रायपुर। बारनवापारा अभयारण्य में कैद दो वनभैसों पर जंगल के अधिकारी अनाप-शनाप खर्च कर रहे हैं। इसका कोई हिसाब नहीं है। जो वन भैंसे खुले में केवल घास पर जिंदा रह सकते हैं उन्हें आम लोगों को देखने की इजाजत भी नहीं है।
असम के मानस टाइगर रिजर्व से बारनवापारा अभ्यारण लाये गए ढाई साल के दो वनभैंसों को दो माह वहां बाड़े में रखा गया, एक नर और एक मादा। वहां पानी पिलाने की व्यवस्था के लिए चार लाख 56 हजार 580 रुपए का बजट दिया गया। जब ये बारनवापारा लाए गए तब उनके लिए रायपुर से 6 नए कूलर भिजवाए गए, निर्णय लिया गया कि तापमान नियंत्रित न हो तो एसी लगाया जाए, ग्रीन नेट भी लगाई गई।
2023 में चार और मादा वन मादा भैंस असम से लाई गईं, तब एक लाख रुपए खस के लिए दिए गए। इस पर पानी डालकर तापमान नियंत्रित रखा जाता था। वर्ष 2020 में असम में बाड़ा  निर्माण किया गया था, उस पर कितना खर्च हुआ, इसकी जानकारी वन विभाग के पास नहीं है। 2023 में उसी बाड़े के संधारण के लिए 15 लाख जारी किए गए। दोनों बार में वन भैंसे के असम से परिवहन इत्यादि के लिए 58 लाख जारी किए गए। वर्ष 19-20 से लेकर 20-21 तक बरनवापरा के प्रजनन केंद्र के निर्माण और रखरखाव के लिए एक करोड़ 60 लाख रुपए जारी किए गए। 2021 से आज तक और राशि खर्च की गई है। इतना सब करने के बाद भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी दो टूक शब्दों में मना कर दिया है कि बारनवापारा अभ्यारण में प्रजनन केंद्र की अनुमति हम नहीं देंगे। दस्तावेज बताते है कि सिर्फ 23-24 में बारनवापारा में 6 वन भैंसों के भोजन – चना, खरी, चूनी, पैरा कुट्टी, दलिया, घास के लिए 40 लाख रुपए जारी किए गए हैं।
रायपुर के वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने उक्त जानकारी देते हुए कहा कि योजना असम से वन भैंसे लाकर, छत्तीसगढ़ के वन भैंसे से प्रजनन करा कर वंश वृद्धि की योजना थी। परंतु छत्तीसगढ़ में शुद्ध नस्ल का सिर्फ एक ही नर वन भैंसा ‘छोटू’ उदंती सीता-नदी टाइगर रिजर्व में बचा है, जो कि बूढा है और उम्र के अंतिम पड़ाव पर है। उसकी उम्र लगभग 24 वर्ष है। वन भैंसों की अधिकतम उम्र 25 वर्ष होती है, देखभाल में 2-4 साल और जी सकते हैं। बुढ़ापे के कारण जब छोटू से प्रजनन कराना संभव नहीं दिखा तो उसका वीर्य निकाल आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन के द्वारा  प्रजनन का प्लान बनाया गया, जिसकी तैयारी पर ही लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं। सिंघवी ने आगाह किया कि यह उसी तरह ही आत्मघाती होगा, जैसे किसी 90 वर्ष के बुजुर्ग से जबरदस्ती वीर्य निकलवाना, छोटू ऐसा करने से मर भी सकता है, जिसकी जवाबदारी प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) को लेनी चाहिए।
सिंघवी ने कहा कि असम से लाए गए वन भैंसों को अगर उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाता है तो वहां दर्जनों क्रॉस ब्रीड के वन भैंसे हैं, जिनसे क्रॉस होकर असम की शुद्ध नस्ल की मादा वन भैंसों की संतानें मूल नस्ल की नहीं रहेंगी। इसलिए इन्हें वहां पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। सिंघवी ने आरोप लगाया कि पहले दिन से ही इन्हें आजीवन बारनवापारा अभ्यारण में बंधक बनाकर रखना था। इसीलिए इन्हें बारनवापारा अभ्यारण में छोड़ने की शर्त के विरुद्ध बंधक बना रखा गया है। अब ये आजीवन बंधक रह कर बारनवापारा के बाड़े में ही वंश वृद्धि करेंगे, जिसमें एक ही नर की संतान से लगातार वंश वृद्धि होने से इनका जीन पूल खराब हो जाएगा।
सिंघवी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी से पूछा कि असम में स्वतंत्र विचरण करने वाले वन भैंसे जो वहां प्राकृतिक वनस्पति, घांस खा कर जिन्दा थे और वहां रहते तो प्रकृति के बीच वंश वृद्धि करते, उनको हर साल जनता की गाढ़ी कमाई का 40 लाख का भोजन कराने के लिए छत्तीसगढ़ लाए हैं क्या? इन्हें सिर्फ वीआईपी को ही क्यों देखने दिया जाता हैॽ जबकि उनको मालूम था कि छत्तीसगढ़ में शुद्ध नस्ल का एक ही वन भैसा बचा है जो बूढा है, जिससे वंश वृद्धि नहीं हो सकेगी तो फिर जनता का करोड़ों रुपये क्यों बर्बाद किए? खुले में घूम रहे संकटग्रस्त मूक जानवर को आजीवन बंधक बना कर वन विभाग के अधिकारियों को क्यों खुशी मिल रही है?
सिंघवी ने आरोप लगाया कि वन विभाग के पास मुख्यालय में और फील्ड डायरेक्टर उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व, जिनको बजट आवंटित किया जाता है, असम और बारनवापारा में वन भैसों पर खर्च की गई राशि की जानकारी ही नहीं है। इसलिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को इसकी जानकारी जनता को देना चाहिए।

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