विपक्ष ने मताधिकार छिनने की आशंका जताई, चुनाव आयोग ने कहा – पारदर्शिता जरूरी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर फिलहाल कोई रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अब इस मामले की सुनवाई गुरुवार 10 जुलाई को होगी। यह याचिकाएं विपक्षी दलों और संगठनों द्वारा दायर की गई हैं, जिनमें आरोप है कि इस प्रक्रिया से मुस्लिम, दलित और गरीब प्रवासी मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं।
कोर्ट ने कहा – ज़ल्दबाज़ी नहीं, गुरुवार को सुनवाई
जनहित याचिकाएं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), राष्ट्रीय जनता दल (RJD), और पूर्व विधायक मुजाहिद आलम की ओर से दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग सहित सभी पक्षों को पहले याचिकाओं की प्रति मिले और सभी को सुना जाएगा। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने की अपील की थी, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया।
क्या है SIR और क्यों है विवाद?
SIR यानी ‘स्पेशल इंटेंसिव रिविजन’ के तहत मतदाता सूची की गहन जांच की जाती है ताकि गलत नाम हटाए जा सकें और सूची को अद्यतन किया जा सके। हालांकि विपक्ष का आरोप है कि बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस प्रक्रिया का शुरू होना जानबूझकर किया गया कदम है, जिससे खास समुदायों के मत काटे जा सकें।
कांग्रेस ने इस प्रक्रिया को “राष्ट्रीय मसला” करार दिया है और RJD सांसद मनोज झा ने कहा, “बिना परामर्श लिए यह प्रक्रिया शुरू की गई है, हम इसे कोर्ट में चुनौती देंगे।”
चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग का कहना है कि SIR नियमित प्रक्रिया है, जिसका मकसद मतदाता सूची को पारदर्शी बनाना है। किसी भी समुदाय को निशाना बनाने का कोई इरादा नहीं है। आयोग का यह भी कहना है कि यह कदम चुनाव से पहले जरूरी है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- कांग्रेस: लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बताया, संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई का ऐलान।
- RJD: कोर्ट, सड़क और सदन – तीनों मोर्चों पर लड़ाई की बात।
- JDU: अभी तक कोई साफ़ रुख नहीं, लेकिन राजनीतिक मायने बड़े माने जा रहे हैं।
आगे क्या?
बिहार में इस साल के अंत तक चुनाव संभावित हैं और ऐसे में मतदाता सूची को लेकर उठा विवाद और भी गंभीर होता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में यह साफ होगा कि SIR पर रोक लगाई जाएगी या नहीं ।