शिकायत में विरोधाभास, गवाही में चूक; कोर्ट ने कहा अश्लील शब्दों को जातिगत अत्याचार मानना उचित नहीं
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति वर्ग के व्यक्ति के साथ कथित अभद्रता और जातिगत गालियों के मामले में स्पेशल जज एट्रोसिटी कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए सभी ग्रामीणों को बरी कर दिया है। यह मामला लगभग 17 साल पुराना है और वर्ष 2008 में ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों पर जुर्माना और कैद की सजा तय की थी।
2006 में बैठक के दौरान विवाद, 2007 में दर्ज हुई शिकायत
अभियोजन पक्ष के अनुसार शिकायतकर्ता लखन लाल कुरें ने 22 सितंबर 2007 को भखारा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
उन्होंने बताया कि 17 सितंबर 2006 को ग्राम जोरातराई में दोपहर 1 बजे एक बैठक के दौरान दानीराम, लखनलाल सेन और महेश उर्फ महेंद्र साहू ने उन्हें घेरकर मां-बहन की गालियां दीं और जातिसूचक शब्दों का उपयोग किया, जिसकी वजह से वे बेहोश हो गए। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि यदि रामस्वरूप साहू ने बीच-बचाव नहीं किया होता, तो उनकी जान को खतरा हो सकता था।
इसके आधार पर पुलिस ने IPC की धारा 294, 506, 323/34 और SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(10) के तहत आरोप दर्ज किए थे।
ट्रायल कोर्ट ने लगाया था जुर्माना, न भरने पर कैद का आदेश
10 नवंबर 2008 को स्पेशल जज ने सभी आरोपियों को
- धारा 294 के तहत 500 रुपये का जुर्माना (न भरने पर 1 माह की सजा)
- धारा 323/34 के तहत 1000 रुपये का जुर्माना (न भरने पर 2 माह की कैद)
की सजा सुनाई थी।
शिकायत में अतिशयोक्ति, गवाहियों में विरोधाभास
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता लखन के बयान में कई चूक और अतिशयोक्ति पाई गई है।
जांच अधिकारी ने भी स्वीकार किया कि बैठक के दिन ग्रामीणों ने शिकायतकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उसकी जांच नहीं की गई।
कोर्ट ने कहा कि शिकायत में बताए गए तथ्यों और प्रस्तुत गवाहियों में स्पष्ट विरोधाभास है।
साथ ही यह भी कहा गया कि शिकायत में दर्ज “जातिगत गालियां” आईपीसी की अश्लीलता (धारा 294) के दायरे में नहीं आतीं।
निचली अदालत ने बचाव पक्ष की गवाही को तवज्जो नहीं दी और गलत निष्कर्ष पर पहुंच गई।
ग्रामीण दोषमुक्त, निचली अदालत का आदेश रद्द
इन सभी बिंदुओं को देखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे साबित हो कि आरोपियों का व्यवहार “दूसरों को परेशान करने वाला” था या किसी अपराध की श्रेणी में आता है।
हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए आरोपियों को पूरी तरह बरी कर दिया और निचली अदालत का आदेश निरस्त कर दिया।














