रायपुर।  15 अगस्त 1947 की भोर और उसके आस-पास के दिनों में छत्तीसगढ़ (तब मध्य प्रांत/मध्यप्रदेश का हिस्सा) उत्साह, शोर, प्रभात फेरियों और ध्वजारोहण से गूंज उठा।

आधी रात का संक्रमण, नागपुर का ध्वजारोहण

14–15 अगस्त की मध्यरात्रि के तुरंत बाद प्रदेश (नागपुर) में पहले प्रांतीय राज्यपाल एम. पक्वासा (M. Pakvasa) ने शपथ ली। 15 अगस्त की सुबह नागपुर के सीताबर्डी किले पर तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने ध्वजारोहण किया—यहीं से प्रांत-भर के उत्सवों का स्वर और तेज़ हुआ।

रायपुर में सुबह 7:35 बजे फहरा तिरंगा, 200 बंदी रिहा

रायपुर में 15 अगस्त की सुबह 7:35 बजे तत्कालीन खाद्य मंत्री आर. के. पाटिल (R. K. Patil) ने पुलिस लाइन में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। इसके बाद नगरपालिका कार्यालय में उन्होंने गांधीजी, नेहरू और पं. रविशंकर शुक्ल के संदेश पढ़कर सुनाए। उसी दिन तब के कमिश्नर के. बी. एल. सेठ (K. B. L. Seth) ने लगभग 200 बंदियों की रिहाई की घोषणा की—शहर में मिठाइयां बंटी, प्रभात फेरियां निकलीं और बाज़ार रोशनियों से जगमगाए। अवसर की गरिमा और गंभीरता को बनाए रखने के लिए शराब की दुकानें 15 और 16 अगस्त 1947 को बंद कर दी गई।

दुर्ग: जनसभा के बीच ध्वजारोहण

दुर्ग में ध्वजारोहण घनश्याम सिंह गुप्ता ने किया और जनसभा को संबोधित किया—यहां भी स्कूल-कॉलेजों में कार्यक्रम, पदयात्राएं और सांझ की रोशनियाँ आम नज़ारा रहीं।

बिलासपुर: शनिचरी बाजार में लहराया तिरंगा

बिलासपुर में 15 अगस्त 1947 को आजादी के सेनानी और आम नागरिक शनिचरी बाजार के जय स्तंभ चौक पर एकत्र हुए। मुंगेली के कांग्रेस नेता रामगोपाल तिवारी ने तिरंगा फहराया। भारत की आजादी के, भारत माता, गांधी, नेहरू के जयकारे लगाए। ढोल बाजे के साथ मिठाईयां बंटी। शहर को खूबसूरती से सजाया गया था, और तिवारी ने गांधीजी और नेहरू के संदेश पढ़ते हुए एक विशाल जनसमूह को संबोधित किया। इस दिन के सम्मान में बिलासपुर के गांधी चौक पर एक स्मारक वृक्ष लगाया गया, और स्वतंत्रता के स्थायी प्रतीक के रूप में क्षेत्र के विभिन्न स्थानों जैसे सरायपाली, बसना, पेंड्रा, आरंग, महासमुंद आदि पर जय स्तंभ (विजय स्तंभ) स्थापित किए गए।

सारंगढ़ में विलय की प्रक्रिया चली

रायगढ़ और सारंगढ़ जैसी रियासतें (प्रिंसली स्टेट्स) उस समय अपने विलय-प्रक्रिया की ओर बढ़ रही थीं। सारंगढ़ के बारे में दर्ज है कि यह एक रियासत थी, जिसका प्रशासनिक इतिहास राजगोंड शासकों से जुड़ता है। यहां स्थानीय स्तर पर ध्वजारोहण, दरबार/जनसभा और जुलूस के जलसे आयोजित हुए। देशभर में सारंगढ़ जैसी अनेक रियासतें भी इस समारोह में शामिल हुईं और इस ऐतिहासिक मोड़ पर भारतीय संघ में शामिल हुईं, जिससे नव-स्वतंत्र राष्ट्र में उनका एकीकरण हुआ।

देशव्यापी लय, जिसका असर यहाँ भी दिखा

देशभर में 15 अगस्त के दिन जो दृश्य थे—जनसभाएँ, जुलूस, दुकानों-इमारतों पर पताकाएँ, रात की इल्यूमिनेशन—उनकी गूंज छत्तीसगढ़ में भी उसी रफ़्तार से सुनी गई। पहली स्वतंत्रता-दिवस रस्मों के बारे में उपलब्ध राष्ट्रीय अभिलेख बताते हैं कि 15 अगस्त की शाम को दिल्ली के प्रिंसेज़ पार्क (आज का विजय चौक इलाका) में सार्वजनिक समारोह हुआ, जबकि लाल किले से ध्वजारोहण की परंपरा 16 अगस्त 1947 से पक्की हुई; इन राष्ट्रीय आयोजनों की चमक प्रदेश के समारोहों में भी दिखी।

स्कूल-कॉलेज और मोहल्लों की धड़कन

रायपुर-दुर्ग-बिलासपुर-रायगढ़ में स्कूलों-कॉलेजों में सुबह-सुबह ध्वजारोहण, ‘वंदे मातरम’ और ‘झंडा ऊँचा रहे हमारा’ की धुन, बच्चों की प्रभात फेरियाँ, महिला-मंडलों के देशभक्ति गीत, स्वयंसेवी संगठनों की रैलियाँ—क़रीब-क़रीब हर बस्ती में यही “नया सवेरा” था।

जनभागीदारी का अद्भुत मिश्रण

छत्तीसगढ़ में इन स्वतंत्रता दिवस समारोहों में औपचारिक आधिकारिक समारोहों के साथ हर्षोल्लासपूर्ण जन भागीदारी का अनूठा मिश्रण था। ये औपनिवेशिक शासन से मुक्ति और लोकतांत्रिक स्वशासन की शुरुआत का प्रतीक थे, जिसमें सांप्रदायिक सद्भाव, कैदियों की रिहाई के अधिनियम, नेताओं द्वारा सार्वजनिक संबोधन और देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले स्मारकों की स्थापना पर ज़ोर दिया गया।

इस प्रकार, छत्तीसगढ़ में 15 अगस्त 1947 से पहले, उसके दौरान और उसके बाद के दिनों में ध्वजारोहण, सार्वजनिक भाषण, कैदियों की रिहाई, सामुदायिक भोज, और वृक्षारोपण तथा स्मारक निर्माण जैसे प्रतीकात्मक आयोजन हुए, जिससे मध्य भारत के मध्य में नागपुर प्रांत के अंतर्गत एक नए स्वतंत्र भारत की जीवंत और आशापूर्ण तस्वीर उभरी। इस ऐतिहासिक क्षण का जश्न राष्ट्रीय उल्लास, जिम्मेदारी और आशावाद की भावना के साथ मनाया गया।

 

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