बिलासपुर। हाल ही में अप्रैल 2024 में संपन्न चौथे चरण के टाइगर सर्वे के परिणामों के अनुसार अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) में बाघों की संख्या बढ़कर 10 हो गई है। इस संख्या में 3 मेल और 7 फीमेल बाघ शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि 2022 के टाइगर सेंसस में एटीआर में बाघों की संख्या केवल 5 थी। इसके अतिरिक्त, ग्रीष्मकालीन सर्वे के दौरान एटीआर में विलुप्त प्रजाति के मेलानिस्टिक लेपर्ड की उपस्थिति भी पुष्टि की गई है। सन् 2012 के बाद यह यहां फिर से ब्लैक लैपर्ड देखा गया है।
एटीआर प्रबंधन द्वारा बाघों की संख्या में वृद्धि के लिए किए गए कार्यों और योजनाओं का यह परिणाम है। प्रबंधन की निरंतर कोशिशों से बाघों की संख्या में यह सकारात्मक वृद्धि संभव हो पाई है। यदि प्रबंधन इसी तरह लगातार प्रयासरत रहा, तो भविष्य में और भी बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इससे न केवल जंगल की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि इकोटूरिज्म में भी वृद्धि होगी। इससे स्थानीय जनसमुदाय को रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होंगे और वन्यजीव प्रेमियों तथा वानिकी के विद्यार्थियों के लिए रिसर्च के बेहतर अवसर उपलब्ध होंगे।
उपसंचालक यूआर गणेश के अनुसार, बाघों की संख्या में वृद्धि कोई संयोग नहीं है, बल्कि यह एटीआर प्रबंधन की कठोर मेहनत और सटीक रणनीति का परिणाम है। रिजर्व के कोर और बफर क्षेत्रों में 108 बीटो में नियुक्त पैदल गार्ड और परिसर रक्षकों द्वारा जीपीएस बेस्ड एम-स्ट्राइप मोबाइल एप का उपयोग करके प्रतिदिन 10 किमी की पेट्रोलिंग की जाती है। साथ ही, कैमरा ट्रैप के माध्यम से बाघों और अन्य जानवरों की नियमित निगरानी की जाती है। बाघों की विशेष निगरानी के लिए एक विशेष टीम भी गठित की गई है, जिसका मुख्य कार्य बाघों की ट्रैकिंग करना है। सभी विपरीत परिस्थितियों में भी बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निरंतर गश्त की जाती है। तकनीकी निगरानी के लिए कोटा में जीआईएस सेल स्थापित किया गया है, जहां प्राप्त डाटा का विश्लेषण कर रिपोर्ट सीधे डिप्टी डायरेक्टर और फील्ड डायरेक्टर को भेजी जाती है। एटीआर नेटवर्क विहीन क्षेत्र है, इसलिए वायरलेस तकनीक का उपयोग कर निर्देशों और सूचनाओं का प्रसार सुनिश्चित किया जाता है।
मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक सुधीर कुमार अग्रवाल के मार्गदर्शन में, चारागाह विकास, ग्रीष्मकाल में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना, और मुआवजे का प्रकरण तैयार करने जैसे रहवास विकास कार्य संवेदनशीलता से किए जा रहे हैं, जिसका दूरगामी परिणाम निश्चित रूप से देखने को मिलेगा।
बाघों की सुरक्षा और संरक्षण में एटीआर प्रबंधन के साथ-साथ स्थानीय जनसमुदाय की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। उनके प्रत्यक्ष भागीदारी और प्रकृति संरक्षण के प्रयासों के कारण ही वन्यजीव सुरक्षित हैं। एटीआर में 31 वन प्रबंधन समितियां गठित की गई हैं, जिनके सहयोग से अग्नि सुरक्षा, अतिक्रमण, अवैध कटाई और शिकार पर नियंत्रण पाया जा सका है। ग्रामीणों का सहयोग और स्वस्फूर्त समर्थन एटीआर प्रबंधन के प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जिससे वन क्षेत्र सुरक्षित और संरक्षित है।
एटीआर प्रबंधन स्थानीय युवकों और महिलाओं को इको पर्यटन में ड्राइवर, गाइड के रूप में रोजगार प्रदान करता है और भिलाई, बैंगलोर जैसे शहरों में प्रशिक्षण से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराता है। इससे वन्यजीवों की सुरक्षा और पार्क प्रबंधन में जनभागीदारी और सहयोग सुनिश्चित होता है।