रायपुर। लोकसभा में छत्तीसगढ़ के सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने राज्य में बढ़ते वायु प्रदूषण का मुद्दा उठाते हुए केंद्र व राज्य एजेंसियों से तुरंत और समयबद्ध कार्रवाई की मांग की। उन्होंने रूल 377 के तहत कहा कि रायपुर सहित औद्योगिक इलाकों में धूल, धुआं और राख की समस्या लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डाल रही है, इसलिए नियंत्रण उपायों को तेज़ करना होगा।

राज्य की हालिया तस्वीर: कहाँ और क्यों बढ़ रही है चिंता

  • किन शहरों पर फोकस: रायपुर, भिलाई और कोरबा को केंद्र सरकार के नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत “नॉन-अटेनमेंट सिटी” के रूप में चिन्हित किया गया है—यानी जहां सालाना औसत प्रदूषण अब भी मानक से ऊपर रहता है। इन शहरों के लिए अलग–अलग सिटी एक्शन प्लान बनाकर लागू किए जा रहे हैं।
  • औद्योगिक क्लस्टर और फैलाव: रायपुर क्षेत्र के बारे में नीरी (NEERI) के अध्ययन में 142 वर्ग किमी का इलाका—सिलतरा, बोरझरा, उरला और आसपास की औद्योगिक बस्तियों—को अध्ययन क्षेत्र माना गया है। यानी प्रदूषण से निपटने के लिए उद्योग–प्रधान ज़ोन पर खास निगरानी ज़रूरी है।
  • राष्ट्रीय मानक क्या कहते हैं? भारत के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) के मुताबिक PM2.5 का वार्षिक मानक 40 µg/m³ और PM10 का वार्षिक मानक 60 µg/m³ है। लक्ष्य यही है कि शहरों का सालाना औसत इन सीमाओं के भीतर लाया जाए।
  • कोरबा का संदर्भ: कोरबा क्षेत्र में तापविद्युत संयंत्रों व फ्लाई ऐश प्रबंधन को लेकर लंबे समय से चिंताएं दर्ज होती रही हैं; स्वतंत्र पर्यावरण रिपोर्टों में राख–धूल और औद्योगिक उत्सर्जन को प्रमुख कारण माना गया है।

NCAP का टारगेट और अगला कदम

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के NCAP ढांचे के मुताबिक शहरों में PM स्तर को 2025–26 तक 20–30% घटाने का लक्ष्य तय है। इसके लिए सड़क–धूल नियंत्रण, कंस्ट्रक्शन वेस्ट मैनेजमेंट, पुराने/धुआं देने वाले वाहनों पर रोक, ई–रिक्शा/सीएनजी/इलेक्ट्रिक को बढ़ावा, हॉटस्पॉट पर रीयल–टाइम मॉनिटरिंग और औद्योगिक उत्सर्जन मानकों का सख्त पालन जैसे उपाय अनिवार्य हैं।

ज़मीन पर क्या करना होगा

  1. हॉटस्पॉटवार प्लान: सिलतरा–उरला–बोरझरा जैसे क्लस्टरों में सड़क धूल, ट्रांसपोर्ट लॉजिस्टिक्स और फ्यूजिटिव एमिशन्स पर सख्त निगरानी—फॉगिंग/मैकेनिकल स्वीपिंग, कवरड ट्रांसपोर्ट और हरित बफ़र बढ़ाना।
  2. औद्योगिक अनुपालन: थर्मल पावर/स्पॉन्ज आयरन/रोलिंग मिल्स में स्टैंडर्ड्स का पालन, सीईएमएस (CEMS) डेटा की पब्लिक रिपोर्टिंग और उल्लंघन पर दंड।
  3. यातायात प्रबंधन: पुराने–अक्षम वाहनों पर चरणबद्ध पाबंदी, ट्रैफिक सिग्नलिंग सुधार, पार्किंग–नीति और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा।
  4. मॉनिटरिंग और पारदर्शिता: सीईसीबी/सीपीसीबी का रीयल–टाइम डेटा, मौसमी (सर्दियों) की स्पेशल ड्राइव और मासिक–त्रैमासिक रिपोर्ट का सार्वजनिक प्रदर्शन; सर्दियों में AQI बढ़ने के पैटर्न पर पहले से तैयारी।

क्यों अहम है यह मुद्दा

लोकसभा में उठी यह आवाज़ इसलिए समयोचित है क्योंकि औद्योगिक व यातायात–प्रधान इलाक़ों में प्रदूषण का बोझ सबसे अधिक पड़ता है—और इन्हीं ज़ोनों में जनसंख्या घनत्व भी तेज़ी से बढ़ रहा है। नीति–स्तर पर लक्ष्य तो तय हैं, पर असल फर्क तभी दिखेगा जब शहरवार एक्शन प्लान समयसीमा के साथ लागू हों और एजेंसियां डेटा–आधारित जवाबदेही दिखाएं।

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