ लेंगे। शिलान्यास कार्यक्रम में पर्यटन मंत्री ताम्रध्वज साहू को मुख्य अतिथि बनाया गया था पर वे नहीं आए। उनका दौरा निरस्त होने के पीछे का कारण प्रकृतिप्रेमियों के विरोध को ही माना गया। उनकी अनुपस्थिति में श्रीवास्तव ने खुद ही शिलान्यास कर दिया। हालांकि अब तक यहां एक ईंट नहीं लग सकी है।
खूंटाघाट के तट से साफ दिखता है कि टापू में पेड़ कम हैं पर उनमें पत्ते भी फूट रहे हैं। इस जगह का भ्रमण कर लौटे प्रकृति प्रेमी पत्रकार प्राण चड्ढा ने बताया कि यहां हजार से अधिक ओपन बिल और काले करमोरेट यहां आशियाना बना चुके हैं। यहां के पेड़ काटने के कारण उनके लिए जगह की कमी हो गई है। जिन पक्षियों ने बांध के किनारे के पेड़ों पर ठिकाना बनाया उनमें से कई को शिकारियों ने मारकर खा दिया। इसकी तस्दीक गांव वालों ने की है। इस बार अब पक्षियों को बचाने बीड़ा ग्रामीणों ने उठाया है। कोटवार आसपास के गांवों में मुनादी कर रहा है कि इन पक्षियों को कोई नुकसान न पहुंचाए, वरना कानूनी कार्रवाई की जाएगी।