रायपुर। वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा है कि लेमरू एलिफेंट रिजर्व से किसी का विस्थापन नहीं होगा। गांवों और वनवासियों के अधिकार बरकरार रहेंगे। वन अधिकार संरक्षित रहेंगे और लघु वनोपज संग्रहण में किसी प्रकार की बाधा नहीं होगी। वन मंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि लेमरू एलीफेंट रिजर्व के बारे में गांव के विस्थापन, वनअधिकारों में कटौती, लघु वनोपज संग्रहण में बाधा और अन्य जितनी भी अफवाहे फैलाई गई हैं, उनका कोई आधार नहीं है। एलीफेंट रिजर्व बनने के बाद भी उक्त समस्त अधिकार जारी रहेंगे और किसी का विस्थापन नहीं होगा। साथ ही अन्य क्षेत्रों के हाथियों को यहां लाकर नहीं बसाया जाएगा अर्थात् जो स्थिति आज है वैसी ही व्यवस्था बनी रहेगी।
वन मंत्री ने यह भी साफ किया है कि तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर जो भ्रम फैलाया जा रहा है, उसमें भी कोई सच्चाई नहीं है। तमिलनाडु में एलिफेंट रिजर्व नहीं बनाया गया बल्कि एलिफेंट कॉरीडोर के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई थी। लेमरू के लिए वन विभाग किसी प्रकार का भूमि अधिग्रहण नहीं करने वाला है और अधिसूचना में केवल शासकीय भूमि ही शामिल होगी अर्थात् निजी भूमि के स्वामित्व, खरीद फरोख्त पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लग रहा है।
अकबर ने कहा है कि झारखण्ड और ओडिशा राज्य में पहले से एलिफेंट रिजर्व बने हुए हैं और उनके अंदर आने वाले गांव तथा निवासियों के किसी अधिकार की कटौती नहीं हुई है और न ही किसी गांव का विस्थापन हुआ है। छत्तीसगढ़ में भी सरगुजा क्षेत्र में तमोर पिंगला, सेमरसोत और बादलखोल अभ्यारण्य होने के साथ-साथ एलिफेंट रिजर्व 2011 से है परन्तु किसी गांव का विस्थापन नहीं हुआ है। उक्त तीनों अभ्यारण्य है जबकि लेमरू एलिफेंट रिजर्व का गठन कंजरवेशन रिजर्व के रूप में हो रहा है जिसमें अभ्यारण्य के मुकाबले सारे अधिकार गांवों के और वनवासियों के बरकरार रहेंगे।
उन्होंने कहा है कि कतिपय तत्वों द्वारा निहित स्वार्थ के तहत एलिफेंट रिजर्व के बारे में और दुष्प्रचार किया जा रहा है जबकि इसमें कोयला खनन, बड़े उद्योग और वन्य प्रणियों का शिकार तथा जंगल में आग लगाना आदि ही मात्र प्रतिबंधित होने वाला है। कंजरवेशन रिजर्व के प्रबंधन के लिए जो समिति बनेगी, उसमें पंचायत प्रतिनिधियों का भी समावेश किया जाएगा और उनकी राय के बगैर कोई कार्य नहीं होगा। पंचायतों को मानव हाथी संघर्ष को रोकने के लिए राशि अलग से मिलेगी। कुल मिलाकर लेमरू एलीफेंट रिजर्व का गठन वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 36 (ए) के तहत होने से वन, वनवासी और वन्य प्राणी तीनों के हित पूरी तरह सुरक्षित होंगे।

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