रायपुर। इजराइली सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए फोन हैक कर जिन लोगों की जासूसी की गई उनमें छत्तीसगढ़ के सात सामाजिक तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल बताये गये हैं। ये सभी आदिवासी इलाकों में जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। इनसे सरकारों को अक्सर परेशानी भी होती है।
ये नाम हैं-आलोक शुक्ला, सोनी सोरी, लिंगाराम कोडोपी, डिग्री प्रसाद चौहान, शुभ्रांशु चौधरी, बेला भाटिया तथा शालिनी गेरा। आलोक शुक्ला छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक हैं। वे काफी दिनों से हसदेव क्षेत्र में संचालित व प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। लेमरू हाथी रिजर्व क्षेत्र को घटाने के विरोध में भी वे सरगुजा और कोरबा क्षेत्र के आदिवासी संगठनों के साथ काम कर रहे हैं। सोनी सोरी बस्तर की राजनैतिक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो पुलिस दमन के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं। लिंगा राम कोडोपी उसके भतीजे है, जो उनके साथ ही काम करते हैं। डिग्री प्रसाद चौहान पीयूसीएल से जुड़े हैं और इनका ज्यादातर काम आदिवासियों की जमीन की फर्जी खरीद फरोख्त के विरुद्ध अदालतों में लड़ाई लड़ते रहना है। पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी नक्सली इलाकों में शांति मार्च निकाल चुके हैं। दूरस्थ इलाकों के लोगों की समस्याओं को सामने लाने के लिए कम्युनिटी रेडियो चलाते हैं। शालिनी गेरा और बेला भाटिया मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों से जुड़े अनेक मामलों को वे शीर्ष अदालतों में ले गई हैं।
जो जानकारी लेनी हो लेंतरीका कानूनी हो-शुभ्रांशु
इनमें से पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि उन्हें कभी फोन के जरिए जासूसी होने का आभास नहीं हुआ। सन 2019 में एक बार व्हाट्सएप की ओर से जरूर सूचना दी गई थी कि मेरा फोन हैक करने की कोशिश की गई है। मैंने फोन नंबर कभी नहीं बदला, क्योंकि यह 20-25 साल से लोगों के पास है। पर वे हैंडसेट जरूर बदल लेते हैं। उन्होंने कहा कि हैकिंग न तो पहली बार हो रही है, न ही आखिरी बार। बस हमें सतर्क रहने के लिए दो कदम आगे रहना होता है। इसकी ट्रेनिंग उन्होंने ली है और अपने सहयोगियों को भी दी है। वैसे हम आदिवासियों और सरकार दोनों से शांति का आग्रह करने का काम ही कर रहे हैं। छुपकर कुछ नहीं कर रहे हैं। हमारी बस ये ही गुजारिश है कि सरकार को जो भी जानकारी हासिल करनी है, वह उसे कानूनी तरीके से प्राप्त करे।

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