आईजी हर तीन माह में डेटा तैयार करेंगे, प्रत्येक छह माह में रिव्यू बोर्ड विचार करेगा
बिलासपुर। आजीवन कारावास की अवधि पूरी कर चुके कैदियों की रिहाई को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है। ऐसे कैदियों के मामलों में अब हर छह माह में रिव्यू बोर्ड की बैठक होगी। जेल के उच्चाधिकारी खुद ही ऐसे कैदियों का नाम प्रस्तावित करेंगे जो रिहा होने की पात्रता रखते हैं। इस मामले का एक पक्ष स्व. राजीव गांधी की हत्या के आरोपियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट से आये फैसले से भी जुड़ा हुआ है।
मामले में एक पेंच कुछ साल पहले आ गया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की हत्या के आरोपियों फांसी की सजा दी गई थी। सोनिया गांधी के अनुरोध पर उनकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। इसके बाद 18 साल से जेल में बंद राजीव की हत्या के आरोपी जेल मेन्युअल 358 का हवाला देते हुए रिहाई की मांग करते हुए कोर्ट चले गये। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि आजीवन कारावास का मतलब आजन्म, मौत होने तक की सजा है।
हाईकोर्ट अधिवक्ता अमरनाथ पांडेय की ओर से अधिवक्ता रजनी सोरेन, ऋचा शुक्ला ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने बताया था कि 14 साल की सजा पूरी कर लेने के बाद भी उम्र कैद की सजा काट रहे कई कैदी जेलों में निरुद्ध हैं, जिन्हें रिहा किये जाने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है। इसके बाद हाईकोर्ट ने सभी जिलों के विधिक सेवा प्राधिकरणों को जेलों का निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा था। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने जेलों के लीगल एड कौंसिल, पैरालीनगल वालंटियर आदि से जुटाई गई जानकारी और निरीक्षण के बाद बनाई गई रिपोर्ट में हाईकोर्ट को बताया कि कुल 234 कैदी प्रदेश के विभिन्न जेलों में बंद हैं, जो 14 साल की निर्धारित आयु पूरी कर चुके हैं। राज्य शासन और जेल प्रशासन की ओर से भी बताया गया था कि सन् 2017 से लेकर अब तक 411 कैदियों को उम्र कैद पूरी होने के बाद रिहा किया गया है। 25 फरवरी की स्थिति में 67 प्रकरण राज्य शासन के समक्ष विचाराधीन है।
दरअसल, उम्र कैद की सजा की अवधि 20 साल ही मानी जाती है। साप्ताहिक अवकाश, पर्व त्यौहार आदि को दो दिन गिना जाता है। इसके चलते एक कैदी को साल के 365 दिनों में करीब 478 दिन की सजा मिल जाती है। इस तरह से लगभग 14 साल पूरा होने के बाद उनकी रिहाई का रास्ता खुल जाता है। पर इस मामले में एक पेंच कुछ साल पहले आ गया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की हत्या के आरोपियों फांसी की सजा दी गई थी। सोनिया गांधी के अनुरोध पर उनकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। इसके बाद 18 साल से जेल में बंद राजीव की हत्या के आरोपी जेल मेन्युअल 358 का हवाला देते हुए रिहाई की मांग करते हुए कोर्ट चले गये। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि आजीवन कारावास का मतलब आजन्म, मौत होने तक की सजा है। इसके बाद 14 साल बाद कैदियों की सजा 20 साल की हो जाने के बाद भी रिहाई मिलना कठिन हो गया। अघोषित रूप से जेल मेन्युअल की धारा 358 स्थगित हो गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट में फिर याचिकायें दायर की गई। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले आने पर सेशन कोर्ट कैदियों के रिहाई पर विचार कर सकती है, जिसमें जेल प्रशासन की राय हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 358 को निरस्त अथवा निलम्बित नहीं किया गया है।
बीते 30 अप्रैल को प्रभारी चीफ जस्टिस प्रशान्त कुमार मिश्रा व जस्टिस पीपी साहू की डबल बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रखा था। कोर्ट ने फैसला दिया है कि प्रिजनर्स रिव्यू बोर्ड की बैठक साल में कम से कम दो बार हो और ऐसे प्रकरणों पर विचार कर शासन को प्रस्ताव भेजे जाये, जिन पर सेशन कोर्ट में विचार होगा। यही नहीं जेल महानिरीक्षक की जिम्मेदारी होगी स्वयं ऐसे कैदियों का डेटा हर तीन माह में तैयार करेंगे, जिन्हें रिहा किया जा सकता है। यह डेटा सिर्फ उम्र कैद की सजा पाने वाले कैदियों पर नहीं बल्कि कम अवधि की अपनी सजा पूरी कर लेने के बाद रिहाई की पात्रता रखते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रिव्यू बोर्ड ने जिन कैदियों ने जिन कैदियों के प्रकरण पर पूर्व में विचार करने के बाद नामंजूर कर दिया है, उनके मामले पर फिर से सुनवाई की जा सकती है।
याचिकाकर्ता अमरनाथ पांडेय ने कहा कि कोर्ट का यह निर्णय ऐतिहासिक है, जिससे सजा पूरी करने के बाद भी जेलों में बंद कैदियों की रिहाई का रास्ता खुला है और इसका फायदा दूसरे राज्यों में भी लिया जा सकेगा।