प्रसिद्ध वामपंथी चिंतक व सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष गाताड़े का व्याख्यान, ट्रेड यूनियन कौंसिल का आयोजन

बिलासपुर । प्रसिद्ध वामपंथी चिंतक, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष गाताड़े का मानना है कि आज गांधी से नफरत करने वाली दक्षिणपंथी ताकतें अपने एजेंडे में सफल हो रही हैं तो इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भभाव की पक्षधर ताकतों ने समाज के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए काम नहीं किया।

ट्रेड यूनियन कौंसिल द्वारा जल संसाधन विभाग के परिसर में गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर रविवार को प्रो. गाताड़े का एक व्याख्यान का आयोजन किया गया था जिसका विषय- ‘आज के दौर में गांधी और मेहनतकश जनता की राजनीति’ रखा गया था। गाताड़े ने कहा कि जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तो उनके समावेशी विचारधारा को फौरी सफलता हुई। न केवल भारत में बल्कि पाकिस्तान में भी उनकी हत्या के बाद साम्प्रदायिक दंगे रुक गये थे। लेकिन उनकी विचारधारा की यह पराजय है कि आज 70 साल बाद दक्षिणपंथी ताकतें अपनी मंशा के अनुरूप समाज को अपने खांचे में ढालने और समुदायों के बीच नफरत फैलाने में सफल हो रहे हैं। आज गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का जन्मदिन और पुण्यतिथि मनाई जा रही है। गांधी के पुतले पर गोलियां दागी जा रही है। वाट्सअप जैसे सोशल मीडिया पर गांधी से नफरत करना सिखाया जा रहा है और गोडसे की महिमा  बताई जा रही है। न केवल मुस्लिम बल्कि दलितों और दूसरे धर्मों के लोगों के साथ लिंचिंग आम बात होती जा रही है और इसे भारतीय समाज सहज रूप से ले रहा है। कांग्रेस, समाजवादी और वामपंथी विचारक इस देश का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष रखना चाहते थे लेकिन हमसे एक गलती हुई कि हमने अपना अभियान सिर्फ राजनैतिक और आर्थिक उन्नति तक सीमित रखा, जबकि दक्षिणपंथी ताकतों ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने कार्यों का लगातार विस्तार किया और 1951 से लगातार किये जा रहे प्रयासों के बाद आज वे समाज को अपने खांचे में ढालने में सफल हो रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान मेहनतकश बिरादरी को हो रहा है।

गाताड़े ने कहा कि गांधीजी की हत्या के बारे में तर्क दिया जाता है कि उन्होंने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने की बात कही और सोमनाथ मंदिर का पुनरोद्धार राजकोष के मद से करने से मना कर दिया था, लेकिन यह दोनों झूठी बातें हैं। गांधी की हत्या की कोशिश पंचगणी महाराष्ट्र में सन् 1934 में पहली बार हुई थी। उसके बाद 20 जनवरी 1948 तक पांच बार और कोशिश हुई। इन हत्या की कोशिशों की कुछ घटनाओं में शामिल लोगों का पता ही नहीं चला लेकिन गोडसे खुद एक से अधिक बार इनमें शामिल थे। तब तो पाकिस्तान और सोमनाथ मंदिर का मुद्दा ही नहीं उठा था। हत्या की साजिश 30 जनवरी 1948 को सफल हुई। अक्सर गांधी की हत्या को एक घटना के रूप में लिया जाता है हम राजघाट जाते हैं लेकिन गांधी स्मृति भवन नहीं जाते, जहां गांधीजी को गोलियां दागी गईं। दरअसल, गांधी की हत्या एक घटना नहीं है। यह गांधी जी की विचारधारा पर किया गया हमला था, जिसमें वे सर्व धर्म समभाव रखते थे। वे एक समावेशी समाज चाहते थे। उन्होंने सभी धर्मों के बीच तालमेल बनाकर समाज में देश की आजादी के लिए प्राण फूंका।  अंतिम दिनों में गांधी जी की प्रार्थना सभा में सभी धर्मों की प्रार्थनाएं की जाने लगी थी। भारत के पहले आंतकी नाथूराम गोडसे और उनके हिन्दू राष्ट्र को मानने वाली दक्षिणपंथी ताकतें गांधी से डरती हैं। इसी डर की वजह से वे उनसे नफरत करते हैं। उन्हें डर है कि जब तक गांधी की विचारधारा जीवित रहेगी वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पायेंगे। आज आवश्यकता है कि देश की सामाजिक,सांस्कृतिक दायरे को समझते हुए समाज को धर्मनिरपेक्ष बनाया जाये।

कार्यक्रम के प्रारंभ में ट्रेड यूनियन कौंसिल के जिला अध्यक्ष पी. आर. यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में रामकुमार तिवारी, अभय नारायण राय, नंदकुमार कश्यप, आनंद मिश्रा, कपूर वासनिक, ललित अग्रवाल, लक्ष्मी जायसवाल, सुनील चिपड़े, राजेश दुआ, गिरीश त्रिवेदी सहित अनेक प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।

 

 

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