रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में रामगढ़ क्षेत्र के संरक्षण को लेकर चली आ रही लंबी लड़ाई में अब केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया है। पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव ने आज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए केंद्रीय वन महानिदेशक और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री का धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा कि रामगढ़ के संरक्षण पर उनके और स्थानीय समुदाय के आग्रह की गंभीरता को समझते हुए केंद्र ने छत्तीसगढ़ सरकार को इस विषय में जांच कर न्यायोचित कार्रवाई के आदेश दिए हैं। सिंहदेव ने उम्मीद जताई कि अब राज्य सरकार भी माता सीता और भगवान राम से जुड़ी इस पुरातात्विक और पर्यावरणीय धरोहर की रक्षा के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञों से जांच करवाएगी।
इस पोस्ट के साथ उन्होंने एक आधिकारिक पत्र भी साझा किया, जिसमें उन्होंने केंद्र से रामगढ़ के संरक्षण की गुहार लगाई है। पत्र में उल्लेख है कि रामगढ़ कोयला खनन से प्रभावित हो रहा है और इसके लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की गई है। सिंहदेव ने लिखा, “कृपया उपरोक्त प्रार्थना पत्र के अनुसार रामगढ़ क्षेत्र के संरक्षण हेतु छत्तीसगढ़ सरकार को निर्देश दें।”
मामले की पृष्ठभूमि
रामगढ़ विवाद हसदेव अरण्य के घने जंगलों में स्थित एक प्राचीन पर्वत से जुड़ा है, जिसे रामायण काल से जोड़ा जाता है। स्थानीय परंपराओं में इसे माता सीता के वनवास का स्थान माना जाता है, जहां सीता बेंगरा और जोगी मारा गुफाएं मौर्य कालीन हैं। ये गुफाएं भारत की सबसे पुरानी नाट्यशालाओं के प्रमाण रखती हैं और भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ तथा कालिदास की ‘मेघदूत’ रचना से प्रेरणा का स्रोत मानी जाती हैं। यहां पांडो जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर भी बसी है।
विवाद की जड़ है सरगुजा के पास प्रस्तावित ‘केते एक्सटेंशन’ कोयला खदान, जो राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम (आरआरवीयूएनएल) के लिए है। इस खदान के लिए 1,742.60 हेक्टेयर वन भूमि डायवर्शन की सिफारिश की गई है, जिसमें साढ़े चार लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे। इससे पर्यावरणीय क्षति, लेमरू हाथी अभयारण्य से हाथियों का विस्थापन और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ने का खतरा है। पहले से चल रही दो खदानों से ही रामगढ़ पर्वत में दरारें पड़ चुकी हैं।
हाल के विरोध और राजनीतिक टकराव
अगस्त 2025 में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने खदान स्वीकृति की सिफारिश की, जिसके खिलाफ स्थानीय आदिवासी समुदायों ने जोरदार विरोध किया। टीएस सिंहदेव समेत कांग्रेस नेताओं ने इसे “सांस्कृतिक हमला” करार दिया। 2023-24 में हसदेव अरण्य में पेड़ कटाई के खिलाफ ग्रामीणों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं, जहां सैकड़ों पेड़ काटे गए। कांग्रेस शासनकाल (2018-2023) में विधानसभा ने सर्वसम्मति से इस खदान का विरोध किया था और सर्वे में रामगढ़ को खदान से 10 किमी के दायरे में पाया गया, जिसके चलते एनओसी नहीं दी गई।
वहीं, भाजपा सरकार ने नया सर्वे कर दूरी को 11 किमी बताकर स्वीकृति की तैयारी की। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने 2022 में कहा था कि यदि सिंहदेव विरोध करेंगे तो “एक भी डाल नहीं कटेगी।” हालांकि उस दौरान भी पेड़ काटे गए। वर्तमान सीएम विष्णु देव साय ने खनन को “पर्यावरण मानकों के अनुरूप” बताते हुए आर्थिक लाभ और रोजगार का हवाला दिया।
विरोधी सरकारी रिपोर्टें
मामले में विभागों के बीच विरोधाभास साफ दिखता है। पुरातत्व और संस्कृति विभाग रामगढ़ को सांस्कृतिक धरोहर मानता है, जबकि वन विभाग ने अगस्त 2025 में डायवर्सन की सिफारिश की। खनन विभाग आंकड़ों में हेरफेर का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने कहा कि नया सर्वे “औपचारिकता” मात्र है। सिंहदेव ने सितंबर 2025 में एक पोस्ट में लिखा, “ना जांच, ना विशेषज्ञ, बस यूं ही हरी झंडी।” केंद्र के आदेश से अब स्वतंत्र जांच की उम्मीद बंधी है, जो राज्य सरकार के लिए चुनौती बन सकती है।