विश्व रंगमंच दिवस पर वनमाली सृजन पीठ का आयोजन, सीवीआरयू के कुलपति शुक्ला सम्मानित

बिलासपुर । विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर वनमाली सजन पीठ में लोकरंग और हिंदी रंगमंच पर छत्तीसगढ़ के अवधान को लेकर चर्चा की गई।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय पूर्व कुलसचिव नंदकिशोर तिवारी थे। ने  उन्होंने नाटक के उद्गम, इतिहास से लेकर उसके अनेक महत्वपूर्ण पड़ावों के बारे में विस्तार से बताया, साथ ही लोकमंच के छत्तीसगढ़ के संदर्भ में भी जानकारी साझा की। उन्होंने रहस के बारे में भी लोगों को जानकारी दी।

रायपुर से आए नाट्य कर्मी डॉ अनिल कालेले ने कहा कि  सही मायने में  रंगकर्मी शब्द न होकर रंग साधक कहा जाना चाहिए,  क्योंकि हम रंगमंच के साधक हैं ।उन्होंने  छत्तीसगढ़ के अनेक रंगकर्मी और कलाकारों और रंगमंच  में उनके महत्वपूर्ण योगदान  पर चर्चा की।  उन्होंने मराठी नाटकों के बारे में भी बताया। प्रोफेसर कृष्णा सोनी ने विश्व  हिंदी रंगमंच विषय पर संबोधित करते हुए रंगमंच के इतिहास पर विस्तार से जानकारी दी। इस अवसर पर शिक्षाविद् और विचारक विवेक जोगलेकर ने कहा कि समाज में होने वाले परिवर्तन को गति देने का काम रंगमंच करता है इसके लिए दर्शकों का जुड़ाव आज भी रंगमंच और नाटक से सीधे है। इसलिए हिंदी रंगमंच को और भी सोचने की जरूरत है कि हम इसे कितना और कैसे आगे बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज गांधी के विचारों को रंगमंच में स्वीकार करने और दिशा देने की जरूरत है।

इस अवसर पर डॉक्टर सी वी रामन विश्वविद्यालय के कुलसचिव गौरव शुक्ला का वनमाली सृजन पीठ में सम्मान किया गया । पंडित बिरजू महाराज के शिष्य रितेश शर्मा ने बिरजू महाराज की नित्य मुद्राओं का एक एल्बम उन्हें भेंट किया। इस अवसर पर कुलसचिव गौरव शुक्ला ने कहा कि छत्तीसगढ़ में लोकमंच और हिंदी रंगमंच का वृहद इतिहास है,। उन्होंने यह भी बताया कि सिनेमा के आने के बाद से रंगमंच थोड़ा कमजोर जरूर पढ़ा लेकिन आज भी रंगमंच का एक अपना स्थान है। इस बात पर खुशी हो रही है कि हम सब आज अपने इतिहास पर मंथन और आगे भविष्य को लेकर चर्चा करने के लिए यहां उपस्थित हुए हैं।

इस अवसर पर  कार्यक्रम के अध्यक्ष और वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष  वरिष्ठ साहित्यकार  सतीश जायसवाल जी ने बताया कि रंगमंच की प्राचीनतम रंगशाला सरगुजा रामगढ़ में है। हबीब तनवीर जैसे कलाकार ने छत्तीसगढ़ी लोक मंच को और लोग तत्वों को अंतरराष्ट्रीय मंच में रखा और वहां उसकी स्थापना की। इसी तरह बिलासपुर के सत्यदेव दुबे ने भी रंगमंच के लिए अभूतपूर्व कार्य किया। जब मुंबई में मराठी नाटकों का दौर था और वह मुख्य केंद्र था तब उन्होंने मुंबई में हिंदी नाट्य मंच की स्थापना की। वे मुंबई के पृथ्वी थिएटर से जुड़े हुए थे । इसके बाद पारसी थियेटर करने वाले इब्राहिम अलकाजी जो कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से जुड़े हुए थे उन्होंने हिंदी नाटक की स्थापना की और इस तरह दिल्ली कोलकाता और मुंबई के इन लोगों ने हिंदी रंगमंच को लेकर एक बड़ा आंदोलन चलाया जिसके परिणाम से आज हिंदी रंगमंच को इतनी पहचान मिली। उन्होंने कहा कि वह दौर हिंदी रंगमंच का पुनर्जागरण काल था। इस अवसर पर इप्टा के सचिन शर्मा, मधुकर गोरख, अग्रज नाट्य दल के सुनील चिपड़े, योगेश पांडे, सुश्री भट्टाचार्य रेलवे के तदक नंद, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की नेहा कश्यप सहित बड़ी संख्या में कला प्रेमी उपस्थित थे।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here