एमएचएआई द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से हुआ ख़ुलासा

महामारी स्वच्छता दिवस 28 मई पर विशेष 

लॉकडाउन के कारण कई जगह सेनेटरी पैड की अनुपलब्धता ने महिलाओं एवं लड़कियों को डिस्पोजेबल पैड की जगह कपड़े के पैड का इस्तेमाल करने पर बाध्य किया है।
सरकार द्वारा स्कूलों में सेनेटरी पैड का वितरण किया जाता है लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों के बंद होने से कई लड़कियों एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों को सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का निर्माण भी बाधित हुआ है जिससे ग्रामीण स्तर के रिटेल पॉइंट्स पर पैड की उपलब्धता भी बेहद प्रभावित हुई है। गाँव के जो लोग ब्लॉक या जिला स्तर से सेनेटरी पैड की खरीदारी कर सकते थे, वह  भी लॉकडाउन के कारण यातायात साधन उपलब्ध नहीं होने से आसानी से पहुंच नहीं पा रहे हैं।  
सेनेटरी पैड की आसान उपलब्धता में होलसेलर्स को भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। निरंतर दो महीने तक देशव्यापी लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड की होलसेल वितरण काफी प्रभावित हुआ है। यद्यपि धीरे-धीरे इसे पुनः नियमित करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन परिवहन भाड़ा अभी भी चुनौती है। अभी सेनेटरी पैड के सीमित उत्पादन की संभावना बनी रहेगी, क्योंकि फैक्ट्री के अंदर मजदूरों को सामाजिक दूरी का ख्याल रखना होगा। साथ ही जिन फैक्ट्रियों में प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक थी, वहां मजदूरों की कमी की समस्या बढ़ सकती है।
यह खुलासा वाटर ऐड इंडिया एंड डेवलपमेंट सौलूशन द्वारा समर्थित मेंसट्रूअल हेल्थ अलायन्स इंडिया(एमएचएआई) द्वारा किया गया है। इनके द्वारा अप्रैल माह में सर्वेक्षण किया गया था।  एमएचआई भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं, निर्माताओं और चिकित्सकों का एक नेटवर्क है। सर्वेक्षण में महामारी के दौरान सेनेटरी पैड का निर्माण, पैड का समुदाय में वितरण, सप्लाई चेन में चुनौतियां, सेनेटरी पैड की समुदाय में पहुंच एवं जागरूकता संदेश जैसे विषयों पर राय ली गई। सर्वे में देश एवं विदेश के 67 संस्थानों ने हिस्सा लिया।
इसमें पाया गया कि कोविड-19 के पहले माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े 89% संस्थान सामुदायिक आधारित नेटवर्क एवं संस्थान के माध्यम से समुदाय तक पहुँच रहे थे। 61% संस्थान स्कूलों के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरित कर रहे थे। 28% संस्थान घर-घर जाकर पैड का वितरण कर रहे थे। 26% संस्थान ऑनलाइन एवं 22% संस्थान दवा दुकानों एवं अन्य रिटेल शॉप के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरण कार्य में लगे थे।
महामारी के बाद 67% संस्थानों ने अपनी सामान्य कार्रवाई को रोक दी है। कई छोटे एवं मध्य स्तरीय निर्माता सेनेटरी पैड निर्माण करने में असमर्थ हो गये हैं। 25% संस्थान ही निर्माण कार्य पूरी तरह जारी रख पाये हैं। 50% संस्थान आंशिक रूप से ही निर्माण कार्य कर पा रहे हैं।
दूसरे देशों से आयात रोके जाने से कई सामग्रियों के लिए इससे चुनौती बढ़ी है. विशेषकर महावारी कप्स के आयात में काफी मुश्किलें आई है।  लॉकडाउन के कारण ऑनलाइन बिक्री और कोरियर सेवाएं चालू नहीं थीं. इससे नियमित मांग और राहत प्रयासों दोनों को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के बीच उत्पाद मांग की सेवा के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
महिलाओं एवं लड़कियों की फीडबैक भी जरुरी
इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन (ICRW) एशिया की टेक्निकल एक्सपर्ट सपना केडिया कहती हैं, महावारी स्वच्छता कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए इस संबंध में महिलाओं एवं लडकियों से भी फीडबैक लेनी चाहिए. इस फीडबैक में मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों एवं सेवाओं की उपलब्धता, पहुंच, लागत, स्वीकार्यता (गुणवत्ता और अन्य स्थानीय कारक) को शामिल करना चाहिए।
कोरोना काल में कपडे का सेनेटरी पैड बेहतर विकल्प
रेगुलर  सेनेटरी पैड के विकल्प के रूप में कपड़े से बने पैड को भी सामान रूप से प्रचारित किया जा सकता है। कपड़ों से बने पैड को 4-6 घंटे तक इस्तेमाल की जाए, पैड बदलने से पूर्व एवं बाद में हाथों की सफाई की जाए। साफ़ सूती कपडे से बने ही पैड इस्तेमाल में ली जाए और पैड को अच्छी तरह धोने के बाद धूप एन सुखाया जाए ताकि किसी भी तरह के संक्रमण प्रसार का खतरा कम हो सके।

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