काठमांडू। नेपाल में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों ने आज दूसरे दिन भी उग्र रूप धारण कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया। प्रदर्शनकारियों ने कर्फ्यू की अवहेलना करते हुए संसद भवन को आग लगा दी, कई नेताओं के घरों पर हमला किया और काठमांडू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के संचालन को प्रभावित किया। कम से कम 21 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 400 से अधिक घायल हैं।
प्रदर्शन मुख्य रूप से जेन-जेड युवाओं द्वारा संचालित हैं, जो भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और कुशासन के खिलाफ सड़कों पर उतरे हैं। यह आंदोलन 4 सितंबर को सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, जैसे फेसबुक, एक्स (पूर्व ट्विटर), इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लगाए गए प्रतिबंध से शुरू हुआ था। सरकार ने इन प्लेटफॉर्म्स को नेपाल में पंजीकरण न करने का हवाला देकर ब्लॉक कर दिया था। हालांकि, 8 सितंबर की शाम को कैबिनेट बैठक के बाद प्रतिबंध हटा लिया गया, लेकिन इससे प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ।
8 सितंबर को प्रदर्शन हिंसक हो गए, जब पुलिस ने रबर की गोलियां और लाइव फायरिंग की, जिससे 19 लोगों की मौत हो गई (काठमांडू में 17 और इतहारी में 2)। प्रदर्शनकारियों ने संसद के गेट को तोड़ दिया और सुरक्षा बलों से भिड़ंत की। नेपाल मानवाधिकार आयोग ने पुलिस पर अत्यधिक बल प्रयोग का आरोप लगाया और इसे तुरंत रोकने की मांग की। इस हिंसा के बाद गृह मंत्री रमेश लेखक और कृषि मंत्री राम नाथ अधिकारी ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया। नेपाली कांग्रेस ने ओली सरकार से समर्थन वापस लेने पर चर्चा की।
9 सितंबर को प्रदर्शन और तेज हो गए। काठमांडू घाटी, सरलाही और रौताहट में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगाया गया, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने लालबंदी नगरपालिका कार्यालय को आग लगा दी, मिनभवन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आग लगाई और पूर्व प्रधानमंत्रियों शेर बहादुर देउबा तथा पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के घरों पर हमला किया। इस्तीफा देने वाले मंत्रियों के आवास भी निशाना बने। प्रधानमंत्री ओली का बालकोट स्थित निजी आवास आग के हवाले कर दिया गया, और प्रदर्शनकारियों ने नेपाली कांग्रेस तथा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) के मुख्यालय पर हमले की कोशिश की। शाम तक प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुसकर उसे आग लगा दी, और ओली के कार्यालय में घुसने के बाद उन्होंने इस्तीफा देने की घोषणा की। उनके सहयोगी प्रकाश सिलवाल ने कहा, “श्री ओली ने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के कार्यालय में घुसने के बाद इस्तीफा दिया।”
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस घटना की निंदा हुई है। संयुक्त राष्ट्र ने हत्याओं की त्वरित और पारदर्शी जांच की मांग की। यूएन अधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने कहा, “हम नेपाल में प्रदर्शनकारियों की हत्याओं और घायलों से स्तब्ध हैं और तुरंत जांच की मांग करते हैं।” ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, फ्रांस, जापान, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका के सात विदेशी मिशनों ने संयुक्त बयान में हिंसा पर चिंता जताई, शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया तथा संयम बरतने की अपील की।
नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता की पृष्ठभूमि में यह घटना एक और मोड़ है। देश में 1951 से लेकर 2008 तक राजतंत्र से गणतंत्र तक कई परिवर्तन हुए हैं, लेकिन गठबंधन सरकारें और लटकती संसदें स्थिरता को चुनौती देती रही हैं। 2022 के चुनावों के बाद ओली चौथी बार प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन अब यह आंदोलन लोकतंत्र की कमजोरियों को उजागर कर रहा है। प्रदर्शनकारियों की मांग अब व्यापक बदलाव की है, जिसमें सामूहिक इस्तीफे और भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई शामिल है।
सरकार ने जांच समिति गठित की है, जो 15 दिनों में रिपोर्ट सौंपेगी। मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवजा और घायलों को मुफ्त इलाज का वादा किया गया है। लेकिन स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है, और आगे के घटनाक्रम पर सभी की नजरें टिकी हैं।