बिलासपुर। प्रदेश की कृषि साख सहकारी समितियों को भंग करने के बारे के आदेश को हाईकोर्ट ने रद्द जरूर किया है पर इन समितियों के पुनर्गठन और कार्यकाल को घटाने बढ़ाने के राज्य सरकार के आदेश को यथावत रखा है। ऐसे में राज्य सरकार इन संचालक मंडलों का कार्यकाल कम करके सदस्यों के चुनाव की नई प्रक्रिया शुरू कर सकती है।

हाईकोर्ट ने बीते 22 नवंबर को प्रदेश की 1035 सहकारी संस्थाओं को भंग करने के राज्य सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया था। याचिकाकर्ताओं की इस दलील को  चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी.पी. साहू की डबल बेंच ने माना था कि निर्वाचित समितियों को एकतरफा आदेश से भंग नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट का यह आदेश राज्य सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा था। इधर हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद यह साफ होता है कि इन निर्वाचित समितियों का कार्यकाल छत्तीसगढ़ सहकारी समिति अधिनियम 1960 के प्रावधानों का पालन करते हुए ही कभी भी खत्म किया जा सकेगा। इसकी धारा 16 (ग) के अंतर्गत व्यवस्था की गई है कि राज्य सरकार चाहे तो इन समितियों का फिर से गठन के लिए प्रस्ताव लागू कर सकती है। इसकी शक्ति और अधिकार उसके पास है। राज्य सरकार को यह भी अधिकार है संचालक मंडल के जो सदस्य इन समितियों में निर्वाचित हैं, उनके कार्यकाल की अवधि घटाई भी जा सकती है।

राज्य सरकार ने समितियों को भंग करते समय यह तर्क दिया था कि बदलते सामाजिक, राजनैतिक और भौगोलिक सुधार के परिप्रेक्ष्य में इन समितियों का पुनर्गठन जरूरी है। इसके लिए प्रयास किये गये थे जो पूरे नहीं हो पाये। बीते वर्षों में इसे परिणाम तक नहीं पहुंचाया जा सका। हाईकोर्ट में दायर याचिका के बावजूद कृषि सहकारी समितियों के पुनर्गठन की प्रक्रिया जारी रखी जा सकेगी और नये संचालक मंडल का चुनाव किया जा सकेगा।

हाईकोर्ट ने कंडिका आठ को छोड़कर पुनर्गठन योजना के बाकी स्वरूप में दखल से इनकार किया है। इसके तहत मौजूदा संचालक मंडल को किसी भी तरीके से हटाने और उसकी जगह पर वर्ग तीन के कर्मचारियों को प्रशासक नियुक्त करने के आदेश को खारिज किया गया है। इसका मतलब यह है कि मौजूदा संचालक मंडल तब तक काम करता रहेगा जब तक पुनर्गठन योजना के तहत साख समितियों में चुनाव नहीं हो जाते लेकिन चुनाव की प्रक्रिया राज्य सरकार शुरू कर सकती है।

 

 

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