कोर्ट ने कहा – पुलिस की बर्बरता ने छीनी एक व्यक्ति की जिंदगी, सरकार नहीं बच सकती जिम्मेदारी से

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने धमतरी जिले में पुलिस हिरासत में हुई एक आरोपी की मौत के मामले में राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि यह घटना पुलिस की बर्बरता और हिरासत में ज्यादती का नतीजा है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।

पत्नी को 3 लाख, माता-पिता को 1-1 लाख मुआवजा

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, मुख्य न्यायाधीश रमेशसिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु ने आदेश दिया कि मृतक की पत्नी दुर्गा देवी को 3 लाख रुपए और माता-पिता को 1-1 लाख रुपए का भुगतान 8 हफ्तों के भीतर किया जाए।  देरी होने पर इस राशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा।

3 घंटे में हुई मौत, शरीर पर मिले 24 जख्म

मामला अर्जुनी थाना, धमतरी का है। राजनांदगांव निवासी दुर्गेंद्र कठोलिया (41) को 29 मार्च 2025 को धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
31 मार्च को शाम 5 बजे वह पूरी तरह स्वस्थ स्थिति में कोर्ट में पेश हुआ, लेकिन सिर्फ तीन घंटे बाद, रात 8 बजे पुलिस कस्टडी में उसकी मौत हो गई।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 24 चोटों के निशान दर्ज थे — हाथ, छाती, जांघ, घुटने, चेहरे और नाक पर। मेडिकल बोर्ड ने कहा कि दम घुटने से कार्डियो रेस्पिरेटरी अरेस्ट हुआ था।

पुलिस ने बताया ‘बीमार पड़ा’, परिजनों ने देखा क्षत-विक्षत शव

पुलिस ने परिवार को बताया कि दुर्गेंद्र बीमार होकर अस्पताल में भर्ती है, लेकिन बाद में यह खुलासा हुआ कि उसकी मौत पहले ही हो चुकी थी।
जब परिवार ने शव देखा तो शरीर पर चोटों के निशान देखकर हंगामा किया और उच्चाधिकारियों से शिकायत की।

सरकार की दलील खारिज

राज्य सरकार ने कहा कि मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी और चोटें पुरानी व सामान्य थीं।
लेकिन कोर्ट ने इस दलील को नकारते हुए कहा कि —

“पुलिस हिरासत में केवल तीन घंटे के भीतर मौत होना असामान्य है। चाहे चोटें हल्की हों या गंभीर, पुरानी हों या नई — राज्य अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।”

कोर्ट की सख्त टिप्पणी: “मानवाधिकारों का हनन”

हाईकोर्ट ने कहा कि सभी सबूत इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह मौत पुलिस यातना से हुई है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि —

“हर हिरासत में हुई मौत राज्य की जवाबदेही पर सवाल खड़ा करती है। मुआवजा केवल राहत नहीं, बल्कि ऐसे अमानवीय कृत्यों को रोकने का माध्यम है।”

डीके बसु केस के दिशानिर्देशों के पालन का निर्देश

कोर्ट ने गृह विभाग के सचिव को आदेश दिया कि वे व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित करें कि मुआवजा समय पर दिया जाए।
साथ ही, डीके बसु बनाम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने के निर्देश भी दिए गए।

हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाएं पुलिस व्यवस्था पर जनता के भरोसे को कमजोर करती हैं और राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि हिरासत में किसी भी व्यक्ति के साथ क्रूरता या यातना न हो।

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