हर एक की अलग मार्मिक कहानी
शहर में इधर-उधर घूम रहे बच्चों के पुनर्वास के लिए पुलिस ने आज से अभियान शुरू किया है। न केवल बच्चे बल्कि युवा और बुजुर्ग-जिनमें महिलाएं भी हैं, उनकी पहचान कर इलाज के लिए आज रविवार को अभियान शुरू किया गया है।
पुलिस ने आज शहर में घूम-घूम कर ऐसे बच्चों और बड़ों की तलाश शुरू की, जो कबाड़, पन्नी आदि का काम करने के नाम पर शहर में घूमते रहते हैं। इनको आज दोपहर रक्षित केन्द्र स्थित पुलिस परिवार चिकित्सालय में लाया गया। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नीरज चंद्राकर ने बताया कि पुलिस अधीक्षक आरिफ एच. शेख की पहल पर यह मुहिम आज शुरू की गई है। इससे के पीछे कई उद्देश्य हैं। सबसे पहला उद्देश्य तो यह है कि इन बच्चों को नशे से मुक्त करने की कोशिश की जाए। नशे के कारण होने वाली बीमारियों से बचाया जाए। नशे के कारण वे अपराध की तरफ मुड़ जाते हैं, इससे उन्हें बचाया जाए। इससे भी ज्यादा जरूरी है कि जो बच्चे दूसरे शहरों से आकर यहां घूम रहे हैं, उनके माता-पिता का पता लगाकर उन्हें उनके घर वापस किया जाए। इस समय देशभर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुमशुदा बच्चों की तलाश का अभियान चल रहा है। आज इस अभियान में एक किशोर बनारस का भी मिला है, जिसकी जानकारी गुमशुदा बच्चों के लिए बनाए गए वेब-पोर्टल पर भी डाली जा रही है।
इन बच्चों के साथ कई भीख मांगने वाले बच्चे और बड़े भी हैं। इनकी संख्या करीब 25 है। इनके भी नशे में लिप्त होने की आशंका है। एएसपी चंद्राकर ने बताया कि जो बच्चे स्थानीय हैं, उनको उनके माता-पिता के सुपुर्द कर दिया जाएगा। जो वयस्क हैं उनके विरुद्ध प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की जाएगी। सभी पकड़े गए लोगों का प्राथमिक उपचार पुलिस चिकित्सालय में किया जा रहा है।
इस बीच blive.news को दो बच्चों से बात करने का मौका मिला। एक 11 साल का मोनू (बदला हुआ नाम) है, जिसका दावा है कि वह कोई नशा नहीं करता। उसके पिता की मौत हो चुकी है और मां दूसरी जगह शादी करके जा चुकी है। वह अपनी बहन के पास रहता है। वह पढ़ना चाहता है, पर तीसरी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उसका यह भी दावा है कि वह बहन के साथ सब्जी बेचता है। पर जब परीक्षण के लिए डॉ. सोनकर ने देखा तो पाया कि मोनू ने अपने हाथ को ब्लेड से काटा है। यह उसके नशे का आदी होने का सबूत है। इसी तरह 15 साल के बबलू (बदला हुआ नाम) का कहना है कि वह कभी-कभी नशा करता है। वह खुद नहीं करता पर जिनके साथ घूमता है वे करते हैं। इसी तरह की कहानी दूसरे नशे में लिप्त लोगों की है।
बताया गया कि ये बच्चे नाइट्रा, बोनफिक्स, पंचर बनाने का साल्यूशन, गांजा, शराब आदि का सेवन करते हैं। इसके लिए वे छोटे-बड़े अपराध को अंजाम देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं।
पुनर्वास केन्द्र नहीं होने से परेशानी
Bilaspurlive.com ने पाया कि इन पकड़े गए बच्चों को पूरी तरह नशा मुक्त कर बेहतर माहौल देने के लिए शहर में कोई पुनर्वास केन्द्र नहीं है। सिम्स में एक नशा मुक्ति केन्द्र बड़ों और बच्चों के लिए बनाया गया है, जहां सिर्फ दवाओं के जरिये कुछ समय तक नशे के प्रभाव से मुक्त करने का प्रयास किया जाता है, पर वहां से छूटने के बाद वे फिर उसी माहौल में वापस लौट जाते हैं। बाल संरक्षण गृह में बच्चों के खाने, कपड़े और रहने की व्यवस्था तो की जाती है, पर खेलकूद, व्यायाम, योग, नैतिक शिक्षा आदि देने की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कई बार इस बाल संरक्षण गृह से बच्चे भाग भी जाते हैं।
एएसपी चंद्राकर ने इस बारे में कहा कि पुलिस के पास इस सम्बन्ध में सीमित अधिकार हैं। बहुत से चिकित्सक अपनी सेवाएं इन कामों के लिए देने को तैयार हैं पर उसके लिए शासन से मान्यता प्राप्त किसी पुनर्वास केन्द्र की जरूरत है जो यहां नहीं है।