राजेश अग्रवाल
बिलासपुर। पूर्ववर्ती सरकार और अब में कोई चीज अगर नहीं बदली तो बड़े-बड़े बजट वाली योजनाओं का सपना दिखाकर ताम-झाम से तोड़फोड़ की तासीर। लम्बे समय तक योजना को खींचकर करोड़ों रुपये फूंक देना, फिर अधूरा छोड़ देना। हर योजना की शुरूआत इस तरह की जाती है मानों बिलासपुर शहर की सूरत में आमूल-चूल बदलाव लाने के लिये कमर कस ली गई है। उनके इस ऐतिहासिक कार्य की किसी भी गतिविधि पर सवाल करना जैसे विकास का विरोध करना है।
देश के साथ जब बिलासपुर शहर भी कोरोना संकट से जूझ रहा है तब संक्रमण के फैलाव की चिंता से बेपरवाह जिला प्रशासन और नगर-निगम ने मकानों-दुकानों को धराशायी करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। शनिवार 27 जून को जिस तरह शनिचरी, गोंडपारा और बाल्मिकी चौक पर तोड़फोड़ की कार्रवाई की गई और इससे पहले कुछ दिनों से की जा रही है, उससे प्रशासन का यही नजरिया दिखाई देता है कि कोरोना से नागरिक बच पाते हैं तो उनकी किस्मत, हमारी कोई जवाबदारी नहीं।
शहरवासी सहनशील मिजाज के हैं। किसी भी मनमानी के खिलाफ वे सड़क पर नहीं उतरते। शहर में सीवरेज परियोजना के पीछे 10 सालों में चार सौ करोड़ रुपये, बजट बढ़ा-बढ़ाकर फूंक दिये गये। शहर की सड़कों का कोई कोना नहीं बचा जिसे खोदा न गया हो। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया, मतदाताओं की दुखती रग को पकड़ा। सड़कों पर नाच-नाच कर विरोध किया। विधानसभा में भाजपा की 20 साल बाद हार की यह सबसे बड़ी वजह बनी। उम्मीद थी वादे के मुताबिक कांग्रेस सरकार अंतिम चरण में पहुंच चुकी इस योजना को प्राथमिकता से पूरा करायेगी लेकिन अब तक काम एक इंच आगे नहीं बढ़ा है। ठेका लेने वाली कम्पनी से चिरौरी-विनती की जा रही है पर वह हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं। उसने लगभग डेरा-डंडा समेटकर पिंड छुड़ा लिया है। लगता है जितनी जेबें भरी जा सकती थीं भर चुकी है अब आगे सिर्फ मुसीबत है।
अब कांग्रेस के नेता सीवरेज परियोजना का नाम तक लेना तो क्या सुनना भी पसंद नहीं करते। कभी कुरेदकर बोलने पर मजबूर किया जाता है तो आश्वासन मिलता है, परियोजना पूरी होगी, मगर कब, कैसे, इसका कोई जवाब नहीं। बरसों से जमे जिन अफसरों पर इस योजना में लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोप कांग्रेस खुद लगाती रही उनके खिलाफ जांच तो दूर उन्हें पहले से ज्यादा मलाईदार ओहदों पर बिठाकर रखा गया है। गौरव पथ में भ्रष्टाचार की जांच के लिये कांग्रेस आवाज उठाती रही। इस मामले में कुछ लोग हाईकोर्ट भी गये। कई प्रशासनिक अधिकारियों सहित एक दर्जन से ज्यादा अधिकारियों के खिलाफ हाईकोर्ट ने जांच का आदेश दिया। भाजपा सरकार में जांच की फाइल इधर-उधर घूमती रही। मंशा नहीं थी कार्रवाई करने की। कांग्रेस की सरकार आने के बाद कमाल हो गया। ये सारे अधिकारी ‘जांच’ के बाद बरी हो गये। ठीकरा कंस्ट्रक्शन कम्पनी पर फूटा पर उससे रिकव्हरी कुछ हो पायेगी इसके आसार नहीं हैं।भाजपा कार्यकाल की रुकी योजनाओं को अपने वादे के मुताबिक प्राथमिकता से पूरी कराने में दिलचस्पी लेकर शहर के मौजूदा जनप्रतिनिधिगण जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता बढ़ा सकते थे। स्मार्ट सिटी के नाम पर दो स्मार्ट सड़क के काम ही अब तक शुरू किये गये। पं. श्याम लाल चतुर्वेदी मार्ग (मिट्टी तेल लाइन) और व्यापार विहार में। बाकी पैसा योजना के प्रचार-प्रसार, होटलों में सेमिनार कराने, होर्डिंग, सर्वे, जुम्बा डांस, टी-शर्ट, कैप बांटने, आदि में खर्च किया गया। बाहर से कोई आये और हमर बिलासपुर की खूबसूरत होर्डिंग देखकर कहे चलो स्मार्ट सिटी को घुमाओ, तो उन्हें कहना पड़ेगा बस होर्डिंग से ही संतुष्ट हो जाइये, बाकी शहर अधूरे निर्माण कार्यों के लिये मॉडल है।
बहरहाल, दोनों ही सड़कों के लिये आनन-फानन में झोपड़ियां मकान, दुकानों को ध्वस्त किया गया। दर्जनों पेड़ों को काट डाला गया। बहुत कम दूरी की इन सड़कों का निर्माण आज तक नहीं हो पाया है। मिट्टी तेल गली में गरीबों की झोपड़ियां तोड़े जाने के दौरान भी सदमे से एक मौत हुई थी। साल भर से ज्यादा समय बीत चुका, व्यापार विहार मार्ग की दुकानें, धूल और कीचड़ से पटी हुई हैं और व्यवसाय बुरी तरह ठप है। अब तो इस सड़क और बगल की नाली की गलत ड्राइंग डिजाइन की वजह से नगर-निगम के काबिल इंजीनियरों को सत्तारूढ़ दल के पार्षदों की ही फटकार सुननी पड़ रही है। इसके बाद यह तय है कि इस सड़क का निर्माण कार्य अभी और लम्बा खिंचेगा। इस मार्ग से गुजरने वालों और दुकान चलाने वालों को इसके लिये तैयार रहना चाहिये।
सीवरेज की खोदाई से टूटी सड़कें आज तक सुधर नहीं पाई और जब-तक यहां-वहां धंसती रहती हैं। इधर अब अमृत मिशन के लिये सड़कों की खुदाई ने लोगों को परेशान कर रखा है। बारिश में यह समस्या और बढ़ गई है। अमृत मिशन के तहत आने वाले 30 सालों तक की पेजयल संकट दूर करने का दावा है। खूंटाघाट से पानी लाया जायेगा। दिलचस्प यह है कि शहर के भीतर इस योजना के लिये पाइप लाइन बिछाने में तो फुर्ती दिखाई जा रही है पर अरिहन नदी को खूंटाघाट बांध से जोड़ने का काम अब तक शुरू नहीं हुआ है, जिसके बाद ही खूंटाघाट से पानी शहर को मिलना है। तालाबों के सौंदर्यीकरण, तारामंडल का निर्माण जैसी कई योजनायें हैं जिनमें शुरूआती खर्च तो जोर-शोर से किया गया पर अब भी ये काम जमीन पर नहीं उतर पाये हैं। रायपुर रोड पर तिफरा में बन रहे फ्लाईओवर ब्रिज की देरी इस मार्ग से गुजरने वाले हजारों लोगों की परेशानी का सबब है।
ताजा मामला अरपा नदी के सौंदर्यीकरण और नदी में बारहों मास पानी रखने की परियोजना का है। इस योजना के अंतर्गत नदी से जुड़ने वाले नालाओं को संरक्षित किया जायेगा ताकि नदी में ठीक तरह से प्रवाह बने। दो बैराज बनाये जायेंगे, जिससे अरपा लबालब रहे और शहर का भू जल स्तर सुधरे। नदी के दोनों ओर शहर के भीतर के हिस्से में फोरलेन सड़क बनेगी जिससे यातायात की समस्या हल होगी। शहर ने भाजपा के कार्यकाल की अरपा विकास प्राधिकरण की 2400 करोड़ की भारी-भरकम योजना को असमय दफ़न होते देखा है, डिजाइन, सर्वेक्षण, स्टाफ के नाम पर ही काफी पैसे बांट दिये गये। अब लोग अपेक्षाकृत कम बजट वाली इस नई योजना के सफल होने की उम्मीद रखकर बैठे हैं।
पर कोरोना संकट के इस माहौल में बेदखली की कार्रवाई किसी आपदा से कम नहीं है। लोगों का व्यापार-धंधा चौपट है। नौकरियां छूटी है, रोजगार का ठिकाना नहीं है। बने-बनाये छत पर गुजारा मुश्किल है और अब उनके सिर पर नया आशियाना बनाने का, दुकान-टपरी तैयार करने का बोझ आ गया है। आज शनिचरी, गोंडपारा इलाके में सुबह-सुबह अचानक तोड़-फोड़ शुरू कर दी गई। नोटिस एक सप्ताह पुरानी तारीख की है लेकिन प्रभावितों का कहना है कि आज ही सुबह पांच बजे नोटिस दुकानों, घरों में चस्पा की गई और 6 बजे कार्रवाई शुरू कर दी गई। लोगों को अपना सामान समेटने का वक्त भी नहीं मिला और बंद दुकानों पर भी जेसीबी, बुलडोजर चला दिये गये। कुछ दिन पहले तिलकनगर में भी इसी तरह की कार्रवाई की गई। प्रशासन ने प्रभावितों को सरकंडा इलाके के विभिन्न अटल आवासों में शिफ्ट करने का आदेश दिया। तब पता चला कि वहां नगर निगम के कर्मचारियों और स्थानीय नेताओं की मदद से वहां तो सैकड़ों लोग अवैध रूप से पहले से रह रहे हैं। ज्यादातर लोगों को अवैध रूप से इसलिये रहना पड़ रहा था क्योंकि आवास की मांग के आवेदनों पर कार्रवाई नहीं की गई। इन्हें रातों-रात अपने घरों से बेदखल कर दिया गया। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जिन लोगों को घरों में रहने की सलाह दी गई उन्हें अपने घर के टूटे-फूटे सामानों, छोटे बच्चों और महिलाओं के साथ सड़क पर रात का वक्त गुजारना पड़ा। इन्हें जिन जगहों पर शिफ्ट करने का दावा किया जा रहा है उनमें भी कई लोगों ने फर्जी आबंटन की शिकायत की है। अनेक लोगों की शिकायत है कि आवास में इतनी खामियां हैं कि रहना मुश्किल है।
अरपा परियोजना बेशक अच्छी है। पूरी की जानी चाहिये, पर जिन अफसरों ने हर एक योजना परियोजना में बरसों की देरी का रिकॉर्ड अपने साथ चिपका रखा है वे क्या कोरोना संकट और बारिश के समय कुछ माह, हफ्तों के लिये बेदखली को टाल नहीं सकते? कुछ माह बाद अरपा पर काम शुरू होगा तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? लोग बिल्कुल नाराज नहीं होंगे, वे इनकी देरी करने की आदत को भी जानते हैं।
बिलासपुर शहर कोरोना संक्रमण से मुक्त होने की ओर बढ़ रहा है, इसका यह कतई मतलब नहीं कि इससे बचाव के उपायों की अवहेलना की जाये। बाल्मिकी आवास, गोड़पारा, शनिचरी में आज जिस तरह पुलिस और पीड़ितों के बीच झड़प हुई और एक दूसरे से पिल पड़े उसमें सामाजिक दूरी के नियम की धज्जियां उड़ गईं। जिन कर्मचारियों को तोड़-फोड़ के काम में लगाया गया है उनके बीच भी सामाजिक दूरी का बार-बार उल्लंघन होता रहा। यह असावधानी तिलकनगर में भी देखी गई थी।
उच्चाधिकारियों के निर्देश पर जिन पुलिस वालों की ड्यूटी लगी है वे भी इसके खतरे को धता बताते हुए दिखाई दे रहे हैं। ड्यूटी पर भी और आराम करते हुए भी। मालूम हो कि जिले का पचपेड़ी थाना संक्रमण के कारण फिलहाल बंद है। रायपुर के एक थाने में भी ताला जड़ना पड़ा। पुलिस खुद ही सड़कों पर रोज कोरोना से बचाव के नियमों का पालन कराने के लिये पसीना बहा रही है। दूसरी तरफ, तोड़फोड़ की इस कार्रवाई के दौरान, कई के पास न मास्क, न सामाजिक दूरी। आम लोगों को सड़क पर उतारकर उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करने पर मजबूर किया गया, इसके लिये कौन जिम्मेदार है? पुलिस को लॉ एंड ऑर्डर का पालन करने के दौरान क्या सोशल डिस्टेंस रखने या मास्क पहनकर रहने के लिये मजबूर किया जा सकता है?
गौरतलब है कि जिस अरपा परियोजना के लिये इतनी हड़बड़ी में बेदखली की कार्रवाई की जा रही है, अभी उसके टेंडर की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। जन-प्रतिनिधि आम लोगों की तकलीफ और कोरोना के खतरे के बावजूद खामोश हैं और संवेदनाओं से मुक्त अफसरशाही अपने काम पर लगी है। उन्हें ऊपर के अफसरों को जवाब देना है। जब बेदखली पर एक दिन की देरी भी अफसर बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं तो लोगों को भी हिसाब रखना पड़ेगा।ऐसा लगता है कि फोरलेन सड़क जब बनेगी तब बनेगी, बेदखली के बाद यह तो नक्शे से तय हो ही जायेगा कि कौन सी जमीन खरीदने, एलॉट कराने के लिये उपयुक्त है। टेंडर निकलने पर पता चलेगा कि कितने दिन में परियोजना पूरी करने का लक्ष्य है। उम्मीद करनी चाहिये कि ये अफसर कोई बहाना नहीं करेंगे और एक दिन की देरी करने पर ठेका हासिल करने वाली कम्पनी को भी इसी तरह बेदखल करेंगे और खुद के लिये भी दंड तय करेंगे।