रायपुर। छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो कैथोलिक ननों की गिरफ्तारी ने देशभर में राजनीतिक हलचल मचा दी है। मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोपों में हुई इस कार्रवाई ने केंद्र और राज्य की राजनीति को आमने-सामने ला खड़ा किया है। विपक्षी दलों ने इसे धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमला करार दिया है, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार इसे कानूनी कार्रवाई बता रही है। इस घटना ने आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार और धर्मांतरण जैसे संवेदनशील मुद्दों को फिर से चर्चा में ला दिया है।
दुर्ग स्टेशन पर हुई थी गिरफ्तारी
25 जुलाई 2025 को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यकर्ताओं ने नारायणपुर (बस्तर) की तीन आदिवासी लड़कियों (18-19 वर्ष) को दो ननों, सिस्टर वंदना फ्रांसिस और सिस्टर प्रीति मैरी, के साथ पकड़ा। ये लड़कियां कथित तौर पर आगरा के फातिमा अस्पताल में नौकरी के लिए जा रही थीं, जहां उन्हें 8,000 से 10,000 रुपये मासिक वेतन और अन्य सुविधाओं का वादा किया गया था। बजरंग दल ने आरोप लगाया कि यह मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण का प्रयास था। कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी करते हुए ननों और एक अन्य व्यक्ति, सुकमान मंडावी, को रेलवे पुलिस (GRP) के हवाले कर दिया।
दुर्ग GRP थाना भिलाई-3 ने शिकायत के आधार पर जांच शुरू की और छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया। तीनों आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस के अनुसार, लड़कियों के पास माता-पिता की सहमति पत्र और वैध दस्तावेज थे, लेकिन प्रलोभन और धर्मांतरण की आशंका के आधार पर कार्रवाई की गई।
राहुल गांधी ने कहा BJP-RSS का भीड़तंत्र
इस घटना ने देशव्यापी सियासी तूफान खड़ा कर दिया। दिल्ली में संसद के बाहर 28 जुलाई को यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) और कांग्रेस के सांसदों ने विरोध प्रदर्शन किया। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर कार्रवाई की निंदा की। उन्होंने कहा, “दो ननों को बजरंग दल की हिंसक भीड़ ने बिना किसी ठोस सबूत के निशाना बनाया। यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।”
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इसे “बीजेपी-आरएसएस का भीड़तंत्र” करार देते हुए कहा, “यह अल्पसंख्यकों के व्यवस्थित उत्पीड़न का खतरनाक पैटर्न है।” कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इसे अल्पसंख्यकों और महिलाओं के अधिकारों पर हमला बताया। सीपीआई(एम) की वरिष्ठ नेता वृंदा करात ने बजरंग दल को “खुली छूट” देने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय माँगा, लेकिन यह नहीं हो सका। समय समाप्त होने के कारण वह जेल में भी ननों से नहीं मिल पाईं।
27 जुलाई को इंडिया गठबंधन के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल, जिसमें बेनी बहनन, फ्रांसिस जॉर्ज, एनके प्रेमचंद्रन, अनिल ए थॉमस, सप्तगिरि शंकर उल्का और जरीता लैतफलांग शामिल थे, दुर्ग सेंट्रल जेल पहुँचा। सांसदों ने ननों से मुलाकात की और जेल प्रशासन पर मिलने से रोकने का आरोप लगाया। सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने कहा, “ननों को रेलवे स्टेशन पर सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया गया। हम इस मुद्दे को संसद में उठाएँगे और गृह मंत्री से मुलाकात करेंगे।” पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी जेल पहुँचे और इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताया।
केरल भाजपा अध्यक्ष का ननों के पक्ष में बयान
केरल भाजपा अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्रवाई को गलत ठहराते हुए कहा, “इस मामले में धर्मांतरण का कोई सबूत नहीं है। नन वैध नौकरी के लिए लड़कियों को ले जा रही थीं। हम उनकी रिहाई के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।” उनके इस बयान ने भाजपा के भीतर मतभेद को उजागर किया, क्योंकि बजरंग दल ने इसे लेकर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी थी। चंद्रशेखर ने स्पष्ट किया कि बजरंग दल एक स्वतंत्र संगठन है और यदि कोई कानून तोड़ेगा, तो उसे सजा मिलेगी।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की माँग की। उन्होंने कहा, “ननों को जबरन हिरासत में लिया गया और उनके परिवार वालों से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी गई।”
छत्तीसगढ़ CM ने आरोपों को खारिज किया
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “यह मानव तस्करी और धर्मांतरण का मामला है। नारायणपुर की तीन बेटियों को नौकरी का झाँसा देकर आगरा ले जाया जा रहा था। पुलिस ने कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की।” गृह मंत्री विजय शर्मा ने भी इस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा, “छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जाँच निष्पक्ष होगी और दोषियों को सजा मिलेगी।”
चर्च और अन्य संगठनों की प्रतिक्रिया
सीरो-मालाबार चर्च और भारतीय कैथोलिक बिशप सम्मेलन (CBCI) ने इस गिरफ्तारी को “मनगढ़ंत” और “अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश” बताया। CBCI ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से हस्तक्षेप की माँग की और कहा कि ननों के पास सभी वैध दस्तावेज थे। सिस्टर आशा पॉल ने दावा किया कि लड़कियों को ननों के खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर किया गया।
आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार का मुद्दा
यह घटना छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों, विशेषकर बस्तर और नारायणपुर, में रोजगार की कमी को भी उजागर करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि आर्थिक पिछड़ापन और सीमित अवसरों के कारण आदिवासी युवा, विशेषकर लड़कियाँ, नौकरी के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं। इस तरह के प्रलोभन शोषण और सामाजिक तनाव को बढ़ावा देते हैं।
अंतरराष्ट्रीय ईसाई समुदाय की प्रतिक्रिया
इंटरनेशनल क्रिश्चियन कंसर्न (ICC), एक वैश्विक संगठन जो धार्मिक उत्पीड़न के मुद्दों पर काम करता है, ने इस घटना की निंदा की है। ICC ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में इस गिरफ्तारी को भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर ईसाइयों, के खिलाफ बढ़ते उत्पीड़न का हिस्सा बताया। संगठन ने कहा कि ननों को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा निशाना बनाया गया और रेलवे पुलिस पर दबाव डालकर उनकी गिरफ्तारी कराई गई। ICC ने इस घटना को भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे का प्रतीक माना और इसकी जाँच की माँग की।
कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) का बयान
CBCI एक भारतीय संगठन है, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान मिला है, क्योंकि यह वैश्विक कैथोलिक समुदाय का हिस्सा है। CBCI ने इस गिरफ्तारी को “चिंताजनक” और “ननों के खिलाफ झूठे आरोपों का हिस्सा” करार दिया। संगठन ने कहा कि ननों के पास लड़कियों के माता-पिता से लिखित सहमति थी, फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया और कथित तौर पर शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। CBCI ने इस मामले को सभी उचित मंचों पर उठाने की बात कही, जो वैश्विक कैथोलिक संगठनों तक पहुँच सकता है।
एशिया न्यूज़ की रिपोर्ट
एशिया न्यूज़, एक अंतरराष्ट्रीय समाचार मंच जो धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, ने इस घटना को कवर करते हुए इसे भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और उत्पीड़न का हिस्सा बताया। इसने CBCI के बयान को उद्धृत करते हुए कहा कि ननों को रेलवे स्टेशनों पर सामाजिक अशांति फैलाने वालों द्वारा घेर लिया जाता है, जोड़-तोड़ करते हैं और अपमानजनक भाषा का उपयोग करते हैं।
ईसाइयों पर हमले के 150 मामलों का दावा
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर पहले से ही वैश्विक संगठनों की नजर है। इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया (EFI) ने अपने 2024 के वार्षिक प्रतिवेदन में भारत में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के 840 मामलों का उल्लेख किया, जिसमें छत्तीसगढ़ में 150 मामले शामिल हैं।