देश के कोयला भण्डारों में से 85 प्रतिशत घने जंगल के बाहर, यह 70 साल तक पर्याप्त
50 साल बाद बिजली उत्पादन कोयले पर निर्भर नहीं रहेगा, राजस्थान के लिए एमपी से कोयला लेना बेहतर सौदा
बिलासपुर। हसदेव अरण्य जंगलों में कोयला खनन के खिलाफ 2012 से एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने बताया है कि देश में घने जंगलों के बाहर पर्याप्त कोयला उपलब्ध है। अतः हसदेव जैसे घने जंगल को जो हाथियों का रहवास और बांगों बांध का जल ग्रहण क्षेत्र है, उसे उजाड़ना पूरी तरह अनावश्यक है।
अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर निम्न जानकारी दी-
– देश में कोयले का कुल ज्ञात भण्डार – 3.20 लाख मिलियन टन
– इसमें से उत्पादन योग्य कोयला – 2.50 लाख मिलियन टन
– घने जंगल के नीचे स्थित कोयला भण्डार – लगभग 40 हजार मिलियन टन
– घने जंगल के बाहर उत्पादन योग्य कोयला – 2.10 लाख मिलियन टन
– देश की वर्तमान कोयले की मांग – 1000 मिलियन टन वार्षिक
– देश की 2050 में कोयले की मांग – 2000 मिलियन टन वार्षिक
– देश को 2070 तक की कोयले की मांग – 1 लाख मिलियन टन
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत घने जंगलों के नीचे स्थित कोयला भण्डार को खनन किये बगैर अपनी वर्तमान और भविष्य की सभी आवश्यकता को पूरी कर सकता है। 2050 के बाद पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के कारण कोयले की मांग घटती जायेगी। 2070 के बाद कोयले का युग ही समाप्ति की ओर बढ़ेगा। इस स्थिति में हसदेव अरण्य जैसे घने जंगल जो कि कार्बनडाई आक्साइड शोषित करते हैं, उन्हें काटकर कोयला जलाना दोगुना नुकसान देह है। इससे मानव हाथी संघर्ष और खदान की मिट्टी बहने से हसदेव बांगो बांध की क्षमता भी कम होती जायेगी।
जहा तक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के कोयले की आवश्कता का प्रश्न है, उसे मध्यप्रदेश में सोहागपुर कोलफील्ड में स्थित कोल ब्लॉको में से कोयला लेना चाहिये। ऐसा करने से उसे कोल परिवहन की लागत में 300 से 400 रूपये प्रति टन की बचत होगी। गौरतलब है कि सोहागपुर कोलफील्ड के बहुत सारे कोल ब्लॉक जंगल विहीन क्षेत्र में हैं।