सीयू में छत्तीसगढ़ में सूक्ष्म सिंचाई पर अनुसंधान
बिलासपुर। राज्य के जल स्रोतों का तेजी से हृास हो रहा है, राज्य में 34 प्रतिशत क्षेत्र ही आज सिंचित हो पाया है, जबकि कुल कृषि भूमि का 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मानसून पर ही आधारित है, जहां किसान केवल एक ही फसल धान का उत्पादन कर पा रहे हैं।
गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय की सामाजिक अध्ययनशाला के अर्थशास्त्र विभाग के शोधार्थी ज्ञान सिंह “छत्तीसगढ़ में कृषि के बेहतर भविष्य के लिए सूक्ष्म सिंचाई” पर सहायक प्राध्यापक डॉ. एस. किस्पोट्टा के मार्गदर्शन में अनुसंधान कर रहे हैं, जिसमें यह तथ्य रखा गया है।
राज्य में कृषकों की कुल जनसंख्या 37.46 लाख है, और ग्रामीण जनसंख्या 76.76 प्रतिशत है। इस राज्य में औसत वर्षा 1300 मिमी हैं, किन्तु वर्षा का वितरण समान रूप से नहीं होने के कारण इसका लाभ असिंचित क्षेत्र के कृषकों को प्राप्त नहीं होता। असिंचित क्षेत्र में फसलें बहुतया अवर्षा अथवा अतिवर्षा से प्रभावित होती रहती हैं। रबी मौसम में वर्षा कभी-कभी प्राप्त होती है किन्तु यह सुनिश्चित नहीं होती। फलस्वरूप असिंचित क्षेत्र का रबी का रकबा मानसून की विलम्बित वर्षा पर निर्भर करता है। इस प्रकार प्रदेश की लगभग 55 प्रतिशत कास्तभूमि की जलधारण क्षमता कम होने के कारण बिना सिंचाई साधन के दूसरी फसल लेना संभव नहीं होता।
छत्तीसगढ़ राज्य में सतही जल की मात्रा 48,296 मिलियन घन मीटर एवं भू-जल की मात्रा 11,630 मिलियन घन मीटर है। इस प्रकार कुल मात्रा 59,926 मिलियन घन मीटर आंकी गई है। वर्ष 2016-17 में प्रदेश का कुल बोया गया क्षेत्र 56.73 लाख हेक्टेयर तथा निरा बोया गया क्षेत्र 46.64 लाख हेक्टेयर है। प्रदेश गठन, सन् 2000 के समय शासकीय स्रोतों से 13.28 लाख हेक्टेयर में सिंचाई क्षेत्र निर्मित हुआ था जो कुल बोये गये क्षेत्र का 23 प्रतिशत है। आकलन के अनुसार 43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा निर्मित की जा सकती है जिसमें सतही जल से 33.80 लाख एवं भू-जल से 9.20 लाख हेक्टेयर सिंचाई की जा सकती है। राज्य गठन के पश्चात राष्ट्रीय औसत 48.90 प्रतिशत के समकक्ष लाने के लिए शासन द्वारा सिंचाई योजनाओं के क्रियान्वयन को उच्च प्राथमिकता दी गई है।
शोध के अनुसार गांव में ही आजीविका के लिए कृषि पर निर्भरता एवं दबाव अधिक होने के कारण खरीफ फसलों के अतिरिक्त रबी एवं उद्यानिकी फसलों में वृ़द्धि के लिए सूक्ष्म सिंचाई विधियों को प्रयोग में लाना होगा। मौजूदा जल संकट की स्थिति में, यदि “हर खेत में पानी” एवं “हर बूंद अधिक फसल” (पी.एम.के.एस.वाई) के दोहरे लक्ष्य को प्राप्त करना है तो पानी के अपव्यय को कम करना होगा तथा कृषि में कृत्रिम सूक्ष्म सिंचाई साधनों यथा- ड्रिप, स्प्रिंकलर एवं रेनगन आदि के उपयोग को बढ़ाना होगा। इस प्रकार, प्रस्तुत शोध, राज्य में कृषि क्षेत्र में जल सम्बन्धी दोहरी समस्या, असिंचित भूमि एवं जल-प्रयोग में अकुशलता की ओर ध्यान इंगित करता है। साथ ही छत्तीसगढ़ में, कृषि के बेहतर भविष्य के लिए सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं के बेहतर कियान्वयन के लिए एक रोडमैप तैयार करता है।