बिलासपुरसूरजपुर के रहने वाले देवचंद जायसवाल ने 25 अक्टूबर 2017 को अपने गांव महुली से जनपद पंचायत ओड़गी एक नई बाइक खरीदी और उसी दिन रास्ते में बाइक का पहिया अचानक जाम हो गया। बाइक पेड़ से टकरा गई, जिससे देवचंद को सिर और छाती में गंभीर चोटें आईं और अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई।

MACT के आदेश को हाईकोर्ट मे चुनौती

  • मृतक के परिजनों—पत्नी, बच्चों और अन्य सदस्यों—ने बीमा कंपनी ICICI Lombard के खिलाफ मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163-A के तहत 35 लाख 55 हजार रुपए मुआवजे की मांग की।
  • जांच के बाद अधिकरण ने आंशिक रूप से दावा मानते हुए कंपनी को 4 लाख 17 हजार 500 रुपए देने का आदेश दिया।
  • बीमा कंपनी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि दुर्घटना दोपहर 12:30 बजे हुई, जबकि बीमा पॉलिसी का दस्तावेज उसी दिन शाम 4:52 बजे जारी किया गया। ऐसे में दुर्घटना के समय बीमा लागू नहीं था, इसलिए मुआवजे की बाध्यता नहीं बनती।

बीमा कुछ घंटे पहले ही हो चुका था

  • हाई कोर्ट ने रिकॉर्ड का परीक्षण किया और पाया कि वाहन के लिए बीमा प्रीमियम की राशि सुबह 11:31 बजे ही जमा की जा चुकी थी।
  • वाहन डीलर, आनंद ऑटोमोबाइल्स, बीमा कंपनी का अधिकृत एजेंट था, जिसने प्रीमियम लेकर उसी दिन बीमा पॉलिसी जारी की थी।
  • बीमा अधिनियम की धारा 64 के अनुसार, जब बीमा प्रीमियम मिल जाता है, उसी समय से बीमा प्रभावी मान लिया जाता है।
  • कंपनी के तर्क पर कोर्ट ने कहा—दस्तावेज बाद में जारी होना मायने नहीं रखता, प्रीमियम की रसीद मिलते ही बीमा लागू हो जाता है।

MACT का आदेश सही

  • हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति प्रार्थ प्रतीम साहू ने बीमा कंपनी की याचिका खारिज कर दी और अधिकरण के मुआवजा देने के आदेश को बरकरार रखा।
  • कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बीमा कंपनी को प्रीमियम प्राप्त होने के बाद अपने दायित्व से मना नहीं किया जा सकता।
  • इस पूरे मामले ने यह स्पष्ट कर दिया कि पीड़ित परिवार अधिकार और कानूनी जानकारी के साथ आगे बढ़े तो न्याय मिलना संभव है, भले ही कई बड़ी कंपनियाँ सामने क्यों न हों।

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