चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की रचनाओं पर “दोस्तों की कॉफी” समूह का आयोजन
‘उसने कहा था’, चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की यह कहानी 1903 की है। पर यह साहित्य जगत की आज भी अनमोल धरोहर है। शनिवार की शाम बिलासपुर प्रेस क्लब में इस कहानी का पाठ किया गया और साहित्य रसिकों ने इस कहानी तथा ‘गुलेरी’ के योगदान पर विचार-विमर्श किया। पत्रकार राजेश दुआ ने करीब 40 मिनट तक इस कहानी का वाचन किया, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच। अंदाज कुछ ऐसा था कि कथानक का सारा दृश्य आंखों के सामने उतर गया। इसके बाद रामकुमार तिवारी, सतीश जायसवाल और बजरंग केडिया जैसे हस्ताक्षरों तथा शिक्षाविद् विवेक जोगलेकर ने इस कहानी और ‘गुलेरी’ की अन्य रचनाओं पर प्रकाश डाला। कथाकार और कथानक के जाने-अनजाने अनेक पक्ष अनावृत होते चले गए। श्रोता सांस बांधे दो घंटे से अधिक चले इस आयोजन में टिके रहे।
कार्यक्रम में जैसे जमादार लहनासिंह, सूबेदार हजारा सिंह का प्रथम विश्वयुद्ध में जूझना , वह 14 साल के लड़के का 8 साल की लड़की से “तेरी कुड़माई हो गई” पूछना और लड़की का “घत्त” कहकर शर्माना मानो जीवंत हो उठा।
“दोस्तों की कॉफी” समूह ने शनिवार शाम ,बिलासपुर प्रेस क्लब भवन में एक अनोखे कार्यक्रम का आयोजन किया ।इसमें विख्यात कहानीकार, साहित्यकार चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की सौ साल पहले लिखी गई कहानी “उसने कहा था” का पाठ किया गया ।
पत्रकार राजेश दुआ ने पूरे भाव के साथ श्रोताओं के बीच कहानी का पाठ किया। पाठ के पश्चात कहानीकार रामकुमार तिवारी ,सतीश जायसवाल एवं विवेक जोगलेकर ने चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की रचनाओं पर अपने विचार रखे।
तिवारी ने कहा “उसने कहा था” कहानी यह बताती है कि आज से सौ साल पहले भी हिंदी की कहानी समृद्धि और रोचकता ,संवेदना के पूरे तत्व लिए थी। इस कहानी में प्रेम और त्याग जिस तरह से ‘गुलेरी’ जी ने व्यक्त किया है वह विलक्षण है । इस कहानी का मुख्य पात्र लहनासिंह, प्रेम का दूसरा अर्थ त्याग है-यह समझाता है। कहानी की बुनावट व भाषा इतनी कसी हुई और रोचक है कि इसमें हास्य साथ-साथ चलता है ।घटनाएं इतनी तेजी से बदलती है कि पाठक अंत तक चमत्कृत रहता है।
विवेक जोगलेकर ने ‘गुलेरी’ के ललित निबंधों पर बात की। उन्होंने कहा 100 साल से भी पहले जो निबंध ‘गुलेरी’ जी ने लिखे हैं उसमें आश्चर्यजनक रूप से आज के भारत का चित्रण है। गुलेरी ने उस समय, जब खेल को समय नष्ट करने वाला कहा जाता था- एक निबंध लिखा, जिसमें खेल को शिक्षा का आवश्यक अंग बताया था। आज खेल न सिर्फ आवश्यक हैं बल्कि कैरियर के लिए एक महत्वपूर्ण विषय भी है।
जोगलेकर ने कहा कि उनके 1903 -1904 के आसपास लिखे गए निबंधों में भारत की राजनीतिक स्थिति पर भी टिप्पणियां हैं और वह वर्तमान परिस्थितियों में सटीक बैठ रही है। ऐसा कोई महान विद्वान ही कर सकता है।
सतीश जायसवाल ने कहा-‘गुलेरी’ कई भाषाओं के जानकार और प्रकांड विद्वान थे। उनके निबंध जनमानस की आवश्यकताओं और विचारों दोनों को एक साथ उजागर करते थे। उनके कथा शिल्प में भी यह बात देखने में आती है। वह अपनी कहानियों में सामाजिक ढांचे को बेहद खूबसूरती से जस का तस रखा करते थे । “उसने कहा था” कहानी में शौर्य और वीरता के लिए उन्होंने पंजाब के सिक्खों को अपने पात्र बनाए। अमृतसरी संस्कृति को उन्होंने तांगे वालों की भाषा और दुकान -बाजार के दृश्यों से समझाया। “उसने कहा था” कहानी कहानियों के इतिहास की प्रमुख रचनाओं में से एक है।
पत्रकार बजरंग केडिया ने कहा कि ‘गुलेरी’ की यह रचना अनेक प्रख्यात विदेशी रचनाकारों के समकक्ष तो हैं हीं, हमारे जमाने के प्रचलित किस्सों-कहानियों को भी प्रतिबिंबित करती हैं।
इस कार्यक्रम का संचालन विश्वेश ठाकरे ने किया। कार्यक्रम में रिटायर्ड जज सुरेंद्र तिवारी ,डॉक्टर सरोज कश्यप, हरीश केडिया, ज्ञान अवस्थी, आशुतोष चतुर्वेदी, बल्लू दुबे, अंतरा चक्रवर्ती , प्रोफ़ेसर कृष्णा सोनी,राकेश शर्मा, द्वारिका प्रसाद अग्रवाल, नथमल शर्मा, तिलकराज सलूजा, रफीक भाई, राजेश अग्रवाल ,कमल दुबे, दिनेश पटवर्धन, रामा राव, उमेश सोनी, मिहिर गोस्वामी, परमवीर मरहास, उज्मा अख्तर, देवेंद्र यादव, मोहन सोनी, रमन किरण, किशोर सिंह , नीरज दीवान, सूरज वैष्णव सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।