बिलासपुर। अंबिकापुर की एक महिला द्वारा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया गया है। महिला ने अपनी बालिग बेटी को एक कांस्टेबल और एक अन्य व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से बंधक बनाए जाने का आरोप लगाया था। साथ ही दावा किया था कि बेटी को नशे की लत लगाकर उसका मानसिक और शारीरिक शोषण किया जा रहा है।

महिला की ओर से दायर याचिका में आरोप था कि उसकी बेटी को कांस्टेबल ने अपने कब्जे में ले लिया है, जिसके चलते उसने अपने पति से तलाक ले लिया और अब उसी कांस्टेबल के साथ रह रही है। उसने मांग की थी कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए, पुलिस रिकॉर्ड बुलाया जाए और बेटी को पुनर्वास की सुविधा के साथ याचिकाकर्ता व उसके नाती को सुरक्षा भी दी जाए।

इसके साथ ही याचिका में बिलासपुर फैमिली कोर्ट के 28 मार्च 2025 के उस फैसले को चुनौती देने की अनुमति मांगी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता की बेटी और उसके पति को आपसी सहमति से तलाक दिया गया था। साथ ही चार साल के बेटे की कस्टडी पिता को दी गई थी और मां को बेटे से मिलने का अधिकार मिला था।

महिला का कहना था कि उसकी बेटी मानसिक रूप से अस्थिर है और नशे की लत के कारण अपने बच्चे को भी छोड़ चुकी है।

राज्य सरकार का पक्ष
सरकार की ओर से अदालत में कहा गया कि याचिका तकनीकी रूप से सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि इसमें एक साथ कई राहतें मांगी गई हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि युवती बालिग है और उसने अपनी मर्जी से कांस्टेबल के साथ रहने का फैसला लिया है। उसका बयान पुलिस थाने में दर्ज किया गया है और वह खुद कोर्ट में भी उपस्थित हुई थी।

अदालत का फैसला
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के बाद याचिका खारिज कर दी। हालांकि अदालत ने याचिकाकर्ता को अन्य वैधानिक उपायों का सहारा लेने की छूट दी है।

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