बिलासपुर। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि राज्य सरकारों को निविदाओं (टेंडर) की शर्तें तय करने का अधिकार जरूर है, लेकिन यह अधिकार संविधान की मूल भावना के विपरीत नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने चेताया कि किसी टेंडर की शर्तें इस तरह नहीं बनाई जा सकतीं जिससे बाहर के पात्र प्रतिस्पर्धियों को अनुचित रूप से रोका जाए।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक आराध्य की पीठ ने कहा कि “लेवल प्लेइंग फील्ड” यानी समान प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) का अहम हिस्सा है, जो सभी को समान अवसर के साथ व्यापार करने का मौलिक अधिकार देता है। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि सभी पात्र कंपनियों को निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा का समान मौका मिले।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें सार्वजनिक हित में शर्तें तय कर सकती हैं, लेकिन वे इस अधिकार का इस्तेमाल बाजार को “बंद क्लब” बनाने के लिए नहीं कर सकतीं।
मामला छत्तीसगढ़ सरकार की उस निविदा से जुड़ा था, जिसमें खेल किट की आपूर्ति करने वाले निविदाकारों के लिए यह शर्त रखी गई थी कि उन्होंने पिछले तीन वर्षों में राज्य सरकार की एजेंसियों को कम से कम छह करोड़ रुपये की आपूर्ति की हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त को अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि यह शर्त न केवल बाहर के योग्य आपूर्तिकर्ताओं को बाहर करती है, बल्कि कार्टेल (गुटबंदी) को बढ़ावा देती है। न्यायाधीशों ने कहा, “यह प्रावधान बाहरी कंपनियों के लिए दरवाजा बंद कर देता है और प्रतिस्पर्धा को सीमित करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है।”
राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, इसलिए केवल वही कंपनियां भरोसेमंद हैं जिन्होंने पहले यहां आपूर्ति की है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे “असंगत और अनुचित” ठहराया।
कोर्ट ने कहा कि न तो यह सुरक्षा-संवेदनशील उपकरणों की निविदा थी, न ही पूरे राज्य को नक्सल प्रभावित कहा जा सकता है। साथ ही, जो कंपनियां स्थानीय भौगोलिक स्थिति से परिचित नहीं हैं, वे स्थानीय आपूर्ति शृंखला से काम ले सकती हैं।
यह फैसला विनिशा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर आया, जिसने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य द्वारा तय की गई यह शर्त मनमानी, भेदभावपूर्ण और उद्देश्य से असंबंधित थी।
अंत में पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) को अनुच्छेद 21 (जीवन और अवसर का अधिकार) के साथ पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि समान अवसर भी नागरिकों के जीवन का हिस्सा है।