अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के छठवें दीक्षांत समारोह में पूर्व राष्ट्रपति का उद्बोधन
बिलासपुर। “मेरी आत्मकथा का काम पूरा हो चुका है। अगले वर्ष फरवरी में आप सब पढ़ेंगे कि एक छोटे से गांव से राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा मैंने कैसे पूरी की…”
इस आत्मकथात्मक भाव से अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के छठवें दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों को सफलता, साहस और निरंतर सीखने की प्रेरणा दी।
“जिस महापुरुष को अपना आदर्श मानता हूं, उसी के नाम पर बने विश्वविद्यालय में आकर खुशी मिली”
कोविंद ने कहा कि जिस अटल बिहारी वाजपेयी को वे अपना जीवन आदर्श मानते हैं, उसी नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में आना उनके लिए विशेष सम्मान की बात है।
उन्होंने सभी उपाधिधारकों और स्वर्ण पदक विजेताओं को बधाई देते हुए कहा—
“आपकी जिंदगी का यह सबसे यादगार दिन है। इस दिन तक पहुंचने में आपने और आपके माता-पिता ने बहुत मेहनत की है।”
पूर्व राष्ट्रपति ने कुलपति आचार्य दिवाकर नाथ वाजपेयी से छात्र-छात्राओं के प्रदर्शन संबंधी जानकारी ली और इस बात पर प्रसन्नता जताई कि अटल विश्वविद्यालय में बेटियों ने शानदार बढ़त बनाई है।
यहां 52 स्वर्ण पदक बेटियों को और 14 स्वर्ण पदक बेटों को मिले।
प्रतिशत के हिसाब से देखें तो छात्राओं को 78% और छात्रों को 22% गोल्ड मेडल मिले हैं।
उन्होंने समारोह में मौजूद उन बच्चियों की भी तारीफ की जिन्हें तीन-तीन स्वर्ण पदक मिले।
“यह उभरते भारत की तस्वीर है”
कोविंद ने कहा कि 2012 में राज्य विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित अटल विश्वविद्यालय को गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली, और आज यहां के छात्र-छात्राओं का आत्मविश्वास देखकर भविष्य उज्ज्वल लगता है।
उन्होंने कहा—
“भारत के हर हिस्से में मुझे दिखता है कि हमारी बेटियां, बेटों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, कई बार उनसे आगे निकल जाती हैं। यह नया भारत है, आत्मविश्वासी भारत है।”
“विद्या धन सभी धर्मों से श्रेष्ठ”
कोविंद ने कहा कि शिक्षा जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है।
“आज आप विश्वविद्यालय से निकल रहे हैं, लेकिन सीखने की कोई उम्र नहीं होती। 21वीं सदी में सफल होने के लिए आपको अपने ज्ञान और कौशल को लगातार निखारना होगा।”
उन्होंने सेल्फ-मैनेजमेंट, इमोशनल इंटेलिजेंस, और आधुनिक तरीकों को अपनाने की जरूरत पर जोर दिया।
उन्होंने छात्रों से कहा कि जीवन में उतार-चढ़ाव आएंगे, लेकिन गीता का संदेश—
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
हमें हर मुश्किल में आगे बढ़ने की शक्ति देता है।
“6 किलोमीटर रोज़ नंगे पैर चलता था… लेकिन हार नहीं मानी”
पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी जीवन यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि उनका बचपन बेहद संघर्षों से भरा था।
कानपुर के पास गांव में केवल एक प्राथमिक स्कूल था; उच्च शिक्षा के लिए उन्हें 6 किलोमीटर नंगे पैर दूसरे गांव जाना पड़ता था।
गर्मियों में पैर जल जाते, लेकिन उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी।
गरीबी के कारण यूनिफॉर्म तक नहीं खरीद सके, लेकिन उन्होंने डिग्री हासिल की और आगे चलकर राष्ट्रपति बने।
उन्होंने कहा—
“मेरी जिंदगी का सफर बताता है कि मेहनत और शिक्षा मिल जाए तो कोई भी ऊंचाई असंभव नहीं रहती।”
“योग अपनाएं, शरीर और मन दोनों मजबूत करें”
कोविंद ने छात्रों से योग और शारीरिक व्यायाम को जीवन का हिस्सा बनाने की अपील की।
उन्होंने कहा कि स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन से ही आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति लक्ष्य हासिल कर पाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि तेजी से बदलती दुनिया में भारत को आधुनिकता और अपनी सांस्कृतिक जड़ों, दोनों को साथ लेकर चलना होगा।
छात्रों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि वंचितों की मदद करना भी राष्ट्र निर्माण का बड़ा योगदान है।














