प्राण-चड्ढा


गौर से सुनिए इस टाइगर की दहाड़ और उसकी गूंज—यह टाइगर ‘नटराज मेल’ है, जो दो साल पहले ताडोबा के बफर जोन में आबादी के करीब पहुंच गया था। यह बाघ एक आदर्श उदाहरण है, जहां छत्तीसगढ़ जाने कब तक पहुंचेगा। छत्तीसगढ़ राज्योदय के समय यहां बाघों की संख्या 45 के करीब थी, लेकिन अब यह संख्या 20 भी नहीं है। कल शाम को मिली खबर के अनुसार अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) में 3 मेल और 7 फीमेल, कुल 10 बाघ हैं। करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद, 23 वर्षों में यह स्थिति फिलहाल अच्छी नहीं है, लेकिन आशाजनक मानी जा सकती है।

लेकिन एटीआर के 10 बाघों में से कितने ऐसे हैं, जो एटीआर में पैदा हुए हैं? एटीआर प्रबंधन ने कभी शावक के साथ मदर टाइग्रेस की फोटो जारी नहीं की है। न ही इस बारे में बताया है कि इन दस बाघों में कितने शावक यहां के हैं। आज बान्धवगढ़ में 160 से अधिक बाघ हैं और कान्हा में 129 बाघ हैं। बाघ एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। जैसे हाल ही में नवापारा में एक युवा बाघ मार्च माह में कहीं से पहुंच गया है। मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या का जो विस्फोट हुआ है, अगर प्रवासी बाघों को ईमानदारी से शिकार, पानी, और सुरक्षा मुहैया कराई जाए, तो एटीआर के बाघ भी यहां की पहचान बन सकते हैं। यानि, ‘ना हींग लगे ना फिटकरी, रंग चोखा हो जाए।’

अचानकमार टाइगर रिजर्व का उदय 1975 में अभयारण के साथ हुआ और कालांतर में यह टाइगर रिजर्व बन गया। इस बीच, सरिस्का, पन्ना, और नागझिरा जैसे रिजर्व ने शून्य से शुरू होकर कितनी प्रगति की है, देखें:

  1. पन्ना टाइगर रिजर्व: 15 साल पहले पन्ना टाइगर विहीन हो गया था। अब एक मेल और एक फीमेल बाघ लाकर वहां 78 बाघ हो गए हैं।
  2. सरिस्का टाइगर रिजर्व: 2008 में सरिस्का में बाघ नहीं थे। अब वहां 24 बाघ हैं। जबकि समूचे छत्तीसगढ़ में यह संख्या मुश्किल से बीस है।
  3. नागझिरा टाइगर रिजर्व: महाराष्ट्र का नया नागझिरा टाइगर रिजर्व मात्र 152 वर्ग किमी का है। 5 साल पहले यहाँ बाघ नहीं थे, अब यहाँ 18 बाघ हो गए हैं।

इन तीन टाइगर रिजर्व में बाघों की बढ़ती संख्या की तुलना में एटीआर की स्थिति कहीं पीछे है। इसके कारण हैं—पैसे तो खूब आते हैं, पर क्या उनका खर्च ईमानदारी से और सही योजना के तहत होता है? अधिकारी क्या पार्क में रहते हैं? 19 गांवों की आबादी और हजारों मवेशी कोर ज़ोन में जमे हुए हैं। सरकार सख्त कदम क्यों नहीं उठाती?

विश्व टाइगर डे पर हमें यह सोचने की जरूरत है कि अन्य टाइगर रिजर्व कितनी प्रगति कर चुके हैं और हमारे जंगल, जो उनसे उम्दा होने के बावजूद, बाघों के मामले में कहाँ खड़े हैं।

 (लेखक, मप्र और छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के सदस्य रहे हैं)

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