नई दिल्ली: क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर फैसला लेने की समय सीमा बांधनी चाहिए? इस सवाल ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में 19 अगस्त 2025 को तीखी बहस छेड़ दी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है, जिस पर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की। केंद्र और राज्यों के बीच टकराव, संवैधानिक शक्तियों का सवाल, और कोर्ट की राय—यह मामला देश की सियासत को नई दिशा दे सकता है।
सुनवाई में क्या-क्या दलीलें आईं?
- केंद्र सरकार की तरफ से: अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्तियां बुनियादी हैं। अगर कोर्ट समय सीमा थोप देगा, तो उनकी स्वतंत्रता कमजोर होगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जोड़ा कि राज्यपाल कोई बाहरी ताकत नहीं, बल्कि संवैधानिक संरक्षक हैं। समय सीमा से ‘संवैधानिक अराजकता’ फैल सकती है, क्योंकि संविधान में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। केंद्र का कहना है कि राष्ट्रपति की शक्तियां इतनी अहम हैं कि उन पर समय की पाबंदी नहीं लगाई जा सकती।
- केरल और तमिलनाडु की तरफ से: इन राज्यों ने राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि यह रेफरेंस अप्रैल 2024 के उस फैसले को अप्रत्यक्ष रूप से पलटने की कोशिश है, जिसमें कोर्ट ने राज्यपालों के लिए 1 महीने और राष्ट्रपति के लिए 3 महीने की समय सीमा तय की थी। केरल ने पूछा कि क्या यह रेफरेंस न्यायिक फैसले की अंतिमता को चुनौती दे रहा है? उन्होंने इसे ‘अमान्य’ करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्या कांत, विक्रम नाथ, पी एस नरसिम्हा और अतुल एस चंदुरकर शामिल थे, ने कहा कि यह मामला सिर्फ सलाह देने का है, न कि पुराने फैसले को उलटने का। सीजेआई ने पूछा, “राष्ट्रपति को राय मांगने से क्या दिक्कत है?” जस्टिस सूर्या कांत ने साफ किया कि उनकी राय से पुराना फैसला रद्द नहीं होगा, बस संविधान की व्याख्या होगी। बेंच ने माना कि राज्यपाल और राष्ट्रपति अनंत काल तक देरी नहीं कर सकते, लेकिन समय सीमा का सवाल जटिल है।
आगे कब होगी सुनवाई?
यह सुनवाई अभी खत्म नहीं हुई है। अगली तारीख 20 अगस्त 2025 है, इसके बाद 21 और 26 अगस्त को भी बहस होगी। पहले दिन राज्यों की प्रारंभिक आपत्तियां सुनी गईं, अब केंद्र और अन्य पक्षों की दलीलें विस्तार से आएंगी।
मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
यह विवाद अप्रैल 2024 से शुरू हुआ, जब तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल आर एन रवि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। शिकायत थी कि राज्यपाल कई विधेयकों पर फैसला टाल रहे थे। कोर्ट ने तब फैसला दिया कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को 1 महीने और अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति को 3 महीने में फैसला करना होगा। देरी की वजह बतानी होगी। केंद्र को यह फैसला पसंद नहीं आया, क्योंकि इससे राज्यपालों की स्वायत्तता पर असर पड़ता है। मई 2025 में राष्ट्रपति ने 14 सवालों का रेफरेंस कोर्ट को भेजा, जिसमें पूछा गया कि क्या कोर्ट ऐसी समय सीमा तय कर सकता है, जहां संविधान चुप है? यह मामला केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के संतुलन को प्रभावित कर सकता है।