नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के कम से कम तीन जिलों में वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act, 2006) के तहत वितरित किए गए हजारों वन अधिकार पत्र (Forest Rights Titles) पिछले 17 महीनों में राज्य सरकार के जनजातीय कल्याण विभाग के रिकॉर्ड से गायब हो गए हैं। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांघी ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
यह जानकारी द हिंदू अखबार द्वारा सूचना का अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त दस्तावेजों से सामने आई है। प्रभावित जिलों में बस्तर, राजनांदगांव और बीजापुर शामिल हैं, जहां व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) और सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) के पत्रों की संख्या में अचानक कमी देखी गई है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने इसे “रिपोर्टिंग त्रुटि” और “गलत संचार” का परिणाम बताया है, लेकिन विशेषज्ञों ने इसे एक “विसंगति” करार देते हुए इसकी गंभीरता पर सवाल उठाए हैं।
वन अधिकार अधिनियम (FRA) क्या है?
वन अधिकार अधिनियम, 2006, अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) और अन्य परंपरागत वनवासियों (Other Traditional Forest Dwellers) को जंगल, जल और जमीन पर उनके अधिकारों को मान्यता देने और प्रदान करने के लिए बनाया गया था। यह कानून औपनिवेशिक काल में वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने का प्रयास करता है, जब उन्हें वन संसाधनों का उपयोग करने के लिए अपराधी माना जाता था। FRA के तहत दो मुख्य प्रकार के अधिकार दिए जाते हैं:
- व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR): व्यक्तिगत परिवारों को निवास या खेती के लिए 4 हेक्टेयर तक की वन भूमि पर अधिकार।
- सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR): ग्राम सभाओं को सामुदायिक संसाधनों जैसे चरागाह, मछली पकड़ने, गैर-लकड़ी वन उत्पाद (NTFP) आदि के लिए सामूहिक अधिकार।
ये अधिकार ग्राम सभाओं, उप-मंडल स्तरीय समितियों और जिला स्तरीय समितियों द्वारा आवेदनों की जांच के बाद दिए जाते हैं। एक बार प्रदान किए गए ये अधिकार गैर-हस्तांतरणीय और गैर-विक्रेय होते हैं, केवल उत्तराधिकार में हस्तांतरित किए जा सकते हैं। कानून में विशिष्ट मामलों में, जैसे सामुदायिक सुविधाओं या सरकारी परियोजनाओं के लिए, ग्राम सभाओं की सहमति से विचलन की अनुमति है।
गायब हुए वन अधिकार पत्र: तथ्य और आंकड़े
RTI से प्राप्त जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ के इन जिलों में वन अधिकार पत्रों की संख्या में कमी देखी गई है:
- बस्तर जिला: जनवरी 2024 में व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) पत्रों की संख्या 37,958 थी, जो मई 2025 तक घटकर 35,180 रह गई। यानी 2,778 पत्र गायब हो गए। इसके अलावा, IFR दावों की संख्या भी 51,303 से घटकर लगभग 48,000 हो गई।
- राजनांदगांव जिला: सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) पत्रों की संख्या पिछले साल एक महीने के भीतर 40 से घटकर 20 हो गई, यानी आधी संख्या गायब।
- बीजापुर जिला: मार्च 2024 तक 299 CFRR पत्र वितरित किए गए थे, जो अप्रैल 2024 तक घटकर 297 रह गए।
राज्य सरकार के मासिक प्रगति रिपोर्टों में ये आंकड़े दर्ज किए गए हैं, जो RTI के जरिए सामने आए। केंद्र सरकार के FRA प्रगति डेटा में केवल राज्य-स्तरीय जानकारी होती है, जो इस तरह की विसंगतियों को उजागर नहीं करती। मई 2025 तक, छत्तीसगढ़ में 30 जिलों में 4.82 लाख IFR और 4,396 CFRR पत्र वितरित किए गए थे, जो देश के कुल FRA वन क्षेत्र का 43% से अधिक है। राज्य में FRA का कार्यान्वयन रायपुर, दुर्ग और बेमेतरा जिलों में नहीं होता है।
अधिकारियों का दावा: “रिपोर्टिंग त्रुटि”
राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने इन गायब पत्रों को “रिपोर्टिंग त्रुटि” और “ग्राम सभा, उप-मंडल और जिला स्तर के अधिकारियों के बीच गलत संचार” का परिणाम बताया है। उनका कहना है कि पहले की उच्च संख्या गलत थी, जिसे अब “सुधार” लिया गया है। हालांकि, FRA, 2006 में एक बार दिए गए पत्रों को वापस लेने की कोई प्रक्रिया नहीं है, सिवाय ग्राम सभाओं की सहमति से विशिष्ट मामलों में।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में धीमी प्रगति
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पिछले साल नक्सलवाद से मुक्त घोषित तीन जिलों में FRA कार्यान्वयन धीमा रहा है। बस्तर में IFR पत्रों में 2,700 से अधिक की कमी आई, हालांकि CFRR में 12 की वृद्धि हुई। दंतेवाड़ा में CFRR में कोई वृद्धि नहीं, जबकि IFR में 55 की शुद्ध वृद्धि। मोहला-मानपुर में कोई नया IFR नहीं, जबकि दो CFRR जोड़े गए।
अन्य पूर्व LWE प्रभावित जिलों जैसे कबीरधाम, राजनांदगांव, गरियाबंध, बालोद और बलरामपुर में भी प्रगति न्यूनतम रही।
बहुजनों का दमन हो रहा- राहुल गांधी
"काग़ज़ मिटाओ, अधिकार चुराओ" – बहुजनों के दमन के लिए भाजपा ने यह नया हथियार बना लिया है।
कहीं वोटर लिस्ट से दलितों, पिछड़ों के नाम कटा देते हैं, तो कहीं आदिवासियों के वन अधिकार पट्टों को ही ‘गायब’ करवा देते हैं।
बस्तर में 2,788 और राजनांदगांव में आधे से ज़्यादा – छत्तीसगढ़ में… pic.twitter.com/XzsGiGlsRc
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 14, 2025
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर अपनी एक्स पोस्ट में तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लिखा: “काग़ज़ मिटाओ, अधिकार चुराओ – बहुजनों के दमन के लिए भाजपा ने यह नया हथियार बना लिया है। कहीं वोटर लिस्ट से दलितों, पिछड़ों के नाम कटा देते हैं, तो कहीं आदिवासियों के वन अधिकार पट्टों को ही ‘गायब’ करवा देते हैं। बस्तर में 2,788 और राजनांदगांव में आधे से ज़्यादा – छत्तीसगढ़ में इस तरह हज़ारों वन अधिकार पट्टों का रिकॉर्ड अचानक लापता कर दिया गया है। कांग्रेस ने आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन की रक्षा के लिए वन अधिकार अधिनियम बनाया – भाजपा उसे कमज़ोर कर उनका पहला हक़ छीन रही है। हम ऐसा नहीं होने देंगे – आदिवासी इस देश के पहले मालिक हैं और हम हर हाल में उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे।”
इसका क्या असर हो सकता है?
वन अधिकार पत्रों का गायब होना आदिवासियों की जमीन और आजीविका पर सुरक्षित दावे को खतरे में डालता है।बिना औपचारिक अधिकारों के, उन्हें बेदखली का खतरा हो सकता है। यह विश्वास की कमी को बढ़ाता है, क्योंकि ये अधिकार उनके जीवन और संस्कृति का आधार हैं।
दूसरा, यह मामला FRA कार्यान्वयन की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है। जनजातीय कल्याण, राजस्व और वन विभागों के बीच समन्वय की कमी उजागर होती है। यह भी दर्शाता है कि खराब रिकॉर्ड-कीपिंग और पारदर्शिता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। CFRR की मान्यता के बिना, ग्राम सभाएं जंगलों का प्रबंधन और संरक्षण नहीं कर सकतीं, जिससे विकेंद्रीकृत वन शासन कमजोर होता है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि गायब पत्र खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन हस्तांतरण को आसान बनाने का हिस्सा हो सकते हैं। छत्तीसगढ़, जो कोयला, बॉक्साइट और अन्य खनिजों से समृद्ध है, में ऐसी गतिविधियां पहले भी विवादों का कारण बन चुकी हैं।
दावों के 50 प्रतिशत से भी कम को मान्यता
- राष्ट्रीय FRA स्थिति: 2023 तक, भारत में लगभग 46.35 लाख वन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं, लेकिन कुल संभावित दावों का 50% से भी कम मान्यता मिली है।
- छत्तीसगढ़ में स्थिति: राज्य में FRA के तहत 20 लाख हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को मान्यता दी गई है, जो राष्ट्रीय स्तर पर 43% से अधिक है। फिर भी, नक्सल प्रभावित जिलों जैसे बस्तर, दंतेवाड़ा और मोहला-मानपुर में कार्यान्वयन धीमा रहा है।
- ऐतिहासिक समस्याएं: FRA कार्यान्वयन में उच्च अस्वीकृति दर, लाभार्थियों में जागरूकता की कमी, वन विभाग का प्रतिरोध और पुराने भूमि रिकॉर्ड की कमी जैसी समस्याएं आम हैं।
डिजिटल रिकॉर्ड की मांग
विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:
- डिजिटल रिकॉर्ड-कीपिंग: FRA डेटा के लिए एक राज्य-स्तरीय डैशबोर्ड बनाया जाए, जिसमें जिला-वार जानकारी हो।
- स्वतंत्र ऑडिट: गायब/बदले गए पत्रों की जांच के लिए CAG या तीसरे पक्ष की एजेंसियों की मदद ली जाए।
- ग्राम सभाओं को सशक्त करना: दावों की जांच और रिकॉर्ड रखरखाव में उनकी भूमिका को मजबूत किया जाए।
- क्षमता निर्माण: राजस्व और जनजातीय कल्याण अधिकारियों को FRA प्रावधानों पर प्रशिक्षण दिया जाए।
- पारदर्शिता: FRA कार्यान्वयन की स्थिति का नियमित सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य किया जाए।
केंद्र सरकार ने 2024 में धरती अबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू किया है, जिसके तहत प्रत्येक राज्य में 300 से अधिक FRA सेल स्थापित किए जा रहे हैं ताकि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण और संगठन किया जा सके।