पद्मश्री सम्मानित विभूति को राजकीय सम्मान से विदा करने में सरकार ने रुचि नहीं ली
छत्तीसगढ़ भाषा के उन्नयन के लिए अतुलनीय योगदान देने वाले साहित्यकार व पत्रकार पद्मश्री पं. श्याम लाल चतुर्वेदी का आज 93 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया। वे कुछ दिनों से बीमार थे और बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखे गए थे। हैरानी और अफसोस की बात यह रही कि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ की इस प्रतिभा को राजकीय सम्मान देने के बारे में विचार नहीं किया।
चतुर्वेदी को इसी साल अप्रैल में राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। मूलतः जांजगीर चाम्पा जिले के कोटमी-सोनार गांव में 20 फरवरी 1926 को जन्मे चतुर्वेदी ने बिलासपुर में रहकर करीब 75 साल छत्तीसगढ़ी की सेवा की है। उन्हें छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का पहला अध्यक्ष भी बनाया गया था। जब वे बिलासपुर आए तो सिर्फ पांचवी पास थे। यहां आकर उन्होंने हिन्दी साहित्य में एम ए तक की पढ़ाई की। यह दिलचस्प तथ्य है कि उनकी रचना बेटी के बिदा को 1976 में एम ए के प्रश्न पत्र में शामिल किया गया था और उन्होंने अपनी ही कविता की समीक्षा परीक्षा में लिखी थी।
छत्तीसगढ़ के वृंदावन कहे जाने वाले नरियरा की रासलीला में वे कृष्ण का अभिनय करते रहे। यहां उन्होंने शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। सन् 1949 में आकाशवाणी नागपुर से उनकी छत्तीसगढ़ी कविता का प्रसारण हुआ। द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ के बाद पं. चतुर्वेदी दूसरे कवि थे, जिनकी छत्तीसगढ़ी रचना का प्रसारण यहां से हुआ। उनकी कविताएं दूरदर्शन पर यूनेस्को से अनुबंध के साथ प्रसारित की गई।
पत्रकारिता में भी पं. चतुर्वेदी को एक खास मुकाम हासिल था। वे नागपुर नवभारत, लोकमत, युगधर्म, महाकौशल, नवभारत टाइम्स, नई दुनिया, जनसत्ता, लोकस्वर आदि में भी प्रतिनिधि रहे।
सामाजिक, सार्वजनिक गतिविधियों में पं. चतुर्वेदी बढ़ चढ़कर भाग लेते थे। उन्होंने कोआपरेटिव्ह प्रिंटिंग प्रेस, गृह निर्माण सहकारी समिति, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी ग्रंथ अकादमी आदि में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली। वे छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संरक्षक रहे। भारतेन्दु साहित्य समिति, संगीत कला विकास समिति, डीपी विप्र कॉलेज प्रशासन समिति में भी विभिन्न पदों पर रहे। उन पर किए गए शोध प्रबंध पर पं. रविशंकर विश्वविद्यालय ने पीएचडी की उपाधि भी प्रदान की है। राम बनवास, पर्रा भर लाई, भोलवा भोलाराम बनिस उनकी प्रमुख कृतियां हैं, जिनके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कई रचनाएं अप्रकाशित हैं जिनमें छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य, छत्तीसगढ़ी लोक कथाएं, स्मृति शेष विभूतियां, मेरी कलम से आदि शामिल हैं।
उन्होंने कोटमी सोनार के सरपंच के रूप में अनेक उपलब्धियां हासिल की, जिसके चलते इस पंचायत को गांधी शताब्दी वर्ष का सर्वश्रेष्ठ पंचायत भी घोषित किया गया। उन्होंने गांव में छुआछूत और शराबबंदी को लेकर महत्वपूर्ण काम किए। उन्हें अनेक राज्य अलंकरणों से सम्मानित किया गया। उन्होंने शिक्षक के रूप में भी सेवाएं दीं। साहित्य में उनकी रुचि अपनी मां की वजह से बढ़ी। मां ने उन्हें पं. सुन्दरलाल शर्मा की कविता ‘दान लीला’ बचपन में ही कंठस्थ करा दी थी। विनोदप्रियता, स्पष्टवादिता और सदैव छत्तीसगढ़ी में संवाद करना चतुर्वेदी को अलग पहचान देता था। उनको सुनना सदैव दिलचस्प रहा। उनका झुकाव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरफ रहा लेकिन सभी दलों के नेताओं से उनके अच्छे रिश्ते थे।
इसी वर्ष सन् 2018 के अप्रैल माह में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया था।
आज सुबह उनके निधन का समाचार मिलने पर शुभचिंतकों, समाजसेवियों, राजनीतिज्ञों और साहित्यप्रेमियों को गहरा आघात लगा और बड़ी संख्या में उनकी अंत्येष्ठि में लोग शामिल हुए। पद्मश्री विभूषित होने के बावजूद पं. चतुर्वेदी को राजकीय सम्मान के साथ विदाई की कोई व्यवस्था नहीं की गई। राजकीय सम्मान उन विभूतियों को मिलता है जिन्होंने कला, साहित्य, खेल आदि के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया हो। पं. चतुर्वेदी न केवल पद्मश्री सम्मानित थे, बल्कि राजभाषा आयोग के अध्यक्ष रहने के दौरान उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिला था। उनका अंतिम संस्कार शाम 4 बजे, मुक्ति धाम सरकंडा में किया गया।
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