“उन्होंने हमें बचपन में ही ऐसे संस्कार दे दिए कि देश के प्रति आस्था टूट ही नहीं पाती”
बिलासपुर। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी पुण्यतिथि के एक दिन पहले याद कर बिलासपुर की चुनावी जनसभा में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भावुक हो गईं। बचपन में अपनी दादी और उसके कुछ साल बाद पिता राजीव गांधी की हत्या को लेकर उन्होंने भीड़ में 6 मिनट तक वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि इतने विस्तार से उन्हें इसलिये कहना पड़ रहा है कि हम पर परिवारवाद के आरोप लगते हैं। यह परिवारवाद नहीं, देशभक्ति है।
प्रियंका गांधी के भाषण का वह हिस्सा कुछ ऐसा है-
“कल इंदिरा जी की पुण्यतिथि है। मुझे अपनी छोटी सी एक बात याद आई। मैं उसे समय 12 साल की थी। सुबह 8:00 बजे मैं स्कूल जा रही थी। हम लोग इकट्ठे रहते थे। दादी के पास गई। स्कूल में प्रतियोगिता थी। उसके लिए मैंने दादी से एक थैला मांगा जो वह अपने पास हमेशा रखती थी। थैला मिलने के बाद उनको प्यार से जकड़कर बाय-बाय बोलकर स्कूल चली गई। तकरीबन 2 घंटे बाद हमें स्कूल से लेने सुरक्षाकर्मी आ गए। गाड़ियों में बिठाया। इतने सारे सुरक्षाकर्मी मैंने जीवन में कभी नहीं देखे थे। मुझे और राहुल को मालूम नहीं था कि आखिर हुआ क्या है?”
“मैं 12 साल की थी, वह 14 साल का था। हम घर आए, गाड़ी से उतरे तो जमीन पर खून के बड़े-बड़े धब्बे थे। उस समय हमें मालूम नहीं था कि यह हमारे दादी का खून था, जो मिट्टी में मिल चुका था। अंदर गए, माता-पिता नहीं थे। पिता बंगाल के दौरे पर थे। माताजी दादी को लेकर अस्पताल गई थीं। जब अंदर गए और पता चला कि दादी की हत्या हो गई है।“
“एक अजीब सा दुख मन में। ऐसा लगा कि अगले दिन हमारी सुबह हो भी सकती है या नहीं। वह केवल हमारी दादी ही नहीं थीं बल्कि वह महान शख्सियत थीं। क्या इस तरह से उनको कोई खत्म कर सकता है? और इतनी हिंसा से? अक्सर मैं सोचती हूं कि इतनी हिंसक घटना घटी हमारे साथ। हमारी दादी मां समान थी। कैसी देशभक्ति की भावना उन्होंने हमारे दिलों में डाली होगी कि एक सेकंड के लिए, मिनट के लिए इस देश के लिए हमारी आस्था नहीं टूटी। 7 साल बाद… मैं 19 साल की थी। यही घटना मेरे पिता के साथ घटती है। पिता का छलनी, खून से लथपथ शरीर घर लाती हूं। फिर भी इस देश में आस्था नहीं टूटती। देशभक्ति कम नहीं होती, बढ़ती जाती है।“
“मैं इसलिए सारी बातें कर कह रही हूं क्योंकि जब हम अपनी पीढ़ी की बात करते हैं, इंदिरा जी की बात करते हैं, नेहरू जी की बात करते हैं, राजीव जी की बात करते हैं तो हमारी आलोचना करने वाले एकदम से परिवारवाद की बात उठाते हैं। मैं आपसे कहना चाहती हूं कि यह परिवारवाद नहीं है। यह देश के प्रति एक भक्ति है, जो टूट नहीं पा रही है। और एक श्रद्धा है, जो यहां बैठे हैं मेरे भाई, बहन, किसान और जवानों के लिए। जो अन्नदाता हैं, जो हमें खाने के लिए अनाज देता है। उसका जवान बेटा सीमा पर हमारे लिए तैनात है। उसके लिए जो मेरी दादी की तरह, मेरे पिता की तरह, देश के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार होता है।“